एकनिष्ठ भारतभक्ति ही सच्चा भारतीयकरण
Panchjanya|February 19, 2023
आज जब ‘इंडिया फर्स्ट' और 'मेक इन इंडिया' का दौर चल रहा है, तब भारतीयकरण का मुद्दा प्रासंगिक हो जाता है। अप्रैल, 1970 में पाञ्चजन्य के भारतीयकरण विशेषांक के लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के तत्कालीन सरसंघचालक श्री गुरुजी का पाञ्चजन्य के तत्कालीन संपादक श्री देवेंद्र स्वरूप ने साक्षात्कार लिया था। प्रस्तुत है उस साक्षात्कार का संपादित अंश
एकनिष्ठ भारतभक्ति ही सच्चा भारतीयकरण

■ कुछ समय पूर्व आपने लखनऊ में कहा था कि पहले इन राजनीतिज्ञों का भारतीयकरण आवश्यक है? 

हां, मैंने कहा था। जिन राजनीतिज्ञों को अपने राष्ट्र के स्व का तनिक ज्ञान नहीं, जो अपने देश की प्रत्येक वस्तु को त्याज्य और विदेश की प्रत्येक वस्तु को शिरोधार्य मानते हैं, जो अर्थ, शिक्षा, संविधान, समाज रचना, विदेश नीति आदि राष्ट्रजीवन के प्रत्येक क्षेत्र में विदेशों का अंधानुकरण करने की ओर प्रवृत्त हों, जो भारत का एक राष्ट्र के नाते नहीं तो अपनी-अपनी भाषा, प्रांत, वर्ण, जाति, सम्प्रदाय आदि के रूप में ही विचार करते हैं। और तो और, तुच्छ क्षणिक राजनीतिक स्वार्थवश भारत में भारतीयकरण, जैसी इतिहाससम्मत मांग का भी विरोध कर रहे है, क्या उनका भारतीयकरण किया जाना सर्वप्रथम आवश्यकता नहीं है? 

■ किन्तु गुरुजी! भारतीयकरण के विरोध में उनका मुख् तर्क यह है कि यह एक साम्प्रदायिक मांग है, यह मुसलमानों को हिन्दू बनाने का प्रयत्न है? 

Diese Geschichte stammt aus der February 19, 2023-Ausgabe von Panchjanya.

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