अंशिका एक एनर्जी बेस्ड कंपनी में इंजीनियर के पद पर कार्य करती थी. वह बेहद सुलझी व विनम्र स्वभाव की लड़की थी. अपने साथियों की वह जहां तक संभव हो सकता था, मदद करती थी. धीरेधीरे उस के बौस विभाग के सब छोटेबड़े काम के लिए उसे ही याद करने लगे. अंशिका अपनी मेहनत के बल पर अपने कर्मक्षेत्र में आगे बढ़ रही थी. वहीं दूसरी ओर उसी दफ्तर में रुचि मेहनत के बजाय ग्रहनक्षत्रों में उलझी हुई थी. रुचि दफ्तर की हर समस्या का समाधान व्रतों और अंगूठियों में खोजती थी.
कोई भी नया प्रोजैक्ट अगर रुचि को मिलता तो वह अपने पंडितजी से पूछे बिना हां नहीं कहती थी.
रुचि अपनी इन बेवकूफियों के कारण दफ्तर में तरक्की नहीं कर पाई और उस के लिए भी उस ने अपने ऊपर चल रही शनि की साढ़ेसाती को जिम्मेदार ठहराया. काश, कोई होता जो रुचि को बता पाता कि समय अच्छा या बुरा ग्रहनक्षत्रों से नहीं, हमारे कर्मों से बनता है.
उधर ज्योति जो एक प्राइवेट स्कूल में टीचर थी अपने गुरुजी की इतनी बड़ी भक्त थी कि उन की हर बात को वह पत्थर की लकीर मानती थी. ज्योति को लगता था कि उन की हर बात को मान कर उस की नौकरी तो बची ही रहेगी, उसे पदोन्नति भी मिल जाएगी.
स्कूल के काम पर ध्यान न दे कर उस ने बस पूजापाठ पर ध्यान दिया और नतीजा यह निकला कि लापरवाही के कारण ज्योति को नौकरी से हाथ धोना पड़ा.
Diese Geschichte stammt aus der August II 2022-Ausgabe von Sarita.
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