इसलिए वैदिक साहित्य में भक्ति को आवश्यक बताया है। जिस मानव के अंदर भक्ति नहीं है वो पत्थर के समान है निष्प्राण है उसका जीवन एक पशु के समान व्यतीत होता है वो जीवन के आनन्द से वंचित रह जाता है। भक्ति हीन जीवन नीरस ही नहीं वरन वासनामय होता है जिससे मात्र अशांति ही प्राप्त होती है और अन्त में दुर्गति होती है।
भक्ति के दो स्तम्भ हैं
इनके अभाव में भक्ति संभव नहीं है और भक्ति का विकास हो नहीं सकता। श्रद्धा अर्थात ईश्वर के प्रति पूर्ण निष्ठा। और विश्वास माने-किसी को मन से, ढंग से, लगन से चाहना, उसे मानना और उसके प्रति अपना संपूर्ण समर्पण। जब किसी को अपना मान लिया जाता है तो फिर उसके प्रति निष्ठा का भाव आ जाता है। उसे कुछ देने की इच्छा होती है यह भाव दोनों तरफ से होता है यदि एक तरफ से है तो स्वार्थ है। जब पति-पत्नी एक दूसरे का वरण करते हैं तो उनमें प्रेम भाव समर्पण के कारण होता है एक पत्नी अपना सब कुछ पति के हवाले कर देती है इसके बदले में पति भी उसकी पात्रता के अनुसार उसे अपना सब कुछ दे देता है। जहां पर विश्वास नहीं होता है वहां भी परिवारों में कलह, क्लेश, अशांति, अविश्वास होता है वहां का जीवन नरक के समान होता है।
Diese Geschichte stammt aus der September 2023-Ausgabe von Sadhana Path.
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