आनंदवन में गणतंत्र दिवस की तैयारियां जोरशोर से चल रही थीं. राजा शेरखान के महल के सामने वाले मैदान को तिरंगे झंडे के रंगों की फ्रिल व गुब्बारों से सजाया गया था. खेलकूद प्रतियोगिता व सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया गया था. वन के जिन बच्चों ने बहादुरी के काम किए थे उन्हें भी सम्मानित करने की योजना थी. सभी के लिए इनाम लाए जा चुके थे.
सभी वनवासियों को लड्डू बांटने के लिए वन के प्रसिद्ध हलवाई एल्मो हाथी को 50 किलो लड्डुओं का और्डर दिया गया था.
डोडो गधे के पास ठेली थी जिसे वह रिक्शे से खींचता था. 25 जनवरी की दोपहर को एल्मो ने डोडो की ठेली में 2-2 किलो के 25 डब्बे रखवा दिए और उन्हें एक बड़े से पौलीथिन से ढक दिया.
डोडो तुरंत रिक्शा चला कर राजा के महल की तरफ चल दिया. वहां पहुंच कर जब राजा के सेवक जेबी जेबरे ने डब्बे उतारे तो वे 21 ही थे.
"इस में तो 8 किलो लड्डू कम हैं," जेबी ने कहा.
यह सुन कर डोडो हैरान रह गया. "मैं ने तो ठेली में रखते समय डब्बे खुद गिने थे. ऐसा कैसे हो सकता है ?"
"देख लो, जो हैं तुम्हारे सामने हैं, पूरे लड्डू ले आओ, तभी मैं पैसे दूंगा," डोडो तुरंत वापस लौटा और धीरेधीरे रिक्शा चला कर सारे रास्ते देखता रहा, पर रास्ते में उसे डब्बे कहीं गिरे हुए नहीं दिखे.
डोडो एक बार फिर एल्मो की दुकान पर गया कि शायद उस से गिनने में कोई गलती हो गई हो, पर एल्मो ने साफ कह दिया, "तुम्हारे सामने गिन कर मैं ने पूरे 25 डब्बे रखवाए थे."
"अब परेशान डोडो अपने घर लौट आया. आखिर 4 डब्बे कहां गए?" उसे हैरानी हुई.
उसे देख कर उस का बेटा बोला, "क्या बात है, पापा ? आप बड़े उदास लग रहे हैं?"
"क्या बताऊं बेटा, 8 किलो लड्डू कम हैं. यदि मैं पूरे लड्डू नहीं पहुंचाऊंगा तो मुझे पैसे नहीं मिलेंगे. 8 किलो लड्डुओं के पैसे कहां से भरूंगा," डोडो ने बेटे डैनी को पूरी बात बताते हुए कहा.
"घबराइए मत पापा, शांति से बैठिए और कुछ खापी लीजिए, फिर हम इस बारे में बात करेंगे," कह कर डैनी ने अपने पापा को गाजर खिलाई व पानी पिलाया.
Diese Geschichte stammt aus der January Second 2023-Ausgabe von Champak - Hindi.
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भीम का संकल्प
वर्ष 1901 की बात है. उस समय भारत में अंग्रेजों का राज था. महाराष्ट्र के सतारा में एक 9 वर्ष का बालक भीम अपने बड़े भाई, भतीजे और दादी के साथ रहता था. उस के पिता कोरेगांव में खजांची की नौकरी करते थे.
अंधेर नगरी चौपट राजा
चीकू खरगोश और मीकू चूहा विश्व भ्रमण पर निकले थे. घूमतेघूमते दोनों 'जंबलटंबल' नामक शहर के बाहरी इलाके में जा पहुंचे..
रैटी की पूंछ
रैटी चूहा आनंदवन में अपनी कजिन चिंकी चिपमंक के साथ रहता था, जो दो महीने पहले लंदन से आया था. एक दिन रैटी अपने घर में उदास बैठा था. उसे उदास देख कर उस की दोस्त चिंकी ने पूछा, \"क्या बात है रैटी, तुम बड़े उदास लग रहे हो. किसी परेशान किया क्या? कहीं बैडी बिल्ली ने तुम्हें पंजा तो नहीं मारा या फिर हमेशा की तरह तुम्हारे पेट में भूख के मारे चूहे कूद रहे हैं. शायद इसीलिए तुम्हारे चेहरे पर बारह बज रहे हैं.\"
जलियांवाला बाग बलिदानियों की याद
\"बहुत बढ़िया, आज के लिए नया शब्द है, एम. ए. एस. एस. सी. आर. ई. कंचना मैम ने ब्लैक बोर्ड पर एक के बाद एक अक्षर लिखा.
शारजाह में ईद
दानिया बहुत उत्साहित थी, क्योंकि मम्मी ने दानिया बताया कि चचेरी बहन एजा और रूही ईद के लिए उन से मिलने आ रही हैं. एजा और रूही लंदन, यूनाइटेड किंगडम में रहती थीं. वे पहली बार शारजाह, संयुक्त अरब अमीरात, मध्यपूर्व के लिए उड़ान भर रही थीं.
पेन्नी के कपकेक्स
सुबहसुबह अचानक किसी ने दरवाजा खटखटाया तो टौमी बिलाव ने जा कर दरवाजा खोला. दरवाजे पर उस की पड़ोसिन पेन्नी बिल्ली थी. उस के हाथ में एक बहुत बड़ा डब्बा था, जिस में से बहुत अच्छी खुशबू आ रही थी. यह देख कर टौमी बहुत हैरान हुआ और मन ही मन सोचने लगा कि पेन्नी मिठाई का डब्बा ले कर मेरे घर आई है. मैं उसे बरसों से जानता हूं. अव्वल दर्जे की कंजूस है.
ईस्टर का त्योहार
राहुल ने सेंट जोसफ स्कूल में पढ़ाई की, जो ईसाई मान्यताओं पर आधारित था. राहुल हिंदू था. राहुल की क्लास में सभी धर्मों के बच्चे पढ़ते थे. उन्होंने सभी त्योहारों का आनंद लिया और इस तरह एकदूसरे की संस्कृतियों के बारे में जाना. एक दिन राहुल ने स्कूल बोर्ड पर रंगीन अंडों और जलती मोमबत्तियों वाले पोस्टर देखे.
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तनु को रंगों से बहुत प्यार था. उस की ड्राइंग कौपी का हर पन्ना रंगबिरंगा रहता था. उस का कमरा गुलाबी और हरे जीवंत रंगों से सजा था. उसे अपने गमलों में चमकीले और रंगबिरंगे फूल पसंद थे.
धोखा
\"कहो टिन्नी, आजकल कैसी कट रही है तुम्हारी जिंदगी?\" जियो सियार ने टिन्नी लोमड़ी से पूछा तो उस ने लंबी सांस भरी...
मोजारेला चीजस्टिक
जिग्गी चिपमंक स्कूल बस में नया बच्चा था. उन की बस सर्विस बहुत खराब थी, खास कर सुबह के समय जब बस बच्चों को लेने आती थी तो उन्हें काफी देर तक इंतजार करना पड़ता था. स्कूल पहुंचने में अकसर उन्हें देर हो जाती थी.