Mit Magzter GOLD unbegrenztes Potenzial nutzen

Mit Magzter GOLD unbegrenztes Potenzial nutzen

Erhalten Sie unbegrenzten Zugriff auf über 9.000 Zeitschriften, Zeitungen und Premium-Artikel für nur

$149.99
 
$74.99/Jahr
The Perfect Holiday Gift Gift Now

भविष्य के महानायक या 'एक असम्भव सम्भावना'?

Pratiman

|

January - June 2020

गाँधी एक अर्थ में अनूठे हैं भारत के इतिहास में। भारत के विचारशील व्यक्ति ने कभी भी समाज, राजनीति और जीवन के संबंध में सीधी कोई रुचि नहीं ली है। भारत का महापुरुष सदा से पलायनवादी रहा है। उसने पीठ कर ली है समाज की तरफ़। उसने मोक्ष की खोज की है, समाधि की खोज की है, सत्य की खोज की है, लेकिन समाज और इस जीवन का भी कोई मूल्य है यह उसने कभी स्वीकार नहीं किया। गाँधी पहले हिम्मतवर आदमी थे जिन्होंने समाज की तरफ़ से मुँह नहीं मोड़ा। वह समाज के बीच खड़े रहे और जिंदगी के साथ और जिंदगी को उठाने की कोशिश उन्होंने की। यह पहला आदमी था जो जीवनविरोधी नहीं था, जिसका जीवन के प्रति स्वीकार का भाव था।

- आलोक टण्डन

भविष्य के महानायक या 'एक असम्भव सम्भावना'?

गाँधी के बारे में, उनके विचारों से गहरा मतभेद रखने वाले आचार्य रजनीश का उपरोक्त कथन भले ही कुछ लोगों को अतिशयोक्तिपूर्ण लगे, लेकिन भारतीय परम्परा के इतिहास में वह गाँधी के अति महत्त्वपूर्ण अवदान को दृढ़ता से स्थापित करता है। समीक्ष्य कृति के लेखक सरोज कुमार वर्मा गाँधी और रजनीश, दोनों के गम्भीर अध्येता हैं। उन्होंने और भी आगे बढ़ कर, गाँधी è

WEITERE GESCHICHTEN VON Pratiman

Pratiman

Pratiman

महाभारत और सौंदर्यशास्त्र की चरम अनुभूति

यथार्थ का अतिक्रमण : प्राचीन और आधुनिक आख्यानों का अंतर

time to read

1 min

January - June 2020

Pratiman

Pratiman

भविष्य के महानायक या 'एक असम्भव सम्भावना'?

गाँधी एक अर्थ में अनूठे हैं भारत के इतिहास में। भारत के विचारशील व्यक्ति ने कभी भी समाज, राजनीति और जीवन के संबंध में सीधी कोई रुचि नहीं ली है। भारत का महापुरुष सदा से पलायनवादी रहा है। उसने पीठ कर ली है समाज की तरफ़। उसने मोक्ष की खोज की है, समाधि की खोज की है, सत्य की खोज की है, लेकिन समाज और इस जीवन का भी कोई मूल्य है यह उसने कभी स्वीकार नहीं किया। गाँधी पहले हिम्मतवर आदमी थे जिन्होंने समाज की तरफ़ से मुँह नहीं मोड़ा। वह समाज के बीच खड़े रहे और जिंदगी के साथ और जिंदगी को उठाने की कोशिश उन्होंने की। यह पहला आदमी था जो जीवनविरोधी नहीं था, जिसका जीवन के प्रति स्वीकार का भाव था।

time to read

1 min

January - June 2020

Pratiman

Pratiman

भाषा परिवार और सभ्यता का नस्ली सिद्धांत

अठारहवीं से लेकर उन्नीसवीं सदी के दौरान युरोप के बौद्धिक मानस पर धर्म, समाज, राष्ट्र और नस्ल की श्रेष्ठता को भाषाओं की श्रेष्ठता के आईने में देखने का रुझान हावी था।

time to read

1 min

January - June 2020

Pratiman

Pratiman

भय की महामारी

यह देखना एक त्रासद अनुभव है कि जिस कोविड-19 के भय से मानव इतिहास के सबसे बड़े परिवर्तनों में से एक के घटित होने की आशंका है, वह भय बेहद अनुपातहीन और अतिरेकपूर्ण है। इस बात के भी कोई प्रमाण उपलब्ध नहीं हो पा रहे हैं कि इन प्रतिबंधों से वायरस के संक्रमण या इससे होने वाली कथित मौतों को रोका जा सकता है। बेलारूस, निकारागुआ, तुर्की, स्वीडन, नार्वे, तंजानिया, स्वीडन, जापान आदि अनेक देशों ने डब्ल्यूएचओ की प्रत्यक्ष और परोक्ष सलाहों तथा मीडिया द्वारा बार-बार लानत-मलामत किये जाने के बावजूद या तो बिल्कुल लॉकडाउन नहीं किया, या फिर बहुत हल्के प्रतिबंध रखे। इनमें से किसी देश में कहीं अधिक मौतें नहीं हुई हैं। यह सही है कि बड़ी संख्या में लोगों के कोरोना-संक्रमण की पुष्टि हो रही है, लेकिन उससे बड़ा सच यह है कि यह वायरस उन संक्रमित लोगों में से अधिकांश लोगों को 'बीमार' तक कर पाने में सक्षम नहीं है।

time to read

1 min

January - June 2020

Pratiman

Pratiman

औपनिवेशिक भारत में हिंदी का विज्ञान-लेखन

उन्नीसवीं सदी के उत्तरार्ध में ब्रिटिश भारत में प्राथमिक और माध्यमिक स्कूलों के खुलने और स्कूली शिक्षा के प्रसार के साथ ही भारतीय भाषाओं में विभिन्न विषयों की पाठ्य -पुस्तकों की ज़रूरत भी शिद्दत से महसूस की गयी।

time to read

1 min

January - June 2020

Pratiman

Pratiman

हिंसक आर्थिकी का प्रतिरोध

मशीन को उसके उचित स्थान पर बैठाना

time to read

1 min

July - December 2019

Pratiman

Pratiman

राजपूत और मुग़ल:संबंधों का आकलन

देशज इतिहासकारों की दृष्टि में

time to read

1 min

July - December 2019

Pratiman

Pratiman

यौन-हिंसा और भारतीय राज्य

विसंगतियों के आईने में

time to read

1 min

July - December 2019

Pratiman

Pratiman

मेरी अंग्रेज़ी की कहानी

अंग्रेज़ी जातिगत विशेषाधिकारों को मजबूत करती है, वर्गीय गतिशीलता के नियम तय करती है और व्यक्ति को एजेंसी से लैस करती है। क्या अंग्रेजों के सामाजिक इतिहास का कोई आत्मकथात्मक आयाम उसकी इस भूमिका की ख़बर दे सकता है? प्रस्तुत निबंध में इसी जोखिम से मुठभेड़ करने की कोशिश की गयी है।

time to read

1 min

July - December 2019

Pratiman

Pratiman

भारोपीय भाषा परिवार, हिंदी और उत्तर-औपनिवेशिकता

समीक्ष्य कृति हिंदी की जातीय संस्कृति और औपनिवेशिकता के शीर्षक से ही स्पष्ट है कि इसे उत्तर-आधुनिक, सबाल्टर्न और उत्तर-औपनिवेशिक विमर्श के 'सैद्धांतिक निष्कर्षों' के प्रभाव में लिखा गया है।

time to read

1 min

July - December 2019

Translate

Share

-
+

Change font size

Holiday offer front
Holiday offer back