देवगुरु बृहस्पति की पत्नी तारा अत्यन्त रूपवती और लावण्यमयी स्त्री थीं। चन्द्रमा देवगुरु बृहस्पति के शिष्य थे। एक बार चन्द्रमा तारा के सौन्दर्य पर मोहित हो गए। तारा भी सुदर्शन चन्द्रमा को बहुत पसन्द करने लगी। प्रेमपाश में बँधकर वे दोनों विवेकहीन हो गए। यहाँ तक कि तारा चन्द्रमा के साथ ही रहने लगीं और बृहस्पति के समझाने पर भी नहीं लौटीं । तब बृहस्पति और चन्द्रमा के बीच घमासान युद्ध लगा, क्योंकि यह युद्ध तारा की कामना के कारण हुआ था। इसलिए इसका नाम 'ताराकाम्यम्' पड़ा।
गुरु शुक्राचार्य और समस्त असुर चन्द्रमा के साथ हो लिए तथा देवगण गुरु बृहस्पति का साथ देने लगे। इस भीषण युद्ध को देखकर सृष्टिकर्ता ब्रह्माजी को सृष्टि के विनाश की चिन्ता सताने लगी। तब वे तारा को समझा-बुझाकर देवगुरु बृहस्पति के पास लौटाने में सफल हुए। तत्पश्चात् चन्द्रदेव भी अपनी भूल का अहसास हुआ और वे पश्चात्ताप की अग्नि में जल उठे। कुछ समय उपरान्त तारा ने एक सन्तान को जन्म दिया, जो बुद्धिमान थी। इसका नाम बुध रखा गया। जब तारा से बुध के पिता का नाम पूछा गया, तो उसने चन्द्रमा का नाम लिया। इस अनैतिक सम्बन्ध से क्षुब्ध बुध अपनी माता तारा तथा चन्द्रमा से सदैव के लिए क्रोधित हो गए।
इसलिए ज्योतिष में बुध चन्द्रमा को अपना शत्रु मानते हैं, जबकि चन्द्रमा बुध को अपना मित्र, क्योंकि बुध तो उनका ही पुत्र है। समय के साथ ज्ञानवान् और विवेकशील देवगुरु बृहस्पति ने अपने विशाल हृदय का परिचय देते हुए तारा और चन्द्रमा को क्षमा कर दिया।
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