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जल प्रांतर

September 15, 2025

|

Outlook Hindi

कई राज्यों के हिमालयी क्षेत्र में आई अचानक विनाशकारी बाढ़ के बढ़ते सिलसिले ने फिर चेताया कि बेतरतीब निर्माण और प्रकृति से खिलवाड़ की कीमत जानलेवा

- राजीव नयन चतुर्वेदी

जल प्रांतर

उत्तराखंड के धराली गांव में 5 अगस्त को बादल फटता है, सैलाब सैकड़ों जिंदगियां बहा ले जाता है। छह लोग मौत की नींद सो जाते हैं। उत्तराखंड में अभी इस तबाही का मातम भी पूरा नहीं हो पाता कि 14 अगस्त को जम्मू-कश्मीर के किश्तवाड़ जिले में बादल फटते हैं और 60 लोगों की जिंदगियां बह जाती हैं। उसके बाद फिर उत्तराखंड प्रकृति के कोप का शिकार बनता है और इस बार चमोली जिले के थराली में बादल फटते हैं। हिमाचल प्रदेश की कहानी भी अलग नहीं है। 20 जून से लेकर 16 अगस्त के बीच बादल फटने, बाढ़ और भूस्खलन से 261 लोग अपनी जान गंवा चुके हैं। सिक्किम, असम और अरुणाचल जैसे पहाड़ी राज्यों में भी यही हाल है। ऐसा लगता है जैसे प्रकृति ने रौद्र रूप दिखाना शुरू कर दिया है।

हालांकि, बाढ़ का कहर सिर्फ पहाड़ों तक ही सीमित नहीं है। बरसात के मौसम में उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, असम और आंध्र प्रदेश जैसे राज्यों के कई हिस्से पानी में डूब जाते हैं। भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण (जीएसआइ) के अनुसार, भारत का 12.5 प्रतिशत क्षेत्र बाढ़-ग्रस्त है या बाढ़ आने की संभावना बनी रहती है। राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (एनडीएमए) की एक रिपोर्ट चिंता और बढ़ाती है। बाढ़ के कारण हर साल औसतन 75 लाख हेक्टेयर भूमि प्रभावित होती है। इन क्षेत्रों में हर साल औसतन 1600 जानें जाती हैं और 1805 करोड़ रुपये का नुकसान होता है।

imageमैदानी इलाकों में बादल फटने जैसी घटनाएं भले ही कम हों, लेकिन कोसी, तीस्ता, गंगा और ब्रह्मपुत्र जैसी नदियों में अचानक बाढ़ अब आम हो चुका है। इस साल प्रयागराज, वाराणसी, पटना, मुंबई और गुवाहाटी जैसे बड़े शहरों में पानी ने जनजीवन ठप कर दिया। बिहार का जवइनिया गांव तो कोसी नदी के कटान में पूरी तरह समा गया। पहाड़ी क्षेत्रों में कटान से ज्यादा, बादल फटने, भूस्खलन और ग्लेशियर झीलों के टूटने जैसी आपदाएं तबाही मचाती हैं। हालांकि, सवाल यह है कि क्या ये पूरी तरह प्राकृतिक है या मानवीय लापरवाही ने ज्यादा घातक बना दिया है? अचानक बाढ़ की समस्याएं क्यों बढ़ रही हैं? क्या वाकई ऐसी घटनाओं के रोकने के उपाय हैं?

बेतरतीब निर्माण

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