कैसे पहचानें असली गुरु को?
July 2025
|Sadhana Path
मिलावट के इस दौर में असली की पहचान करना जरूरी है। और यह पहचान गुरु के चयन में और भी जरूरी हो जाती है, चूंकि आज गली-गली, नुक्कड़-नुक्कड़ गुरु उपलब्ध है, तो ऐसे में कैसे पहचाना जाए कौन गुरु असली है, कौन नकली जानते हैं इस लेख में।
सवाल जितना अजीब है उतना ही महत्त्वपूर्ण भी। महत्त्वपूर्ण इसलिए क्योंकि शिष्य का सब कुछ गुरु से बंधा होता है, वह गुरु पर ही आश्रित होता है। यदि गुरु नकली होगा या भटका हुआ होगा तो उसके शिष्य भी उसकी ही तरह नकली और भटके हुए होंगे। ऐसे में जरूरी हो जाता है कि गुरु वास्तव में असली गुरु हो क्योंकि यदि जीवन में असली गुरु मिल जाए तो ही इस भवसागर से तरा जा सकता है अन्यथा डूबना निश्चित है। इसलिए जीवन में सही गुरु का मिलना एक महत्त्वपूर्ण घटना है।
और यह सवाल अजीब इसलिए है क्योंकि कोई कैसे पहचानेगा कि उसका गुरु कैसा है। असली है या नकली ? शिष्य में इतनी क्षमता नहीं होती कि वह गुरु की परख करे। यदि शिष्य ही गुरु को सही या गलत की कसौटी पर परखने लगे तो शिष्य-शिष्य कहां रहा ? गुरु का भी गुरु नहीं हो गया ? यह बात सुनते ही अजीब लगती है। इसका अर्थ तो यह हुआ कि पहले गुरु करो, फिर उसे पहचानो, यदि वह नहीं भाता या हमारी कसौटी पर खरा नहीं उतरता तो उसे छोड़ो और नया गुरु तलाशो।
इसी संदर्भ में एक कहावत है- 'गुरु करो जान के, पानी पियो छान के'। प्रश्न उठता है कि कैसे जानें गुरु को ? आजकल के माहौल में तो यह समस्या और भी जटिल हो गई है। गली-गली में, शहर-शहर में साधु-संत, गुरु-महात्मा आदि पैदा हो गए हैं। हैरानी की बात तो यह है कि सभी पहुंचे हुए हैं। सभी के पास लाखों शिष्यों एवं संन्यासियों का जमघट लगा रहता है, कम कोई भी नहीं मालूम पड़ता। ऐसे में क्या करें, किसको बनाएं गुरु? कैसे पहचानें कि हमारा गुरु असली है या दूसरे का गुरु असली है? क्या किसी गुरु को उसकी प्रसिद्धि, मान्यता, उसकी संस्था, आश्रम एवं वैभव आदि के पैमाने से आंका जा सकता है? शायद नहीं, लेकिन गुरु-शिष्य के महत्त्वपूर्ण संबंध को ध्यान में रखते हुए इस उलझन से उबरना भी जरूरी है।
هذه القصة من طبعة July 2025 من Sadhana Path.
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