मिथिलांचल की प्राचीन धरोहर है 'मधुबनी पेटिंग'
Sadhana Path|May 2024
मिथिलांचल न केवल अपनी खूबसूरती के लिए पहचाना जाता है, बल्कि यह जगह कला और साहित्य से भी समृद्ध है। एक तरफ हैं विद्यापति तो दूसरी तरफ हैं। विश्व प्रसिद्ध चित्रकला 'मधुबनी पेंटिंग'। इसकी खूबसूरती इसी में है कि यह आपको मिथिलांचल की लोक-परंपरा से अवगत कराती है।
लक्ष्मी कनोडिया
मिथिलांचल की प्राचीन धरोहर है 'मधुबनी पेटिंग'

भारत रचनात्मकता कला और संस्कृति का देश है। मधुबनी पेंटिंग भारत और विदेशों में सबसे प्रसिद्ध कलाओं में से एक है। इस चित्रकला की शैली को आज भी बिहार के कुछ हिस्सों में प्रयोग किया जाता है। खासकर मिथिला, क्योंकि मिथिला क्षेत्र में इस पेंटिंग की शैली की उत्पत्ति हुई है इसलिए इसे मिथिला चित्रों के रूप में जाना जाता है। यह बिहार के दरभंगा, पूर्णिया, सहरसा मुजफ्फरपुर, मधुबनी एवं नेपाल के कुछ क्षेत्रों की प्रमुख कला है। मधुबनी बिहार की राजधानी पटना से 190 किलोमीटर दूर है। मधुबनी कला की उत्पत्ति रामायण काल में थी जब राजा ने इस अनूठी कला को सीता के विवाह के समय पूरे राज्य को सजाने के लिए बड़ी संख्या में कलाकारों को आमंत्रित किया था। मधुबनी पेंटिंग सामान्यतः भगवान कृष्ण, रामायण के दृश्य जैसे भगवान की छवियों और धार्मिक विषयों पर आधारित है। समृद्धि और शांति के रूप में भगवान का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए इन कलाओं की अनूठी शैली का इस्तेमाल महिलाएं अपने घरों और दरवाजों को सजाने के लिए किया करती थी। इस लेख के माध्यम से मधुबनी कला के बारे में जानेंगे। 

मधुबनी बिहार राज्य में स्थित एक जिला है। मधुबनी दो शब्दों से मिलकर बना है - मधु और बनी। मधु का अर्थ है शहद और वनी का अर्थ है जंगल। इस तरह से पूरे शब्द का अर्थ है - शहद का जंगल। मधुबनी पेंटिंग को मिथिला पेंटिंग भी कहा जाता है। मधुबनी पेंटिंग दो प्रकार की होती है - भित्ति चित्र और अरिपन।

1. भित्ति चित्रः मिट्टी की दीवारों पर तीन स्थानों पर किया जाता था। परिवार के देवीदेवता के कमरे में, नए जोड़े के कमरे में तथा ड्राइंग रूम में।

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