भारत रचनात्मकता कला और संस्कृति का देश है। मधुबनी पेंटिंग भारत और विदेशों में सबसे प्रसिद्ध कलाओं में से एक है। इस चित्रकला की शैली को आज भी बिहार के कुछ हिस्सों में प्रयोग किया जाता है। खासकर मिथिला, क्योंकि मिथिला क्षेत्र में इस पेंटिंग की शैली की उत्पत्ति हुई है इसलिए इसे मिथिला चित्रों के रूप में जाना जाता है। यह बिहार के दरभंगा, पूर्णिया, सहरसा मुजफ्फरपुर, मधुबनी एवं नेपाल के कुछ क्षेत्रों की प्रमुख कला है। मधुबनी बिहार की राजधानी पटना से 190 किलोमीटर दूर है। मधुबनी कला की उत्पत्ति रामायण काल में थी जब राजा ने इस अनूठी कला को सीता के विवाह के समय पूरे राज्य को सजाने के लिए बड़ी संख्या में कलाकारों को आमंत्रित किया था। मधुबनी पेंटिंग सामान्यतः भगवान कृष्ण, रामायण के दृश्य जैसे भगवान की छवियों और धार्मिक विषयों पर आधारित है। समृद्धि और शांति के रूप में भगवान का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए इन कलाओं की अनूठी शैली का इस्तेमाल महिलाएं अपने घरों और दरवाजों को सजाने के लिए किया करती थी। इस लेख के माध्यम से मधुबनी कला के बारे में जानेंगे।
मधुबनी बिहार राज्य में स्थित एक जिला है। मधुबनी दो शब्दों से मिलकर बना है - मधु और बनी। मधु का अर्थ है शहद और वनी का अर्थ है जंगल। इस तरह से पूरे शब्द का अर्थ है - शहद का जंगल। मधुबनी पेंटिंग को मिथिला पेंटिंग भी कहा जाता है। मधुबनी पेंटिंग दो प्रकार की होती है - भित्ति चित्र और अरिपन।
1. भित्ति चित्रः मिट्टी की दीवारों पर तीन स्थानों पर किया जाता था। परिवार के देवीदेवता के कमरे में, नए जोड़े के कमरे में तथा ड्राइंग रूम में।
هذه القصة مأخوذة من طبعة May 2024 من Sadhana Path.
ابدأ النسخة التجريبية المجانية من Magzter GOLD لمدة 7 أيام للوصول إلى آلاف القصص المتميزة المنسقة وأكثر من 9,000 مجلة وصحيفة.
بالفعل مشترك ? تسجيل الدخول
هذه القصة مأخوذة من طبعة May 2024 من Sadhana Path.
ابدأ النسخة التجريبية المجانية من Magzter GOLD لمدة 7 أيام للوصول إلى آلاف القصص المتميزة المنسقة وأكثر من 9,000 مجلة وصحيفة.
بالفعل مشترك? تسجيل الدخول
विदेशों में भी लोकप्रिय दीपावली
दीपावली के अवसर पर कश्मीर से कन्याकुमारी तक दीपों की जगमगाहट और पटाखों की गूंज होती है। लेकिन यह त्यौहार सरहद और सात समंदर पार भी उसी उत्साह और उमंग से मनाया जाता है। कहां और कैसे, जानें लेख से।
शक्ति आराधना के साढ़े तीन पीठ
महाराष्ट्र में कोल्हापुर, तुलजापुर, माहूर और नासिक इन स्थानों पर मां अंबे के साढ़े तीन पीठ हैं। ये सभी शक्ति पीठ जागृत धार्मिक स्थल के रूप में प्रसिद्ध हैं। इनके महत्त्व और आख्यायिकाओं के बारे में जानें इस लेख से।
बढ़ती आबादी बनी चुनौती
विश्व की जनसंख्या सात अरब से भी पार जा चुकी है। अगर अपने देश भारत की बात करें तो यह संख्या दुनिया की कुल आबादी का 17.78% है। भारत विश्व का सबसे अधिक जनसंख्या वाला देश बन चुका है।
दीपावली में रंग भरती रंगोली
रंगोली लोकजीवन का एक बहुत ही अभिन्न अंग है। देश के विभिन्न हिस्सों में रंगोली सजाने का अपना अलग-अलग स्वरूप है। दीपावली के मौके पर इसका महत्त्व और भी बढ़ जाता है।
धनतेरसः मान्यताएं और खरीदारी
कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी को यानी धनवंतरि त्रयोदशी को धनतेरस के नाम से जाना जाता है। दीपावली से दो दिन पूर्व मनाया जाता है धनतेरस। इस दिन सोना-चांदी आदि खरीदना शुभ मानते हैं। धनतेरस के महत्त्व को जानें इस लेख से।
लक्ष्मी को प्रिय उल्लू, कौड़ी और कमल
हिन्दू धर्म में मां लक्ष्मी को धन और प्रतिष्ठा की देवी मानते हैं तो उनके वाहन उल्लू को भी भारतीय संस्कृति में धन-संपत्ति के प्रतीक के रूप में माना जाता है। इसके साथ ही कौड़ी और कमल का भी मां लक्ष्मी से गहरा नाता है।
सब दिन होत ना एक समाना
पुष्पक विमान में बैठ कर राम, सीता व लक्ष्मण अनेक तीर्थस्थलों का भ्रमण करने के पश्चात अयोध्या लौट रहे थे। चौदह वर्ष पश्चात अपनी मातृभूमि के दर्शन के इस विचार से ही श्रीराम गदगद् हो उठे।
जय मां नीलेश्वरी काली जन्म दाती से जगत जननी तक
डस पृथ्वी पर धरा एक ऐसी शक्ति है जिसमें सभी बुद्धिजीवी प्राणी कृपा पाते हैं, जिसके रूप अनेक हैं, कोई किसी नाम से कोई किसी नाम से मां आदि शक्ति की पूजा करते हैं।
नौ कन्याओं का पूजन क्यों?
नवरात्र में कन्या पूजन का विशेष महत्त्व है। नौ कन्याओं को नौ देवियों के रूप में पूजन कर अपने सामर्थ्यनुसार दक्षिणा देकर भक्त माता रानी का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।
बिना कसरत के वजन कम करें, अपनाएं ये टिप्स
व्यायाम के बिना वज़न घटाने के इन चमत्कारी तरीक़ों पर गौर करें और बिना व्यायाम के अपना वज़न घटाने की शुरुआत करें।