जरा सोचिये क्या बेइंतिहा प्रदूषण फैलाने वाले पटाखों को जलाना, एक दिन की सजावट के लिये बेकार की चीजों को खरीदना, बाजार की मिलावटी मिठाईयों को खरीद कर खाना व बेकार की चीजों की खरीददारी करना ही दिवाली सेलिब्रेट करना है? क्या इन सबके बिना दीपोत्सव व भाईचारे का यह त्योहार नहीं मनाया जा सकता है? बिल्कुल मनाया जा सकता है। बस इसके लिये जरूरत है कुछ है समझदारी दिखाने की। तो इस बार हमारे द्वारा बताई गई कुछ बातों को अपनाइए और अपनों के संग मिलकर मनाइए ईको फ्रेंडली दिवाली। वो कैसे आईये जाने-
मिट्टी के दीये जलाएं
दिवाली दीपों का त्योहार है पर आज दिवाली में दीपों का स्थान नाम के लिए रह गया है। रंगीन डिजाइनर लाइट्स इनकी जगह ले चुकी हैं। जो देखने में सुंदर तो लगती हैं पर कहीं न कहीं हमारे पर्यावरण को प्रभावित करती हैं। इस बार दिवाली पर घर-बाहर रोशनी करने के लिये पारंपरिक तरीके अपनाते हुए मिट्टी के दिये जलायें। ऐसा करने से कई फायदे होंगे एक तो बिजली बर्बाद नहीं होगी और दूसरा दीयों की रोशनी में आपका घर बेहद खूबसूरत भी लगेगा। जिससे आस-पास की नेगेटिव एनर्जी समाप्त होने के साथ-साथ वातावरण भी शुद्ध होगा। मिट्टी के दिये का आप दुबारा भी इस्तेमाल कर सकते हैं इसके अलावा इसकी खास बात यह है कि इसे बनाने के लिए अर्थ फ्रेंडली मटेरियल यानी की मिट्टी का इस्तेमाल किया जाता है।
बहुत ही कम तेल में जलने वाले यह दीये चार से पांच घंटो तक बिना बुझे आपके घर को रोशनी से जगमाए रखेंगे। मिट्टी के दीये जलाकर आप अपनी परंपरा को ही जिंदा नहीं रखेंगे बल्कि लक्ष्मी को खुश करने के नाम पर बिजली के अति उपयोग ना करके आप इस दिवाली को ग्रीन दिवाली बनाने की तरफ अपने कदम भी बढ़ायेंगे।
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विदेशों में भी लोकप्रिय दीपावली
दीपावली के अवसर पर कश्मीर से कन्याकुमारी तक दीपों की जगमगाहट और पटाखों की गूंज होती है। लेकिन यह त्यौहार सरहद और सात समंदर पार भी उसी उत्साह और उमंग से मनाया जाता है। कहां और कैसे, जानें लेख से।
शक्ति आराधना के साढ़े तीन पीठ
महाराष्ट्र में कोल्हापुर, तुलजापुर, माहूर और नासिक इन स्थानों पर मां अंबे के साढ़े तीन पीठ हैं। ये सभी शक्ति पीठ जागृत धार्मिक स्थल के रूप में प्रसिद्ध हैं। इनके महत्त्व और आख्यायिकाओं के बारे में जानें इस लेख से।
बढ़ती आबादी बनी चुनौती
विश्व की जनसंख्या सात अरब से भी पार जा चुकी है। अगर अपने देश भारत की बात करें तो यह संख्या दुनिया की कुल आबादी का 17.78% है। भारत विश्व का सबसे अधिक जनसंख्या वाला देश बन चुका है।
दीपावली में रंग भरती रंगोली
रंगोली लोकजीवन का एक बहुत ही अभिन्न अंग है। देश के विभिन्न हिस्सों में रंगोली सजाने का अपना अलग-अलग स्वरूप है। दीपावली के मौके पर इसका महत्त्व और भी बढ़ जाता है।
धनतेरसः मान्यताएं और खरीदारी
कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी को यानी धनवंतरि त्रयोदशी को धनतेरस के नाम से जाना जाता है। दीपावली से दो दिन पूर्व मनाया जाता है धनतेरस। इस दिन सोना-चांदी आदि खरीदना शुभ मानते हैं। धनतेरस के महत्त्व को जानें इस लेख से।
लक्ष्मी को प्रिय उल्लू, कौड़ी और कमल
हिन्दू धर्म में मां लक्ष्मी को धन और प्रतिष्ठा की देवी मानते हैं तो उनके वाहन उल्लू को भी भारतीय संस्कृति में धन-संपत्ति के प्रतीक के रूप में माना जाता है। इसके साथ ही कौड़ी और कमल का भी मां लक्ष्मी से गहरा नाता है।
सब दिन होत ना एक समाना
पुष्पक विमान में बैठ कर राम, सीता व लक्ष्मण अनेक तीर्थस्थलों का भ्रमण करने के पश्चात अयोध्या लौट रहे थे। चौदह वर्ष पश्चात अपनी मातृभूमि के दर्शन के इस विचार से ही श्रीराम गदगद् हो उठे।
जय मां नीलेश्वरी काली जन्म दाती से जगत जननी तक
डस पृथ्वी पर धरा एक ऐसी शक्ति है जिसमें सभी बुद्धिजीवी प्राणी कृपा पाते हैं, जिसके रूप अनेक हैं, कोई किसी नाम से कोई किसी नाम से मां आदि शक्ति की पूजा करते हैं।
नौ कन्याओं का पूजन क्यों?
नवरात्र में कन्या पूजन का विशेष महत्त्व है। नौ कन्याओं को नौ देवियों के रूप में पूजन कर अपने सामर्थ्यनुसार दक्षिणा देकर भक्त माता रानी का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।
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