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कला व संस्कृति का पर्व - ओणम

September 2022

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Sadhana Path

हमारे देश में प्रत्येक राज्य के अपने विशेष पर्व व त्योहार हैं। जिसमें उस राज्य की संस्कृति की अनूठी झलक देखने को मिलती है। ऐसा ही एक अनूठा महापर्व है ओणम। जिसे केरल में विशेष रूप से बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता है।

- कुमोदकर कुमार

कला व संस्कृति का पर्व - ओणम

गुरुर को चूर करने एवं नई आशा और उत्साह का त्योहार 'ओणम ' केरल का सबसे बड़ा त्योहार है। केरल में इस त्योहार का वही महत्त्व है जो उत्तर भारत में विजयादशमी या दीपावली का या पंजाब में वैशाखी का। ओणम का त्योहार प्रति वर्ष अगस्त-सितंबर में मनाया जाता है। मलयाली संवत् के अनुसार यह महीना सावन का होता है।

क्यों मनाया जाता है ओणम ?

पुराणों के अनुसार जब विष्णु भगवान ने वामन का अवतार धारण किया उस समय मलयालम प्रदेश राजा बलि के राज्य में था।

बलि के राज में चोरी नहीं होती थी। बलि को अपने अच्छे शासन पर तथा अपनी शक्ति पर गर्व था। विष्णु भगवान ने उसका घमंड तोड़ने के लिए वामन का रूप धारण किया और भिक्षा मांगने के लिए वे बलि के पास पहुंचे। बलि ने कहा, 'जो चाहो, मांग लो।' वामन ने तीन पग पृथ्वी मांगी। बलि ने तुरंत प्रार्थना स्वीकार कर ली। अब विष्णु भगवान ने अपना विराट रूप प्रकट किया। उन्होंने दो पगों में सारा ब्रह्मांड नाप लिया। अभी एक पग पृथ्वी उन्हें चाहिए थी। बलि को अपनी भूल का अहसास हुआ तो उसका घमंड जाता रहा। लेकिन अपने वचन से वह नहीं डिगा। एक पग पृथ्वी के बदले उसने अपना सिर नपवा दिया तथा विष्णु भगवान के चरणों से दब कर पाताल लोक चला गया। किंतु पाताल जाने से पूर्व उसने भगवान से एक वरदान मांगा कि उसे हर वर्ष एक बार अपने प्रिय मलयालम क्षेत्र में आने की स्वीकृति दी जाए। माना जाता है कि तभी से बलि ओणम पर्व के अवसर पर मलयालम की यात्रा पर आता है उसके स्वागत में केरल निवासी हंसी-खुशी से यह त्योहार मनाते हैं।

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ओशो शब्दों के सम्राट हैं

पहली बात तो ओशो एक विचारक हैं, महान विचारक। जो किसी धर्म से नहीं विचारों से जुड़ा रहा। विचारों से जुड़ने का मतलब है सत्य से जुड़ना। जो सत्य से जुड़ता है सब उसके दुश्मन हो जाते हैं, यही कारण था कि ओशो के इतने दुश्मन पैदा हुए। ओशो के साथ बस एक दिक्कत रही कि 99 प्रतिशत वह लोग उनके खिलाफ रहे जिन्होंने उन्हें न कभी सुना है, न ही कभी पढ़ा है।

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अद्भुत बौद्धिक क्षमता से युक्त व्यक्ति

मेरी दृष्टि में ओशो अपने समय के सबसे ज्यादा बौद्धिक क्षमता से युक्त व्यक्ति थे जिनमें ज्ञान और विज्ञान को अपने तर्कों के माध्यम से प्रस्तुत करने की अद्भुत क्षमता थी। आप उनसे सहमत हो या न हो वो अलग बात है। मेरी नजर में उन जैसा कोई दूसरा व्यक्ति नहीं है।

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December 2025

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काल की शिला पर अमिट हस्ताक्षर हैं ओशो

जब हम किसी भी व्यक्तित्व के बारे में सोचते हैं तो विचारों में सबसे पहले उसकी आकृति उभरती है। ऐसे ही ओशो के बारे में सोचते ही एक चित्र उभरता है, ओशो की घनी दाढ़ी, उन्नत भाल, समुद्र सी गहराई और बाज-सी तीक्ष्ण दृष्टि वाला उनका व्यक्तित्व एक ऐसा आभा मंडल रचता है, कि हम जैसे लोग जिन्होंने उन्हें सिर्फ फोटो में देखा है, उन्हें पढ़ने या सुनने के लिए विवश हो जाते हैं। ओशो की आवाज, वाणी, उनके शब्द, भाषा शैली, अभिव्यक्ति एवं वक्तव्य की बात करूं तो वह अद्वितीय है।

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वास्तु उपायों से बनाएं नववर्ष को मंगलमय

नया साल अपने साथ खुशियां और सौहार्द लेकर आता है। ऐसे में पूरे वर्ष को और भी ज्यादा खास बनाने के लिए वास्तु संबंधित कुछ उपाय अपनाए जा सकते हैं। इससे घर की परेशानियां दूर होने के साथ आर्थिक तंगी से भी छुटकारा मिलेगा।

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बुद्ध के गुणों का पावन संदेश

जोव्यक्ति बुद्ध होता है, वह सम्यक संबोधि हासिल कर लेता है, वह अनन्त गुणों से भर जाता है। उसके गुणों का ध्यान करते-करते धर्म उजागर होने लगता है। ऐसे में बुद्ध के गुणों का वर्णन करने वाले एक-एक शब्द को समझना आवश्यक है। जो इस प्रकार है-

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इस सदी का चमत्कार हैं ओशो

ओशो से मेरा परिचय धर्मयुग के कारण हुआ उसमें उनके लेख, साक्षात्कार छपते थे। और मेरे कॉर्टून जिसमें मेरा डब्बू जी के नाम से एक कॉलम आता था, जिसे ओशो बहुत पसंद करते थे, यहां तक कि वह अपने प्रवचनों के बीच संन्यासियों को हंसाने के लिए उस पत्रिका को हाथ में लेते और कहते 'देखते हैं इस हफ्ते डब्बू जी क्या कहते हैं' और सबको उसमें से कोई लतीफा सुनाते थे। मैंने ओशो को खूब पढ़ा है। मैं उनके प्रवचनों से बहुत प्रभावित रहा हूं।

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सर्दियों में बच्चों की इम्यूनिटी बढ़ाने के अचूक उपाय

सर्दियों के दस्तक देते ही सर्द हवाओं का सिलसिला शुरू हो जाता है, जो आगे चलकर बच्चों में सर्दी और खांसी की वजह साबित होता है। ऐसे में अगर बात बच्चों की सेहत की करें तो उनका ख्याल रखना बेहद जरूरी हो जाता है।

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सर्दी-खांसी से बचे रहना चाहते हैं तो जरूर खाएं ये सुपरफूड्स

बदलते मौसम में अक्सर इम्युनिटी कमजोर हो जाती है इसलिए इस दौरान ऐसा आहार लेना चाहिए जो आपको भीतर से मजबूत बनाए। चलिए जानते हैं कि सर्दियों में क्या खाएं कि शरीर को शक्ति और ऊर्जा दोनों मिले।

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बात जो जरूरी है वो जरा अधूरी है

दूसरे ही पृष्ठ पर सर्वप्रथम मेरा चेहरा देखकर आपका हैरान होना लाजमी है क्योंकि मेरा चेहरा इस विशेषांक के साथ न तो निर्णय करता है, न ही कोई तालमेल बिठाता है। क्योंकि न तो मैं कोई प्रसिद्ध हस्ती हूं न ही बुद्धिजीवियों की श्रेणी में मेरा कहीं कोई स्थान है। तो क्या मैं पत्रिका का संपादक होने के नाते पद और पन्नों का फायदा उठा रहा हूं? नहीं। न तो ऐसी मेरी कोई मंशा है, न ही कोई चाल। सच कहूं तो यह मेरी मजबूरी है। पर मेरी इस मजबूरी का संबंध किसी लाचारी या असहाय जैसी नकारात्मक अवस्था से नहीं है। मेरे लिए मजबूरी का मतलब उस विवशता से है जिसके लिए मेरा लिखना ही एक मात्र विकल्प है और यही विकल्प इस अंक का कई हद तक आधार भी है।

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