يحاول ذهب - حر
पूर्वीजर हरियाणा में धान की सीधी बिजाई एक प्रयत्न तो बनता है
15th April 2024
|Modern Kheti - Hindi
हरियाणा प्रदेश के उत्तर पूर्वी भाग (अंबाला, कुरुक्षेत्र, यमुनानगर, करनाल, पानीपत और सोनीपत आदि जिले) में धान की फसल का अपना ही एक महत्व है। यहां के धान की उच्च गुणवत्ता और विक्रय के लिए बाजार के स्थायी तंत्र की उपस्थिति के कारण धान का स्थान ग्रहण करने के लिए वर्तमान में कोई दूसरी फसल विद्यमान नहीं है। किन्तु जिस परम्परागत विधि से धान की खेती यहां पर की जा रही है वह बहुत ही दीर्घकालिक नहीं प्रतीत हो रही है।
परम्परागत रूप से धान की खेती खेत को कद्दू करके उसमें धान की पौध की हाथों से रोपाई करके की जाती है। इस विधि में भूमि की सतह पर पानी को खड़ा रखना पड़ता है जिसके कारण अत्याधिक वाष्पीकरण होता है और धान की खेती में पानी की बहुत अधिक आवश्यकता होती है। एक अनुमान के अनुसार परंपरागत विधि से एक किलोग्राम धान उगाने के लिए लगभग 3000 लीटर सिंचाई जल की आवश्यकता होती है जिसके कारण यहाँ का भूमिगत जल स्तर लगातार नीचे जा रहा है। इसके अलावा धान की रोपाई करने में वांछित बहुत अधिक श्रमिकों की घटती हुई उपलब्धता, मृदा का गिरता हुआ स्वास्थ्य तथा पर्यावरण में हुए बदलावों के कारण इन इलाकों में धान की खेती करना बहुत ही कठिन हो गया है। इन समस्याओं के निवारण के लिए धान उत्पादन की एक नई तकनीक का आविष्कार किया गया है- "धान की सीधी बिजाई (डीएसआर)"। इस विधि में धान के बीज को एक ड्रिल रुपी मशीन (झुकी हुई प्लेट वाली बहु फसलीय बिजाई मशीन) में डालकर लगभग गेहूं की तरह उसकी बिजाई की जाती है। इस विधि में खेत को कद्दू करने की आवश्यकता नहीं होती है। केवल सूखे/वत्तर में ही खेत की तैयारी की जाती है। धान की सीधी बिजाई में सिंचाई जल की आवश्यकता परम्परागत रूप से कद्दू करके उगाने वाली विधि की तुलना में लगभग 20 प्रतिशत कम होती है। इसके अलावा पौध रोपाई की आवश्यकता न होने के कारण श्रमिकों की कमी की समस्या का भी निवारण होता है। धान की सीधी बिजाई से मृदा का स्वास्थ्य और पर्यावरण संरक्षण भी होता है। शोध कार्यों के अनुसार धान की सीधी बिजाई में पैसे की बचत व शुद्ध लाभ भी ज्यादा होता है। इस लेख में धान की सीधी बिजाई के अत्याधिक लाभ बताने की अपेक्षा एक आर्थिक विश्लेषण के द्वारा इस बात पर बल दिया जा रहा है कि धान की सीधी बिजाई का आर्थिक प्रबंधन कितना भी बुरा क्यों ना हो फिर भी इस विधि को अपनाने में किसान का आर्थिक रूप से नुकसान नहीं होता। क्योंकि भूमि, पर्यावरण और जल संरक्षण के अतिरिक्त किसान के लिए आर्थिक लाभ या हानि भी महत्वपूर्ण होती है। यहाँ पर बुरा आर्थिक प्रबंधन से अर्थ यह है कि खर्च की चिंता किये बिना (चाहे धन कितना भी खर्च हो जाए) डी एस आर विधि के किर्यान्वयन में कोई कमी न रह जाए और अधिक से अधिक उपज प्राप्त की जा सके।
هذه القصة من طبعة 15th April 2024 من Modern Kheti - Hindi.
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