يحاول ذهب - حر
VAK - September 2018

استمتع بـUnlimited مع Magzter GOLD
يقرأ VAK إلى جانب أكثر من 9000 مجلة وصحيفة أخرى من خلال اشتراك واحد فقط
عرض الكتالوجاشترك فقط في VAK
إلغاء في أي وقت.
(لا يوجد التزامات) ⓘإذا لم تكن راضيًا عن الاشتراك، يمكنك مراسلتنا عبر البريد الإلكتروني help@magzter.com خلال 7 أيام من تاريخ بدء الاشتراك لاسترداد كامل المبلغ. نعدك بذلك! (ملاحظة: لا ينطبق على شراء عدد واحد فقط)
الاشتراك الرقمي
الوصول الفوري ⓘاشترك الآن لتبدأ القراءة فورًا على موقع Magzter، وتطبيقات iOS، وAndroid، وAmazon.
في هذا العدد
September 2018
VAK Description:
हिन्दी के विराट जनक्षत्रे में नयी सदी की बेचैनियाँ और आकांक्षाएँ जोर मार रही हैं। हिन्दी के नये पाठक को अब शुद्ध ‘साहित्यवाद’ नहीं भाता। वह समाज को उसके समग्र में समझने को बेताब है। साहित्य के राजनीतिक पहलू ही नहीं, उसके समाजशास्त्रीय, मनोवैज्ञानिक पहलुओं को पढ़ना नये पाठक की नयी माँग है। वह इकहरे अनुशासनों के अध्ययनों से ऊब चला है और अन्तरानुशासनिक ;इंटरडिसिपि्लनरी) अध्ययनों की ओर मुड़ रहा है जहाँ नये–नये विमर्श, उनके नये रंग–रेशे एक–दूसरे में घुलते–मिलते हैं। नयी सदी का पाठक ग्लोबल माइंड का है और भूमंडलीकरण, उदारतावाद, तकनीक, मीडिया, उपभोक्ता, मानवाधिकारवाद, पर्यावरणवाद, स्त्रीत्ववाद, दलितवाद उत्तर–आधुनिक विमर्श, उत्तर–संरचनावादी, चिन्ह, शास्त्रीय विमर्श इत्यादि तथा उनके नये–नये सन्दर्भों, उपयोगों को पढ़ना– समझना चाहता है। थियरीज के इसी ‘हाइपर रीयल’ में उसे पढ़ना होता है। साहित्य भी इस प्रक्रिया में बदल रहा है। प्ााठक भी। ‘वाक्’ इन तमाम नित नए विमर्शों से अपने नये पाठक को लैस करने का प्रयत्न है। ‘वाक्’ हिन्दी में पहली बार ‘परिसर रचना’ की अवधारणा प्रस्तुत कर रहा है।