राजनीति कोमल दिल कलाकारों के लिए नहीं है, "यह देव आनंद की किसी फिल्म का डायलॉग नहीं, बल्कि राजनीति के मैदान में कूदने का मन बना चुके और उससे भरोसा टूटने के बाद बोले गए उनके शब्द हैं। यकीन नहीं होता, जिस कलाकार ने सिल्वर स्क्रीन को इश्क करना सिखाया, जिसने गाइड के जरिये मोक्ष को यह कहकर जिया कि, “न सुख है, न दुख है, न दीन है, न दुनिया। न इंसान, न भगवान... सिर्फ मैं हूं, मैं हूं, मैं हूं, मैं... सिर्फ मैं”, वह कलाकार राजनीति से प्रभावित रहा और राजनीतिकों के बीच अपने फिल्मी सफर को जीता भी रहा।
ठीक 100 बरस पहले 1923 में पंजाब के गुरदासपुर में जन्मे देव आनंद ने बीस बरस की उम्र में ही अपने सपनों के शहर बंबई जाने के बारे में सोच लिया था। जुलाई 1943 में जेब में 30 रुपये लिए उन्होंने लाहौर रेलवे स्टेशन से फ्रंटियर मेल पकड़ी और बंबई पहुंच गए। तब उन्होंने सपने में भी नहीं सोचा था कि जिस लाहौर से वे बंबई पहुंचे, उसी लाहौर में वापस जाने का रास्ता भारत और पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्रियों के जरिये मुमकिन हो सकेगा। उनके बंबई पहुंचने के चार साल के भीतर ही भारत का विभाजन हो गया। छप्पन बरस बाद एक दिन देर शाम दिल्ली के प्रधानमंत्री कार्यालय से उन्हें फोन आया कि प्रधानमंत्री वाजपेयी उनसे बात करना चाहते हैं। वाजपेयी ने उनसे कहा, "कल सुबह तैयार रहिएगा। कुछ अधिकारी आपके घर पहुंचेंगे। आप दिल्ली आइए। हां, अपना पासपोर्ट जरूर रख लीजिएगा। आपको हमारे साथ लाहौर चलना है। आपके चाहने वाले पड़ोसी मुल्क में भी हैं।” प्रधानमंत्री वाजपेयी के मुताबिक, बस से लाहौर जाने से पहले उन्होंने जब पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ से पूछा कि उनके लिए भारत से क्या लाएं, तो नवाज शरीफ बोले थे, “ला सकते हैं तो देव आनंद को ले आइए।" उसके बाद देव आनंद और नवाज शरीफ अक्सर लंदन के हाइड पार्क में टहलते, गुफ्तगू करते नजर आए।
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