चार दशक पहले की बात है। तब आंध्र प्रदेश बंटा नहीं था और 1983 के असेंबली चुनाव होने वाले थे। हरी शेवरले वैन को बदल कर बनाया एक रथ पूरे राज्य में लगातार दौड़ रहा था। कभी-कभार और कहीं-कहीं वह रुक जाता था। उस रथ पर सवार थे नंदमुरी तारक रामा राव यानी लोगों के प्रिय एनटीआर, जिनके चाहने वालों की संख्या लाखों में थी। हर कोई सांस रो बस इसी इंतजार में होता था कि एक बार अपने प्यारे अन्ना का चेहरा दिख जाए। एनटीआर ने अपनी फिल्मों में कृष्ण, कर्ण और दुर्योधन के किरदार निभाए थे, लेकिन इस चुनाव में उन्हें देखने वालों का तांता किरदारों की लोकप्रियता के कारण नहीं था । उन्होंने दरअसल तभी एक नई राजनीतिक पार्टी बनाई थी। उसका नाम था तेलुगुदेसम पार्टी और नारा था तेलुगु आत्मसम्मान।
कुल 75000 किलोमीटर की दूरी नापने वाले उस रथ की ताकत से एनटीआर ने सूबे की कांग्रेसी सरकार को उखाड़ फेंका और राजनीति में एक नए युग का आगाज किया। दक्षिण भारत की राजनीति में इससे पहले ऐसा कभी नहीं देखा गया था।
चार दशक बाद एनटीआर के पौत्र और टॉलीवुड के स्टार एनटी रामाराव जूनियर से मिलने जब केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह हैदराबाद पहुंचे, तो कुछ लोगों ने इसे 'शिष्टाचार भेंट' का नाम दिया। लेकिन अधिकतर लोगों को इसमें कुछ अचरज जैसा महसूस नहीं हुआ। भाजपा ने इस मुलाकात के बारे में यह प्रचार कर रखा था कि एसएस राजामौलि की फिल्म आरआरआर में जूनियर के अभिनय की सराहना करने शाह गए थे। इस फिल्म में जूनियर ने एक काल्पनिक पात्र कोमाराम भीम का किरदार निभाया था, जिसे तेलंगाना का सम्मानित आदिवासी नेता बताया गया था। फिल्म इतिहासकारों और आदिवासी कार्यकर्ताओं का कहना था कि इस मुलाकात के पीछे भाजपा द्वारा आदिवासी नेताओं को अपने पाले में खींचने और वोट पाने के लिए टॉलीवुड के सितारों का इस्तेमाल करने की रणनीति है।
आरआरआर का टीजर रिलीज होने के बाद भाजपा के एक आदिवासी सांसद सोयम बापू राव ने इस बात पर एतराज जताया था कि भीम को तावीज, मुस्लिम टोपी और पठानी कुर्ता पाजामा पहने हुए दिखाया गया। उनका दावा था कि "भीम एक हिंदू था जो इस्लामी शासन के खिलाफ लड़ रहा था।" इस इलाके के आदिवासी इस दावे को खारिज करते हैं।
This story is from the May 13, 2024 edition of Outlook Hindi.
Start your 7-day Magzter GOLD free trial to access thousands of curated premium stories, and 8,500+ magazines and newspapers.
Already a subscriber ? Sign In
This story is from the May 13, 2024 edition of Outlook Hindi.
Start your 7-day Magzter GOLD free trial to access thousands of curated premium stories, and 8,500+ magazines and newspapers.
Already a subscriber? Sign In
जाति और जनतंत्र
पत्रकार और इतिहासकार अरविंद मोहन की जातियों का लोकतंत्र शृंखला की महत्वपूर्ण पुस्तक है, जाति और चुनाव। विशेष कर 18वीं लोकसभा के चुनाव के मौके पर इसका महत्व और बढ़ जाता है।
बिसात पर भारत की धाक
देश के प्रतिभावान खिलाड़ी इस खेल में अपनी प्रतिभा का लोहा मनवा रहे हैं और नई-नई प्रतिभाओं की आमद हो रही है
परदे पर राम राज की वापसी
आज राम रतन की चमक छोटे और बड़े परदे पर साफ दिख रही है, हर कोई राम नाम की बहती गंगा में हाथ धोना चाहता है
ईवी बिक्री की धीमी रफ़्तार
कीमतें घटने के बावजूद इलेक्ट्रिक गाड़ियों की उम्मीद के मुताबिक नहीं बढ़ी
उखड़ते देवदार उजड़ती शिमला
पहाड़ों की रानी शिमला आधुनिक निर्माण के लिए पेड़ों की भारी कटाई से तबाह होती जा रही, क्या उस पर पुनर्विचार किया जाएगा
कंगना का चुनावी कैटवॉक
मंडी का सियासी अखाड़ा देवभूमि की गरिमा को ठेस पहुंचा रहा
जोर दोनों तरफ बराबर
दो पूर्व मुख्यमंत्री और एक केंद्रीय मंत्री के लिए चुनाव प्रतिष्ठा का सवाल, लेकिन मतदाताओं की उदसीनता बनी चुनौती
बागियों ने बनाया रोचक
बागियों और दल-बदल कर रहे नेताओं के कारण इस बार राज्य में चुनाव हुआ रोचक, दारोमदार आदिवासी वोटों पर
एक और पानीपत युद्ध
भाजपा की तोड़ में हुड्डा समर्थकों और जाति समीकरणों पर कांग्रेस का दांव
संविधान बना मुद्दा
यूपी में वोटर भाजपा समर्थक और विरोधी में बंटा, पार्टी की वफादारी के बजाय लोगों पर जाति का दबाव सिर चढ़कर बोल रहा, बाकी सभी मुद्दे वोटरों की दिलचस्पी से गायब दिख रहे