श्रीरामजी, दशरथजी और कौसल्याजी का तात्त्विक अर्थ
Rishi Prasad Hindi|March 2024
मंगलमय संदेश - श्रीराम नवमी पर विशेष
श्रीरामजी, दशरथजी और कौसल्याजी का तात्त्विक अर्थ

यह भारतभूमि का बड़ा प्रभाव है कि जो निर्गुण-निराकार है उसको हम सगुण-साकार करने में सक्षम हो जाते हैं और साकार हमारी उन्नति करने के लिए सब कुछ कर लेता है।

१७ अप्रैल को भगवान श्रीरामजी का अवतरण दिवस 'श्रीराम नवमी' है। त्रेतायुग में इसी दिन निर्गुण-निराकार परब्रह्म-परमात्मा अयोध्या में श्रीरामजी के रूप में अवतरित हुए थे। उन श्रीरामचन्द्रजी को हर युग में, हर घर में, प्रत्येक हृदय में अवतरित किया जा सकता है, कैसे? जानते हैं तत्त्ववेत्ता संत श्री आशारामजी बापू की अनुभवसम्पन्न अमृतवाणी द्वारा:

रामजी का प्राकट्य कहाँ होता है?

रावण के वध, दैत्य- दानवों के विनाश, धर्म की प्रतिष्ठा एवं सज्जनों के परित्राण यानी सब ओर से रक्षा करने के लिए चैत्र शुक्ल नवमी को स्वयं श्रीहरि रामरूप में अवतीर्ण हुए।

रामजी कहाँ जन्म लेते हैं? अयोध्या में, जहाँ लड़ाई-झगड़ा, राग-द्वेष, चिंता, भय, शोक नहीं है, किसीके घर पर ताला नहीं है। 'अयोध्या'... जहाँ युद्ध नहीं, अयुद्ध रहे अर्थात् बुद्धि न काम में फँसे न क्रोध में फँसे, न सफलता में हर्षित हो न विफलता में उद्विग्न हो। जहाँ समता है, शांति है, माधुर्य है, एक-दूसरे को समझने की सुयोग्यताएँ हैं। 'अवध'... जहाँ वध करने या वध की इच्छा रखने वाले लोग नहीं हैं। 

रामजी कहाँ प्रकट होते हैं? कौसल्या के यहाँ। ‘कौसल्या' अर्थात् जो कुशलबुद्धि है। महामति माँ कौसल्या हार-श्रृंगार में रुचि नहीं रखतीं, एकांत, मौन उनको प्रिय है और गुरुदेव के वचनों में रुचि है।

Bu hikaye Rishi Prasad Hindi dergisinin March 2024 sayısından alınmıştır.

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एकमात्र सुरक्षित नौका
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बड़ा रोचक, प्रेरक है शबरी के पूर्वजन्म का वृत्तांत
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एक बार एक राजा रानी के साथ यात्रा करके लौट रहा था। एक गाँव में संत चबूतरे पर बैठ सत्संग सुना रहे थे और ५-२५ व्यक्ति धरती पर बैठकर सुन रहे थे।

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गुरुपूर्णिमा निकट आ रही है। इस अवसर पर ब्रह्मानुभवी महापुरुषों द्वारा अपने शिष्यों की गढ़ाई और सत्शिष्यों द्वारा ऐसी कसौटियों में भी निर्विरोधता, अडिग श्रद्धा-निष्ठा और समर्पण युक्त आचरण का वृत्तांत सभी गुरुभक्तों के लिए पूर्ण गुरुकृपा की प्राप्ति का राजमार्ग प्रशस्त करनेवाला एवं प्रसंगोचित सिद्ध होगा।

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एक राजपुत्र की आत्मबोध की यात्रा
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पराशरजी अपने शिष्य मैत्रेय को आत्मज्ञानबोधक उपदेश देते हुए एक राजपुत्र की कथा सुनाते हैं :

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गुरुभक्ति की इतनी भारी महिमा क्यों है?
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