मैं भक्तन को दास
Rishi Prasad Hindi|December 2022
एक संत थे जिनका नाम था जगन्नाथदास महाराज। वे भगवान को प्रीतिपूर्वक भजते थे। वे जब वृद्ध हुए तो थोड़े बीमार रहने लगे।
पूज्य बापूजी
मैं भक्तन को दास

उनके मकान की ऊपरी मंजिल पर वे स्वयं और नीचे उनके शिष्य रहते थे। रात को एक-दो बार बाबा को दस्त लग जाते थे इसलिए खट-खट की आवाज करते तो कोई एक शिष्य आ जाता और उनका हाथ पकड़कर उन्हें शौचालय में ले जाता। बाबा की सेवा करनेवाले वे शिष्य जवान लड़के थे। एक रात जब बाबा ने खटखटाया तो कोई आया नहीं। 

बाबा बोले : “अरे, कोई आया नहीं ! बुढ़ापा आ गया प्रभु !’’

इतने में एक युवक आया और बोला : "बाबा! मैं आपकी मदद करता हूँ।"

बाबा का हाथ पकड़कर वह उन्हें शौचालय में ले गया। फिर हाथ-पैर धुलाकर बिस्तर पर लेटा दिया। जगन्नाथदासजी ने सोचा : ‘यह कैसा सेवक है कि इतनी जल्दी आ गया ! इसके स्पर्श से आज अच्छा लग रहा है, आनंद - आनंद आ रहा है।'

जाते-जाते वह युवक लौटकर आया और बोला : ‘‘बाबा ! जब भी आप ऐसे खट-खट करोगे न, तो मैं आ जाया करूँगा। आप केवल विचार भी करोगे कि 'वह आ जाय' तो मैं आ जाया करूँगा।''

"बेटा ! तुम्हें कैसे पता चलेगा ?"

"मुझे पता चल जाता है।"

"अच्छा ! रात को सोता नहीं क्या?"

Bu hikaye Rishi Prasad Hindi dergisinin December 2022 sayısından alınmıştır.

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