सोमनाथ हिन्दुत्व के पुन: निर्माण का प्रतीक
Kendra Bharati - केन्द्र भारती|February 2023 Issue
हिन्दू प्रजा की आस्था का प्रतीक भगवान सोमनाथ का मन्दिर बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक प्रमुख ज्योतिर्लिंग है।
श्री महिपतभाई खुमाण व श्रीमती जानकी शैलेष वैद्य
सोमनाथ हिन्दुत्व के पुन: निर्माण का प्रतीक

हिरण और सरस्वती जैसी नदियों ने इस प्रभास क्षेत्र को उर्वर एवं सौंदर्य से भरपूर बनाया है। देश के कोने-कोने से यात्री भगवान सोमेश्वर के दर्शन हेतु आते रहते हैं। कन्हैयालाल मुन्शी अपनी नवलकथा "जय सोमनाथ लिखते हैं में “किसी चुम्बक से खींचे जाने की भाँति यात्री सोमनाथ के परम पावन शिवालय की ओर आकृष्ट होकर आते ही रहते थे....आते ही । रहते थे... हजारों की संख्या में वे आते थे एक ही कर्तव्यदृष्टि को सामने रखते हुए देव दर्शन और उनके कानों में एक ही पुण्यनाद गूंजता था ‘जय वल था सोमनाथ'।

 प्राचीन काल में प्रभास शैवमत के पाशुपत सम्प्रदाय का मुख्य केन्द्र था। अनेक योगी, ऋषि, आचार्य, पाशुपात, विद्वान, पण्डित यहाँ आकर बसे थे। अनेक आश्रम तथा गुरुकुलों से यह क्षेत्र भरा पड़ा था।

सोमनाथ का सर्वप्रथम मन्दिर किसने बनवाया, इस विषय में अनेक पौराणिक एवं ऐतिहासिक तथ्य सामने आए हैं। प्राप्य ऐतिहासिक प्रमाणों के अनुसार, ईसा की पहली शताब्दी में पाशुपताचार्य सोम शर्मा ने इसे बनवाया था। उन्हीं के कारण सोमनाथ का क्षेत्र पाशुपत सम्प्रदाय का केन्द्र बना। समय के साथ मन्दिर जीर्ण हुआ। यल्लभी के मैत्रक वंशीय राजा धारसेन (चतुर्थ) ने दूसरा मन्दिर बनवाया था। ईसा की आठवीं या नौवीं शताब्दी में मन्दिर के जीर्ण होने के कारण गुजरात के चालुक्य (सोलंकी) राजाओं ने उसे फिर से बनवाया। लाल पत्थरों से निर्मित यह मन्दिर सौंदर्य और कला का उत्तम उदाहरण रूप था । इसकी सुन्दरता तथा समृद्धि का वर्णन करते हुए ईरानी यात्री ईन-असीर लिखते हैं कि "सोमनाथ का मन्दिर ५६ खम्भों पर खड़ा था। हर खम्भे पर मूल्यवान हीरे-माणिक जड़े हुए थे। रत्न जड़ित दीपकों से मन्दिर को प्रकाशित किया जाता था। २०० मन सोने की जंजीरों से घंटे को लटकाया गया था। एक हजार ब्राह्मण प्रतिदिन पूजा-अर्चना करते थे। दस हजार गांव मन्दिर को भेंट स्वरूप अर्पित थे। भारत में जो कुछ भी मूल्यवान था वह सोमनाथ को समर्पित समर्पित किया।

सोमनाथ पर प्रथम आक्रमण

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