इस बजट की विषयवस्तु और भावना कुछ हद तक परंपरावादी है, लेकिन 2023-24 के बजट में भारत को विश्व स्तर पर बड़े खिलाड़ियों की कतार में ले जाने की भव्य दृष्टि निहित है। यह बजट 2047 के भारत की नींव रखता है। उस समय तक भारत एक ऐसी स्वतंत्र, समावेशी और विकसित अर्थव्यवस्था के रूप में विकसित होना चाहेगा, जो टिकाऊ भी हो। उस शताब्दी वर्ष की दृष्टि से 45 लाख करोड़ रुपये का यह बजट 'अमृत काल' को सबसे अच्छे ढंग से रेखांकित करता है। माने अभी हमारे पास वहां तक पहुंचने और उतना बड़ा होने के लिए 25 वर्ष का अंतराल है।
विजन 2047
वास्तव में, राष्ट्रपति के अभिभाषण और बजट पूर्व आर्थिक सर्वेक्षण, दोनों में भारत के शताब्दी वर्ष वाली रेखा देखी जा सकती है। 2047 के लिए जो भव्य दृष्टि प्रस्तुत की गई है, उनमें महिला सशक्तीकरण, हमारे विशाल मानव संसाधन का कौशल विकास, पर्यटन उद्योग का विस्तार और हरित विकास के क्षेत्रों को शामिल किया गया है। नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा निर्धारित सात प्राथमिकताएं भारत के आर्थिक और विकास प्रतिमान को नए सिरे से आकार देने का संकेत करती हैं। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने इन प्राथमिकताओं को, इस देश को सहस्राब्दियों तक निर्देशित करने वाले 'सप्तऋषियों' का नाम देकर बजट को एक सभ्यतागत जुड़ाव दिया है। इस सरकार के दस बजटों में से लगातार पांच बजट प्रस्तुत करके सीतारमण अब एक अनुभवी बजटकार हैं। इसके बावजूद उनकी दृष्टि लगातार व्यापक, वृहद् आर्थिक मूलभूत तत्वों पर बनी रही। उन्होंने सारे अनुभव के बावजूद बहुत सतर्कता से काम लिया और राजकोषीय मजबूती को बनाए रखने पर ध्यान दिया। उन्होंने किसी और सरकार की तरह चुनावी वर्ष में 'लापरवाही से खर्च' या भारी-भरकम अपव्यय करने का आसान विकल्प नहीं अपनाया।
नियंत्रण में घाटा
Bu hikaye Panchjanya dergisinin PANCHJANYA 12 Feb 2023 sayısından alınmıştır.
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शिक्षा, स्वावलंबन और संस्कार की सरिता
रुद्रपुर स्थित दूधिया बाबा कन्या छात्रावास में छात्राओं को निःशुल्क शिक्षा के साथ-साथ संस्कार और स्वावलंबन का पाठ पढ़ाया जा रहा। इस अनूठे छात्रावास के कार्यों से अनेक लोग प्रेरणा प्राप्त कर रहे
शिवाजी पर वामंपथी श्रद्धा!!
वामपंथियों ने छत्रपति शिवाजी की जयंती पर भाग्यनगर में उनका पोस्टर लगाया, तो दिल्ली के जेएनयू में इन लोगों ने शिवाजी के चित्र को फाड़कर फेंका दिया। इस दोहरे चरित्र के संकेत क्या हैं !
कांग्रेस के फैसले, मर्जी परिवार की
कांग्रेस में मनोनीत लोगों द्वारा 'मनोनीत' फैसले लिये जा रहे हैं। किसी उल्लेखनीय चुनावी जीत के बिना कांग्रेस स्वयं को विपक्षी एकता की धुरी मानने की जिद पर अड़ी है जो अन्य को स्वीकार्य नहीं हैं। अधिवेशन में पारित प्रस्ताव बताते हैं कि पार्टी के पास नए विचार के नाम पर विफलताओं का जिम्मा लेने के लिए खड़गे
फूट ही गया 'ईमानदारी' का गुब्बारा
अरविंद केजरीवाल सरकार की 'कट्टर ईमानदारी' का ढोल फट चुका है। उनकी कैबिनेट के 6 में से दो मंत्री सलाखों के पीछे। शराब घोटाले में सीबीआई और प्रवर्तन निदेशालय की जांच की आंच कभी भी केजरीवाल तक पहुंच सकती है
होली का रंग तो बनारस में जमता था
होली के मौके पर होली गायन की बात न चले यह मुमकिन नहीं। जब भी आपको होली, कजरी, चैती याद आएंगी, पहली आवाज जो दिमाग में उभरती है उसका नाम है- गिरिजा देवी। वे भारतीय संगीत के उन नक्षत्रों में से हैं जिनसे हिन्दुस्थान की सुबहें आबाद और रातें गुलजार रही हैं। उनका ठेठ बनारसी अंदाज। सीधी, खरी और सधुक्कड़ी बातें, लेकिन आवाज में लोच और मिठास। आज वे हमारे बीच नहीं हैं। अब उनके शिष्यों की कतार हिन्दुस्थानी संगीत की मशाल संभाल रही है। गिरिजा देवी से 2015 में पाञ्चजन्य ने होली के अवसर पर लंबी वार्ता की थी। इस होली पर प्रस्तुत है उस वार्ता के खास अंश
आनंद का उत्कर्ष फाल्गुन
भक्त और भगवान का एक रंग हो जाना चरम परिणति माना जाता है और इसी चरम परिणति की याद दिलाने प्रतिवर्ष आता है धरती का प्रिय पाहुन फाल्गुन। इसीलिए वसंत माधव है। राधा तत्व वह मृदु सलिला है जो चिरंतन है, प्रवाहमान है
नागालैंड की जीत और एक मजबूत भाजपा
नेफ्यू रियो 5वीं बार नागालैंड के मुख्यमंत्री बनने जा रहे हैं।
सूर्योदय की धरती पर फिर खिला कमल
त्रिपुरा और नागालैंड की जनता ने शांति, विकास और सुशासन के भाजपा के तरीके पर अपनी स्वीकृति की मुहर लगाई है। मेघालय में भी भाजपा समर्थित सरकार बनने के पूरे आसार। कांग्रेस और वामदल मिलकर लड़े, लेकिन बुरी तरह परास्त हुए और त्रिपुरा में पैर पसारने की कोशिश करने वाली तृणमूल कांग्रेस को शून्य से संतुष्ट होना पड़ा
जीवनशैली ठीक तो सब ठीक
कोल्हापुर स्थित श्रीक्षेत्र सिद्धगिरि मठ में आयोजित पंचमहाभूत लोकोत्सव का समापन 26 फरवरी को हुआ। इस सात दिवसीय लोकोत्सव में लगभग 35,00,000 लोग शामिल हुए। इन लोगों को पर्यावरण को बचाने का संकल्प दिलाया गया
नाकाम किए मिशनरी
भारत के इतिहास में पहली बार बंजारा समाज का महाकुंभ महाराष्ट्र के जलगांव जिले के गोद्री ग्राम में संपन्न हुआ। इससे पहली बार भारत और विश्व को बंजारा समाज, संस्कृति एवं इतिहास के दर्शन हुए। एक हजार से भी ज्यादा संतों और 15 लाख श्रद्धालुओं ने इसमें भाग लिया। इससे बंजारा समाज को हिन्दुओं से अलग करने और कन्वर्ट करने की मिशनरियों की साजिश नाकाम हो गई