धर्मनिरपेक्ष संविधान की रक्षा के लिए कहने को बनाए गए नए संसद भवन का उद्घाटन नरेंद्र मोदी ने पूरे धार्मिक रीतिरिवाजों से किया, जैसे एक सम्राट सिंहासन पर ऋषिमुनियों की उपस्थिति में गद्दी पर बैठ रहा हो. इस अवसर पर आदिवासी दलित राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को भी नहीं बुलाया गया क्योंकि वह विधिविधान के खिलाफ होता.
मुंबई पर आतंकी हमला होने के एक महीने बाद मुंबई के जब ताज और ओबराय होटल खुले, दोनों जगहों पर लोगों ने मृत आत्माओं की शांति और बुरी छायाओं से मुक्ति के लिए पूजाअर्चना व विशेष धार्मिक अनुष्ठान किया. इस विशेष पूजा अनुष्ठान में अनेक कंप्यूटर कंपनियां चलाने वाले टाटा ग्रुप के चेयरमैन रतन टाटा भी शामिल हुए थे.
भाजपा सरकार आमतौर पर मंत्रिमंडल की पहली बैठक की शुरुआत गणेश की पूजाअर्चना से करती है. मध्य प्रदेश में शिवराज सिंह चौहान ने पत्नी के साथ नर्मदा नदी के तट पर पहुंच कर नर्मदा मां का अभिषेक किया, चुनरी ओढ़ाई, जबकि वे दूसरी पार्टी के आए विधायकों के दलबदल के कारण मुख्यमंत्री बने थे.
चुनावों में टिकट पाने, जीतने के लिए नेताओं द्वारा तरहतरह के धार्मिक हथकंडे आजमाए जाते हैं. हाल ही में भारत के चंद्रयान 3 की सफलता और क्रिकेट विश्वकप मैचों के लिए पूजापाठ, हवन अनुष्ठान कराने की खबरें चर्चा में रहीं.
हमारे देश में लोगों की कार्यसंस्कृति पर किस कदर धार्मिक रंग चढ़ा हुआ है, यह साफ दिखाई दे रहा है और वैज्ञानिक तक इस से निकल नहीं पा रहे हैं. लोगों की कार्यसंस्कृति धर्म से बेहद जुड़ी हुई हैं. यह संस्कृति आज की नहीं, सदियों पुरानी है. यहां पगपग पर धर्म के रीतिरिवाजों, रूढ़ियों की छाप दिखाई देती है. एक पैर चांद पर तो दूसरा रूढ़िवाद की बेड़ियों में जकड़ा नजर आता है.
पिछले कुछ समय से अमीर देशों में बाहरी लोगों का आगमन काफी बढ़ा है. वहां भी लोगों के कामकाज में पिछले देशों वाला धार्मिक असर साफ दिखाई पड़ने लगा है. विविध धर्म, संस्कृतियों के कारण कहीं कहीं तो लोगों का टकराव सामने आ रहा है तो कहीं नएपुराने के घालमेल की इजाजत दी जा रही है.
Bu hikaye Sarita dergisinin March Second 2024 sayısından alınmıştır.
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फिल्मों में कैंसर लोगों को बीमारी के बारे में बताया या सिर्फ इसे भुनाया
लाइलाज बीमारी कैंसर का हिंदी फिल्मों से ताल्लुक कोई 60 साल पुराना है. 1963 में सी वी श्रीधर निर्देशित राजकुमार, मीना कुमारी और राजेंद्र कुमार अभिनीत फिल्म 'दिल एक मंदिर' में सब से पहले कैंसर की भयावहता दिखाई गई थी लेकिन 'आनंद' के बाद कैंसर पर कई फिल्में बनीं जिन में से कुछ चलीं, कुछ नहीं भी चलीं जिन की अपनी वजहें भी थीं, मसलन निर्देशकों ने कैंसर को भुनाने की कोशिश ज्यादा की.
मोबाइल नंबर की अनिवार्यता
आज मोबाइल हमारे जीवन का जरूरी अंग बना दिया गया है. हम चाह कर भी इस के बिना नहीं रह सकते. सभी चीजें औनलाइन कर दी गई हैं. कुछ काम तो सिर्फ औनलाइन तक ही सीमित रह गए हैं. ऐसे में एक गरीब को भी मोबाइल खरीदना जरूरी हो गया है.
घर में बनाएं जिम
जिम में जा कर ऐक्सरसाइज करने से अधिक सुविधाजनक यह है कि घर में ही अपना जिम बनाएं घर के जिम में आवश्यक ऐक्सरसाइज इक्विपमैंट ही रखें, जिस से कम बजट में इस को तैयार किया जा सके.
अधेड़ उम्र में शादी पर सवाल कैसा
आयु का इच्छाओं से कोई संबंध नहीं है. अगर आप अपने बलबूते पर, खुद के भरोसे 60 वर्ष की आयु में भी शरीर बनाना चाहते हैं, दुनिया की सैर करना चाहते हैं, किसी हसीना के साथ डेट पर जाना चाहते हैं या शादी करना चाहते हैं तो भई, इस पर सवाल कैसा?
गरमी में भी सब्जियों और फलों को ऐसे रखें ताजा
गरमी में सब्जियां, खासकर हरी सब्जियां, जल्दी खराब होती हैं. ऐसे में वे आसान तरीके जानिए जिन से सब्जियों को जल्दी खराब होने से बचाया जा सकता है.
वौयस क्लोनिंग का खतरा
आजकल वौयस क्लोनिंग के जरिए महिलाओं को बेवकूफ बनाया जा रहा है. एआई की मदद से प्रेमी, भाई या किसी अन्य परिजन की आवाज में कौल कर पैसे ऐंठे जा रहे हैं जो डिजिटलीकरण की कमियां दिखा रहा है.
जीने की आजादी है महिलाओं का बाइक चलाना
पुरुषों के लिए बाइक चलाना सामान्य बात मानी जाती है मगर कोई महिला बाइक चलाए तो उसे हैरान नजरों से देखा जाता है.
हीनता और वितृष्णा का प्रतीक पादुका पूजन
भारत में गुरु तो गुरु, उन की पादुकाएं तक पैसा कमाती हैं. इसे चमत्कार कहें या बेवकूफी, यह अपने देश में ही होना संभव है. धर्मगुरुओं ने प्रवचनों के जरिए लोगों में आज कूटकूट कर इतनी हीनता भर दी है कि वे मानसिक तौर पर अपाहिज हो कर रह गए हैं.
फ्रांस में गर्भपात पर फैसला मेरा शरीर मेरा हक
फ्रांस में गर्भपात कानून में बदलाव के बाद पूरी दुनिया में इस पर बहस छिड़ गई है कि इस का नतीजा क्या होगा?
बाल्टीमोर ब्रिज हादसा पुल के साथ ढहा भारतीय आत्मसम्मान
अमेरिका और अमेरिकी बहुत ज्यादा उदार नहीं हैं. विदेशियों, खासतौर से अश्वेतों के प्रति उन के पूर्वाग्रह, कुंठा, जलन और हिंसा सहित तमाम तरह के भेदभाव दैनिक सामाजिक जीवन का हिस्सा हैं जिन की तुलना हमारे देश में दलितों से किए जाने वाले व्यवहार से की जा सकती है. बाल्टीमोर पुल हादसे के बाद यह बात एक बार फिर साबित हुई है कि हमारी सरकार ने इस से कोई सरोकार नहीं रखा.