कला किसी मनुष्य की जन्मजात प्रतिभा होती है. किसी में चित्रकारी तो किसी में गायिकी या अभिनय और नृत्य का जन्मजात गुण होता है. अधिकांश कलाकारों में दो या तीन कलाएं एकसाथ पाई जाती हैं, मगर दुनिया की नजर में वह किसी एक कला में ही पारंगत दिखाई देता है. उस की अन्य कलाओं को या तो मंच नहीं मिलता या उन को डैवलप करने का उन्हें वक्त नहीं मिलता. कई बार कलाकार की एक कला ही इतनी हावी हो जाती है कि उस की दूसरी कलाओं की तरफ किसी का ध्यान ही नहीं जाता.
फिल्म इंडस्ट्री में कई ऐसे कलाकार हैं जिन्होंने अभिनय के क्षेत्र में तो अपनी बड़ी पहचान बनाई लेकिन कम ही लोगों को उन की अन्य प्रतिभाओं के बारे में मालूम चला. जैसे यह बात बहुत कम लोग जानते होंगे कि रेखा गजब की अभिनेत्री तो हैं मगर एक बहुत अच्छी गायिका भी हैं और गजल गायिकी में हर शेर के साथ उन की जो भावनाएं उबलती हैं उस का कोई जवाब नहीं. अधिकतर गजल गायक गजल की रूह तक नहीं उतर पाते और ऊपरऊपर से गा कर निकल जाते हैं, मगर रेखा सिर्फ गाती ही नहीं, बल्कि गीत के एकएक शब्द में उतर जाती हैं और सुनने वाले को भी उतार लाती हैं वे.
70 के दशक में जब फिल्म इंडस्ट्री में राजेश खन्ना, अमिताभ बच्चन, जितेंद्र, विनोद खन्ना, संजीव कुमार जैसे ऐक्टर्स का बोलबाला था, उसी दौर में उत्तरपूर्वी भारत से आए शेरिंग फिनसो डेन्जोंगपा, जिन्हें हम डैनी डेन्जोंगपा के नाम से बुलाते हैं, ने इंडस्ट्री में अपने अभिनय और अपनी आवाज से तहलका मचा दिया था.
दरअसल, सिक्किम के रहने वाले डैनी डेन्जोंगपा जब मुंबई आए तो उन्होंने अपने फिल्मी कैरियर की शुरुआत एक प्लेबैक सिंगर के तौर पर ही की थी. उन के प्लेबैक का आरंभ लता मंगेशकर के साथ गाए 'मेरा नाम आओ, मेरे पास आओ...' गीत से हुआ था. फिर उन्होंने आशा भोंसले के साथ फिल्म 'काला सोना' में एक गीत 'सुन सुन कसम से, लागूं तेरे कदम से रहा जाए न हम से, गले लग जा...' गाया जो सुपरडुपर हिट हुआ और जिसे काफी समय तक लोग प्लेबैक सिंगर शैलेंद्र सिंह का गाया गीत समझते रहे.
Bu hikaye Sarita dergisinin March First 2024 sayısından alınmıştır.
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