23 मई, 2023 को सिविल सर्विसेस एग्जामिनेशन 2022 का रिजल्ट आउट हुआ. पहले 4 स्थानों पर लड़कियों का कब्जा था. 7वें स्थान पर कश्मीरी मुसलिम वसीम अहमद भट और इस के बाद पूरी लिस्ट पर नजर दौड़ाई तो मालूम चला कि कुल 933 उम्मीदवारों में सिर्फ 30 मुसलिम उम्मीदवार देश की प्रशासनिक सेवा के लिए चयनित हुए हैं.
प्रशासनिक सेवा में चुने गए इन युवाओं में 20 लड़के हैं और 10 लड़कियां. आज देश की कुल आबादी में मुसलमानों की तादाद लगभग 14 प्रतिशत है. इस को देखते हुए प्रशासनिक सेवा के लिए चुने गए मुसलिम उम्मीदवारों की यह संख्या बेहद कम है. यानी, कुल उम्मीदवार का सिर्फ 3.45 प्रतिशत अगर अपनी आबादी के मुताबिक मुसलिम उम्मीदवार इस परीक्षा में कामयाब होते तो उन की संख्या लगभग 130 होनी चाहिए थी. ऐसा क्यों नहीं हुआ?
भारतीय मुसलिम युवाओं का प्रशासनिक सेवा और सेना में ही नहीं, बल्कि हर सरकारी क्षेत्र में बहुत कम प्रतिनिधित्व है. एमबीबीएस, इंजीनियरिंग, राजनीति, कानून किसी भी क्षेत्र में मुसलमानों की संख्या मुसलिम आबादी के अनुपात में ऐसी नहीं है जिसे अच्छा कहा जा सके. ऐसा नहीं है कि मुसलमान बच्चे पढ़ नहीं रहे हैं. शहरी क्षेत्रों में कम आयवर्ग के मुसलमान परिवार भी अब अपने बच्चों को मदरसे में न भेज कर स्कूलों में भेज रहे हैं.
मध्यवर्गीय परिवार के बच्चे सरकारी और प्राइवेट स्कूलों में पढ़ रहे हैं तो वहीं पैसे वाले घरों के युवा अच्छे और महंगे इंग्लिश मीडियम स्कूलकालेजों में हैं. बावजूद इस के, सरकारी क्षेत्रों में ऊंचे पदों पर उन की संख्या उंगली पर गिनने लायक है. न सेना में उन की संख्या दिख रही है और न पुलिस में आखिर इस की क्या वजहें हैं?
Bu hikaye Sarita dergisinin July-I 2023 sayısından alınmıştır.
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निसंतानता पर फिल्में क्यों नहीं
देर से शादी, फर्टिलिटी रेट के गिरने व अन्य कारणों के चलते आजकल कपल्स के बीच निसंतानता बड़ी समस्या बन कर उभरी है. लेकिन इतने बड़े मुद्दे पर फिल्में नहीं बन रहीं. आखिर वजह क्या है, जानिए.
सर जी मी टू
मैं अपना बोरियाबिस्तर बांध आप के चार्टर यान की राह में पलकें बिछाए तैयार बैठा हूं, हे असंतुष्टों के नाथ, मैं आप के करकमलों द्वारा अपने गले में इज्जत का पट्टा डलवाने को बेकरार हूं.
बच्चों को रिस्क उठाने दें
बच्चा अगर धूप, धूल और मिट्टी में खेलना चाहता है तो उसे खेलने दीजिए, वह अगर पेड़ और पहाड़ पर चढ़ना चाहता है तो उसे चढ़ने दीजिए, वह अगर ऐसी कोई दूसरी एक्टिविटी, जो आप को जोखिमपूर्ण लगती हो, में शामिल होना चाहता है तो उसे रोकिए मत ताकि जरूरत पड़ने पर वह खुद की सहायता कर सके.
बाप बड़ा न भैया सब से बड़ा रुपैया
पैसा, सत्ता, संपत्ति की ताकत ऐसी है कि यह अच्छे से अच्छे रिश्तों में दरार पैदा कर देती है. ऐसा नहीं है कि यह आधुनिक समय की देन है, पौराणिक समय से कई युद्ध, टकराव इस के चलते ही हुए.
क्या आसान हो गया है जैंडर चेंज कराना
जैंडर चेंज कराने के पीछे जैंडर आइडेंटिटी डिसऑर्डर या जैंडर डायसोफोरिया है. इस के पीछे हार्मोनल बदलाव का होना है. जैंडर चेंज कराने वालों या इस की इच्छा रखने वालों का लोग अकसर मजाक उड़ाते हैं, पर समझने की बात यह है कि इसे कराने वाले ही जानसमझ सकते हैं कि वे अपनी लाइफ में क्या कुछ नहीं झेल रहे होते.
एंटीबायोटिक क्यों है खतरनाक
अकसर लोग छोटीछोटी बीमारियों के लिए एंटीबायोटिक खाते हैं, लेकिन क्या आप को पता है कि एंटीबायोटिक दवा के अनावश्यक और अत्यधिक उपयोग सेहत पर हानिकारक प्रभाव डाल सकता है?
सरकारी स्कूलों के बच्चे भी ला सकते हैं अच्छे नंबर
अगर एक्स्ट्रा करिकुलम एक्टिविटी को हटा दिया जाए तो प्राइवेट और सरकारी स्कूलों के बीच बुनियादी सुविधाओं का अंतर धीरेधीरे खत्म होता जा रहा है. ऐसे में यदि मेहनत और लगन से पढ़ाई करवाई जाए तो सरकारी स्कूलों के बच्चे भी अच्छे अंक ला सकते हैं.
बालिका गृहों में यौन शोषण
किशोर गृहों, बालिका गृहों और अनाथाश्रमों से बच्चों के भाग जाने की खबरें लगभग हर दिन अखबारों के किसी न किसी कोने में होती हैं क्योंकि इन गृहों में तैनात रक्षक ही भक्षक बन चुके हैं. नन्हीनन्ही बच्चियां यहां दुराचार का शिकार हो रही हैं और उन की चीखें सुनने वाला कोई नहीं है.
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कहते हैं देवता भी मानव योनि को तरसते हैं क्योंकि तमाम सुख और आनंद इसी योनि में हैं. लेकिन आदमी है कि मोक्ष के लिए मरा जाता है और इस के लिए उस की पसंदीदा जगह केदारनाथ और बद्रीनाथ हो चले हैं. 15 मई तक घोषित तौर पर 11 को 'मोक्ष' मिल चुका है और हर साल की तरह यह आंकड़ा अभी और बढ़ेगा.
राहुल गांधी से शादी का सवाल
धर्मसत्ता को और औरतों को गुलाम बनाए रखने के लिए शादी सब से जरूरी होती है. सनातनी व्यवस्था बिना शादी के पारिवारिक समाज में रहना उचित नहीं मानती. ऐसे में हर कुंआरे से यह सवाल बारबार उठाया जाता है कि 'शादी कब करोगे.'