परिवार नियोजन यानी फैमिली प्लानिंग का मतलब यह होता है कि आप अपने परिवार की प्लानिंग आर्थिक संसाधनों के हिसाब से करें जिस से परिवार के सदस्यों का सही पालनपोषण, शिक्षा और विकास हो सके.
हमारे देश में फैमिली प्लानिंग में परिवार के आर्थिक पक्ष को तो रखा गया पर सामाजिक पक्ष को छोड़ दिया गया. इस का धीरेधीरे असर यह हो रहा है कि आने वाले दिनों में कुछ करीबी रिश्ते खत्म होने की कगार पर हैं. जैसे, अब परिवार में एक लड़का या एक लड़की ही प्लान की जा रही है. जिस परिवार में केवल लड़की ही है उस परिवार में भाई नहीं होगा तो भाई और मामा का रिश्ता खत्म हो जाएगा.
ऐसे ही अगर परिवार में केवल लड़का हुआ तो बहन और बूआ का रिश्ता आने वाले दिनों में बच्चे केवल किस्सेकहानी में सुनेंगे. ऐसे ही अगर फैमिली प्लानिंग में केवल एक लड़का व एक लड़की रही तो दूसरा भाई नहीं होगा तो भाई और चाचा का रिश्ता नहीं होगा. इन रिश्तों से जुड़े तमाम रिश्ते खत्म हो जाएंगे जैसे मामा नहीं तो मामी और ममेरे भाई नहीं होंगे. चाचा नहीं तो चाची और चचेरे भाई नहीं होंगे. बूआ नहीं तो फूफा और फुफेरे भाईबहन नहीं होंगे. 2 बहनें नहीं होंगी तो मौसी का रिश्ता नहीं होगा. मौसा और मौसेरे भाई नहीं होंगे.
Bu hikaye Sarita dergisinin September Second 2022 sayısından alınmıştır.
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लाइलाज बीमारी कैंसर का हिंदी फिल्मों से ताल्लुक कोई 60 साल पुराना है. 1963 में सी वी श्रीधर निर्देशित राजकुमार, मीना कुमारी और राजेंद्र कुमार अभिनीत फिल्म 'दिल एक मंदिर' में सब से पहले कैंसर की भयावहता दिखाई गई थी लेकिन 'आनंद' के बाद कैंसर पर कई फिल्में बनीं जिन में से कुछ चलीं, कुछ नहीं भी चलीं जिन की अपनी वजहें भी थीं, मसलन निर्देशकों ने कैंसर को भुनाने की कोशिश ज्यादा की.
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हीनता और वितृष्णा का प्रतीक पादुका पूजन
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फ्रांस में गर्भपात कानून में बदलाव के बाद पूरी दुनिया में इस पर बहस छिड़ गई है कि इस का नतीजा क्या होगा?
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