वजह चाहे कोई भी रही हो, पिछली बार छत्तीसगढ़ में मुख्यमंत्री का चेहरा रहे टी एस सिंहदेव सरगुजा से 14 की 14 सीटें जीतकर ले आए थे लेकिन मुख्यमंत्री नहीं बन पाए थे। तो इस बार जनता ने पूरी 14 की 14 सीटें भाजपा की झोली में पटक दीं। इतना ही नहीं, जनता ने भाजपा के झंडे पर पहली बार चुनाव लड़े अग्रवाल को चुना और सिंहदेव को हार का चेहरा दिखा दिया। सात बार के कांग्रेस विधायक रवींद्र चौबे को साजा विधानसभा सीट से हार का सामने करना पड़ा। रवींद्र के पिता-माता भी विधायक रहे हैं। उन्हें हराने वाले कोई और नहीं बल्कि पहली बार चुनाव मैदान में उतरे भाजपा के प्रत्याशी ईश्वर साहू हैं। साहू फटी हुई चप्पल और फटे कपड़े पहनकर साइकिल से चुनाव प्रचार करते रहे और लोगो को दंगों में अपने बेटे को खोने का दर्द बताते रहे।
अग्रवाल, साहू और उनके जैसे तमाम लोगों की जीत ने सारे एग्जिट पोल के दावे को झूठा साबित कर दिया जो छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सरकार बरकरार रहने की बात कह रहे थे। कांग्रेस चुनाव हार गई।
पिछले चुनाव में 15 सीटें बटोर न पाने वाली भाजपा की वापसी की कहानी चौंकाने वाली है क्योंकि पिछले पांच वर्षो में प्रदेश संगठन ने बड़े मुद्दों को उस तरह से नहीं उठाया जैसे उठाया जाना चाहिए था। पार्टी पांच साल तक मैदान और सड़क से गायब रही। उसकी सारी कवायद प्रेस विज्ञप्ति और ट्वीट तक सीमित रह गई थी।
Bu hikaye Outlook Hindi dergisinin December 25,2023 sayısından alınmıştır.
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जौनपुर
इतिहास की गोद में ऊंघता-सा एक शहर है, उत्तर प्रदेश का जौनपुर। पुराने शहरों के साथ अक्सर ऐसा होता है कि वे किसी मील के पत्थर से यू टर्न लें और सभ्यता की सामान्य दिशा से उल्टी दिशा में चल पड़ें।
समय की गति की परख
इस संग्रह का महत्वपूर्ण पक्ष यह है कि कवि यहां अस्तित्ववाद के प्रश्नों से रूबरू होते हैं। निजी और वृहत्तर तौर पर जीवन को इस विमर्श के घेरे में लाकर कवि अस्तित्व से संबंधित प्रश्नों का उत्तर पाने का प्रयास करता है।
प्रकृति का सान्निध्य
वरिष्ठ कवयित्री सविता सिंह का नया संग्रह ‘वासना एक नदी का नाम है’ स्त्री-विमर्श को नई ऊंचाई पर ले जाता है।
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तवायफों पर आई नई वेबसीरीज हीरामंडी ने फिर कोठेवालियों और देवदासियों के साथ हिंदुस्तानी सिनेमा के रिश्तों की याद दिलाई
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टीम इंडिया में अर्जुन तो बहुत, उन्हीं को संवारने के लिए एक ऐसे कोच की तलाश, जो टीम को तकनीकी-मानसिक मजबूती दे सके
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हवा का रुख दोतरफा
ईडी की कार्रवाइयों और जनता के मुद्दों पर टिका है चुनाव
तीसरी बारी क्यों
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क्या बदलाव होने वाला है?
इस बार उत्तर प्रदेश के लोकसभा चुनाव में सवर्णों को अपने धर्म और वर्चस्व की चिंता दिख रही है, तो अवर्ण समाज के दिल को संविधान और लोकतंत्र का मुद्दा छू रहा
किस ओर बैठेगा जनादेश
बड़े राज्यों में कांटे के मुकाबले के मद्देनजर 4 जून को नतीजों के दिन ईवीएम से निकलने वाला जनादेश लगातार तीसरी बार एनडीए को गद्दी सौंपेगा या विपक्षी गठजोड़ 'इंडिया' के पक्ष में बदलाव की बानगी लिखेगा, यह लाख टके का सवाल देश की सियासत की अगली धारा तय करेगा