आम आदमी पार्टी (आप) की पंजाब में सरकार बनने के बाद शाही शादियों की शहनाई की गूंज में जनता के मुद्दे थम गए हैं। सरकार बने अब सवा साल हो गए, मुख्यमंत्री भगवंत मान से लेकर उनके मंत्री, पार्टी सांसद और विधायकों की शादियों का सिलसिला जारी है। मुख्यमंत्री बनने के बाद 48 साल की उम्र में भगवंत मान ने दूसरी शादी रचाई। फिर, पहली बार विधायक बने एक दर्जन से अधिक नेताओं के घर भी शहनाई बजी। ऐसे विधायकों में फिरोजपुर से 62 साल के विधायक रणवीर सिंह भुल्लर से लेकर 29 बरस की युवा विधायक नरेंद्र कौर भराज हैं। बॉलीवुड अभिनेत्री परिणिति चोपड़ा से आप के पंजाब से राज्यसभा सांसद राघव चड्डा की मई में हुई सगाई के बाद अक्टूबर में होने वाली शाही शादी भी ग्लैमर से भरपूर होगी। आप के अभी भी एक दर्जन से ज्यादा विधायक कुंवारे हैं, जिनमें कुछ मंत्री भी शामिल हैं। जाहिर है, विपक्ष इसे सियासी मुद्दा बना रहा है।
उधर, पटियाला के सन्नोर से आप विधायक हरमीत सिंह पठानमाजरा पर पहली पत्नी के रहते दूसरी शादी करने के आरोप की जांच पंजाब महिला आयोग के समक्ष विचाराधीन है। सरकार बनने के बाद शादी रचाने वाले 'पावर कपल्स' में आप के 60 वर्ष से ऊपर की उम्र से लेकर युवा विधायक हैं। ये युवा भी ज्यादातर 30 वर्ष के पार उम्र के हैं। अब भी कई 30 वर्ष उम्र के पार के कुंवारे मंत्री और विधायक मनचाहे जीवनसाथी और शुभ घड़ी के इंतजार में हैं।
तकरीबन 13 साल तक आतंक का संताप झेलने वाले पाकिस्तान की सीमा से सटे पंजाब जैसे संवेदनशील सूबे में जहां नशा, बेरोजगारी और कानून-व्यवस्था जैसे अनसुलझे मुद्दे बरसों से हर सरकार के लिए कड़ी चुनौती रहे हैं, वहां पहली बार ऐसे संजीदा मुद्दों से इतर किसी सत्तारूढ़ दल के कुंवारे विधायकों की शादी को विपक्षी दल मुद्दा बना रहे हैं, जो जनता के लिए मनोरंजन से ज्यादा कुछ नहीं है । चालीस बरस से पंजाब की सियासत पर पैनी नजर रखने वाले वरिष्ठ पत्रकार जगतार सिंह सिद्धू कहते हैं, “पंजाब ही नहीं, बल्कि देश की सियासत में ऐसा पहली बार हुआ है कि शादी जैसे निजी फैसले पर किसी राज्य सरकार के मुख्यमंत्री से लेकर मंत्री, सांसद और विधायक विपक्ष के निशाने पर हैं।"
Bu hikaye Outlook Hindi dergisinin July 10, 2023 sayısından alınmıştır.
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ईडी की कार्रवाइयों और जनता के मुद्दों पर टिका है चुनाव
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इस बार उत्तर प्रदेश के लोकसभा चुनाव में सवर्णों को अपने धर्म और वर्चस्व की चिंता दिख रही है, तो अवर्ण समाज के दिल को संविधान और लोकतंत्र का मुद्दा छू रहा
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