तेलंगाना अब कांटे की टक्कर वाली चुनावी जंग का मैदान बन गया है. 2023 की सर्दियों में हुए विधानसभा चुनाव में एक दशक पुराने राज्य में एक दशक से ही सत्ता पर काबिज के. चंद्रशेखर राव की भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) की विदाई हो गई तो अब गर्मियों के मौसम में तीन पार्टियों-सत्तारूढ़ कांग्रेस, बीआरएस और भाजपा के बीच घमासान देखने को मिलेगा. राज्य की 17 लोकसभा सीटों के लिए 13 मई को मतदान होना है.
2023 के विधानसभा चुनाव में जीत से उत्साहित कांग्रेस अपनी सफलता दोहराने को बेताब है. वहीं, 10 वर्षों तक देश के सबसे युवा राज्य की कमान संभालने वाली बीआरएस अपनी चुनावी किस्मत बदलने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा रही है. हालांकि, पार्टी को दलबदल की चुनौती का सामना करना पड़ रहा है. वहीं, राज्य में पिछले विधानसभा चुनाव के दौरान सीटों और वोट शेयर के लिहाज से पहले से बेहतर प्रदर्शन करने वाली भाजपा अपना जनाधार बढ़ाने को लेकर खासी उत्सुक है.
नवंबर की जीत से उत्साहित कांग्रेस सियासी समर में बीआरएस को पटखनी देने के अपने मिशन को लेकर कृतसंकल्प है. इस अभियान की कमान खुद मुख्यमंत्री ए. रेवंत रेड्डी ने संभाल रखी है जो तेलंगाना प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष भी हैं. वे बीआरएस के एक दशक लंबे शासनकाल की खामियों को उजागर करते हुए पार्टी सुप्रीमो के. चंद्रशेखर राव की राजनीतिक उपलब्धियों पर सवाल उठा रहे हैं.
पिछले चार महीनों में कांग्रेस ने केसीआर और उनकी पार्टी पर बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार और भाई-भतीजावाद में लिप्त होने का आरोप लगाते हुए दावा किया है कि दोनों ने को तेलंगाना का संस्थापक बताकर राज्य को बेहद नुकसान पहुंचाया है. रणनीतिक चतुराई के साथ जारी अभियान के तहत रेड्डी ने पहले श्वेतपत्र जारी किया, फिर विभागीय और उसके बाद न्यायिक जांच के आदेश दिए ताकि केसीआर परिवार पर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों के मद्देनजर बीआरएस को घेरने में मदद मिल सके. केसीआर और उनके परिवार के सदस्यों के खिलाफ कई आरोपों की जांच चल रही है, जिसमें 94,000 करोड़ रुपए की कालेश्वरम लिफ्ट सिंचाई परियोजना में खामियों की न्यायिक जांच और जबरन वसूली के लिए राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों के साथ-साथ व्यापारियों के फोन टैप कराना भी शामिल है.
Bu hikaye India Today Hindi dergisinin April 24, 2024 sayısından alınmıştır.
Start your 7-day Magzter GOLD free trial to access thousands of curated premium stories, and 8,500+ magazines and newspapers.
Already a subscriber ? Giriş Yap
Bu hikaye India Today Hindi dergisinin April 24, 2024 sayısından alınmıştır.
Start your 7-day Magzter GOLD free trial to access thousands of curated premium stories, and 8,500+ magazines and newspapers.
Already a subscriber? Giriş Yap
बिसात का नया बादशाह
सत्रह साल के डी. गुकेश कैंडीडेट्स चेस टूर्नामेंट जीतने वाले सबसे कम उम्र के खिलाड़ी बने
तवायप की लाहौरी दुनिया का नायाब अफसाना
यह एक नितांत भव्य, महंगा, महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट है या फिर संजय लीला भंसाली का दुनिया को उपहार? आजादी के दौर के लाहौर की छह तवायफों की इस गाथा के नेटफ्लिक्स पर रिलीज होते ही दर्शक हुए दीवाने
नेताजी...नहीं, चुनाव लड़ेंगे बेटीजी-बेटाजी
बिहार में बड़े नेताओं के छह बच्चों समेत 28 खानदानी प्रत्याशी मैदान में. कइयों ने टिकट मिलने से ठीक पहले पार्टियों की सदस्यता ली. तो क्या चुनावी टिकट नेताओं के परिजनों को ही मिला करेंगे और कार्यकर्ता सिर्फ दरियां बिछाया करेंगे?
सुरक्षित सीटों पर युवा दांव
यूपी में राजनैतिक दलों ने आरक्षित लोकसभा सीटों पर उतारे नए युवा उम्मीदवार, ज्यादातर अपने पिता की सियासी विरासत के सहारे चुनाव मैदान में
तेजस्वी की पहले से पुख्ता पकड़
बिहार का सियासी माहौल बेहद गरम. यहां राजद प्रमुख ने युवाओं से जुड़े मुद्दों को प्रधानमंत्री मोदी की अपील और नीतीश कुमार पर बुरी तरह आश्रित भाजपा से मुकाबले में औजार बनाया. नीतीश तो पुराना रुतबा गंवा ही चुके
कांग्रेस का अकेला सिपहसालार
अधीर रंजन चौधरी के कांग्रेस के गढ़ - मुर्शिदाबाद - में भाजपा और टीएमसी सेंध लगाने का कर रहीं प्रयास
मजबूती से मोर्चा संभालतीं ममता
भाजपा ने भ्रष्टाचार और महिला सुरक्षा जैसे मुद्दों पर पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री को बुरी तरह घेर रखा है. लेकिन ममता भी पूरी मजबूती से मोर्चे पर डटी हैं और उनकी पार्टी यह नैरेटिव गढ़ने में जुटी है कि भगवा पार्टी 'बंगाली विरोधी' है
कौन जीतेगा यह महायुद्ध?
महाराष्ट्र में अब तक की सबसे पेचीदा सियासी जंग में वोटों की तलाश करते दुल-मुल गठबंधन सत्ता संघर्षों और विश्वासघातों की दिलचस्प महागाथा रच रहे हैं
करो या मरो की जंग
महाराष्ट्र, बंगाल और बिहार के इलाकाई क्षत्रप प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सियासत इतिहास गढ़ने के रास्ते में खड़े हुए हैं. अगर क्षत्रप उन्हें हराने में नाकाम हुए तो वे अपना राजनैतिक महत्व गंवा देंगे
कैसे शुरू हुई कलह
कांग्रेस डेढ़ दशक बाद दिल्ली में लोकसभा चुनाव में खाता खुलने की उम्मीद कर रही है, लेकिन इससे पहले अंदरूनी कलह से उसकी मुश्किलें बढ़ीं