ऐसे में सवाल उठता है कि क्या यह दृश्य झारखंड सहित देशभर की आदिवासी राजनीति और आदिवासियों पर अपना प्रभाव छोड़ने जा रहा है? क्या इस गिरफ्तारी ने सोरेन का सियासी कद ऊंचा कर दिया है? रांची के दीपाटोली कैंट स्थित एक पान वाले मनोज कुमार (बदला हुआ नाम) खुद को कट्टर भाजपा समर्थक बताते हैं लेकिन वे भी कहते हैं, "भाजपा वाला सब हद कर दिया. इतना नहीं करना चाहिए था. ये गलत हुआ है. आजकल किस पार्टी में भ्रष्ट आदमी नहीं है जी?" झारखंड की राजनीति को पिछले 20 साल से कवर कर रहे पत्रकार सुरेंद्र सोरेन कहते हैं, "हेमंत सोरेन अब तक बतौर राजनेता शिबू सोरेन के बेटे ही थे. लेकिन गिरफ्तारी ने उन्हें देश के स्तर पर बतौर मजबूत आदिवासी नेता स्थापित कर दिया है. या यूं कह लें कि राजनीति में उनका पुनर्जन्म हुआ है."
सोरेन की गिरफ्तारी और फिर चार दिन बाद फ्लोर टेस्ट के दौरान दिए उनके भाषण की चर्चा झारखंड के बाहर भी, खासकर आदिवासी क्षेत्रों में खूब हो रही है. छत्तीसगढ़ में के आदिवासी नेता अरविंद नेताम कहते हैं, "एक आदिवासी या हेमंत की छवि को समझने के लिए आपको विधानसभा में दिए भाषण के मात्र दो बिंदुओं को समझना होगा. हेमंत ने कहा कि "मैं आंसू नहीं बहाऊंगा, वक्त आने पर इनको जवाब दूंगा." दूसरा, "हम जंगल से बाहर आ गए तो इनके कपड़े मैले होने लगे." इन दो बातों में देशभर के आदिवासियों के नेचर और मौजूदा दर्द को साफ देखा जा सकता है. "आदिवासी जो झेलता है, दिलेरी के साथ फेस करता है." इस बात की पुष्टि रांची के वरिष्ठ पत्रकार नीरज सिन्हा भी करते हैं. वे कहते हैं कि इस भाषण के बाद सोरेन ने अपना दायरा झारखंड से बाहर भी बढ़ा लिया है. वैसे, लोकसभा चुनाव या उसके बाद इसका कितना असर होगा, यह अभी देखना बाकी है.
Bu hikaye India Today Hindi dergisinin February 28, 2024 sayısından alınmıştır.
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