उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग (यूपीपीएससी) की भर्तियों में भ्रष्टाचार को मुद्दा बनाकर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने 2017 के विधानसभा चुनाव में युवाओं का ध्यान खींचा था. मुख्यमंत्री की कुर्सी संभालने के बाद योगी आदित्यनाथ ने सांसद के तौर पर 20 जुलाई, 2017 को लोकसभा में अपने संबोधन में भी यूपीपीएससी की भर्तियों में गड़बड़ियों का जिक्र कर राष्ट्रीय स्तर पर इस मुद्दे को गरमा दिया था. लोकसभा की कार्यवाही में हिस्सा लेकर वापस लखनऊ लौटते ही मुख्यमंत्री योगी ने यूपीपीएससी की भर्तियों में सीबीआइ जांच की सिफारिश कर आंदोलनरत प्रतियोगी छात्रों को न्याय दिलाने की राह खोल दी थी. पांच महीने बाद 25 जनवरी, 2018 में सीबीआइ ने 'प्रीलिम्नरी इन्क्वायरी' दर्जकर यूपीपीएससी में भर्तियों की जांच शुरू कर दी थी लेकिन पांच साल बीतने के बाद भी यह अभी तक किसी नतीजे पर नहीं पहुंच पाई है.
सबसे पहले भर्तियों की जांच का जिम्मा आइपीएस अफसर राजीव रंजन को सौंपा गया लेकिन उसके बाद आइआरएस अफसर जितेंद्र कुमार (2019 से 2021), दिल्ली कैडर के आइपीएस अफसर अतुल ठाकुर (2021 से जुलाई 2022) और जुलाई 2022 से आइपीएस अफसर सुमन कुमार को जिम्मेदारी सौंपी गई लेकिन अभी तक किसी भी दोषी पर सीधी कार्रवाई नहीं हो सकी है.
Bu hikaye India Today Hindi dergisinin February 01, 2023 sayısından alınmıştır.
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