साझेदारी पर नहीं बन पा रही सहमति
India Today Hindi|December 07, 2022
थिएटर कमान प्रणाली के तहत सशस्त्र बलों के पुनर्गठन का काम लगभग ठप पड़ गया है. भारतीय वायु सेना इसके विरोध पर कायम है. दूसरी ओर विशेषज्ञ भी इसकी मजम्मत कर रहे हैं
प्रदीप आर. सागर
साझेदारी पर नहीं बन पा रही सहमति

बीसवीं सदी में लड़ी गई अधिकांश लड़ाइयों में थल सेना, नौसेना और वायु सेना ने अलग-अलग इकाइयों के रूप में काम किया, हालांकि तीनों सेनाओं के बीच गहरे समन्वय से ही युद्ध का सफल संचालन संभव हुआ. पिछले दशकों में जो सैन्य रणनीतियां विकसित हुई हैं उनमें इस सामंजस्य को बेहतर किया गया. इन्हीं में से एक है किसी भौगोलिक क्षेत्र या थिएटर में सभी सैन्य अंगों की साझा जिम्मेदारी और प्रतिनिधित्व की व्यवस्था. इसका उद्देश्य है सैन्य संसाधनों का एकीकरण करना, ताकि लड़ने की क्षमता का अधिकतम उपयोग हो सके. इस प्रकार एक 'थिएटर कमान' में सेना, नौसेना और वायु सेना की इकाइयां होंगी, और तीनों में से किसी एक के सामान्य कमांडर के तहत काम करेंगी. संचालन में समन्वय के लिए रसद, प्रशिक्षण और यहां तक कि सहायक सेवाओं को एक इकाई के रूप में पिरोना होगा. लब्बोलुआब यह कि यह रक्षा तैनातियों को थिएटर व्यवस्था या थिएटर कमान में सुसज्जित करने का तरीका है.

अमेरिका, रूस और चीन जैसी बड़ी सेनाएं इसी प्रणाली के तहत काम करती हैं. भारतीय सेना के लिए एकीकृत कमान स्थापित करने का प्रस्ताव पहली बार 1999 में करगिल युद्ध के बाद आया था, जब भारतीय सेना, नौसेना और वायु सेना के बीच जरूरी तालमेल की कमी पाई गई थी. ज्यादा तालमेल के लिए 2001 में एकीकृत रक्षा स्टाफ की स्थापना की गई, पर इससे मदद नहीं मिली. आखिरकार नरेंद्र मोदी सरकार ने थिएटर योजना के साथ आगे बढ़ने का फैसला किया, और पूर्व सेना प्रमुख जनरल बिपिन रावत को दिसंबर 2019 में चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (सीडीएस) के रूप में नियुक्त किया, ताकि थिएटर कमान की व्यवस्था के जरिए दुनिया की सबसे बड़ी सशस्त्र सेनाओं में से एक में बड़े सुधार और पुनर्गठन को अंजाम दिया जा सके.

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