केसीआर 9 दिसंबर को राष्ट्रीय राजधानी में एक रैली को संबोधित करेंगे. यह मानवाधिकार दिवस की पूर्व संध्या है, और इसके पीछे उनका उद्देश्य-भाजपा के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार के तहत कथित 'अधिकारों और स्वतंत्रता के दमन' के मुद्दे को जोर-शोर से उठाना है. वैसे, इस कार्यक्रम को उनके और उनकी पार्टी बीआरएस, (हालांकि नाम परिवर्तन को औपचारिक रूप दिया जाना अभी बाकी है) जिसका जल्द ही दिल्ली के वसंत विहार में एक पार्टी कार्यालय होगा, दोनों के लिए संभावित शक्ति प्रदर्शन के रूप में देखा जा रहा है. तारीख का चुनाव एक अन्य कारण से भी अहम है - 9 दिसंबर, 2009 की रात को ही तत्कालीन संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) सरकार ने अलग तेलंगाना राज्य की केसीआर की मांग स्वीकार कर ली थी, और इसके साथ ही 11 दिनों की उनकी भूख हड़ताल खत्म हो गई थी.
तेरह साल बाद, केसीआर खुद को भाजपा के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) के खिलाफ प्रमुख प्रतिद्वंद्वी के रूप में स्थापित करने की कोशिश कर रहे हैं. इसके लिए वे पिछले दो साल में कई क्षेत्रीय दलों के नेताओं से बातचीत कर चुके हैं. वे अपने संभावित गठबंधन के लिए एजेंडा तैयार करने के लिए किसानों के निकायों, सेवानिवृत्त नौकरशाहों और सिविल सोसाइटी के कार्यकर्ताओं से भी विचार-विमर्श कर रहे हैं.
Bu hikaye India Today Hindi dergisinin November 09, 2022 sayısından alınmıştır.
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