सभी दलों ने जोर शोर से तैयारियां शुरू कर दी है. राजस्थान में फिलहाल मुख्यमंत्री अशोक गहलोत कांग्रेस की सरकार चला रहे हैं. वही भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) मुख्य विपक्षी दल की भूमिका में है. 1993 के विधानसभा चुनाव से राजस्थान में सरकार बदलने का रिवाज चला आ रहा है. यहां एक बार भाजपा की तो अगली बार कांग्रेस की सरकार बनती रही है. पिछले 30 वर्षों से चले आ रहे इस मिथक को अभी तक कोई भी राजनीतिक दल नहीं तोड़ पाया है. इस बार सत्तारूढ़ कांग्रेस के नेता दावा कर रहे हैं कि हम हर बार सत्ता बदलने के मिथक को तोड़ कर लगातार दूसरी बार प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनाएंगे. वहीं भाजपा के नेता कांग्रेस को हराने का दावा कर रहे हैं.
राजस्थान में तीसरा मोर्चा कभी मजबूत नहीं रहा है. 1990 के विधानसभा चुनाव में जनता दल अवश्य कुछ प्रभावी रहा था. मगर वह भी तब जब उसने भाजपा के साथ मिलकर चुनाव लड़ा था. तीसरा मोर्चा के नाम पर राजस्थान में बसपा का अवश्य कुछ प्रभाव है. 2018 के विधानसभा चुनाव में बसपा ने प्रदेश में 6 सीटों पर जीत हासिल कर 4 प्रतिशत मत पाये थे. उस समय हनुमान बेनीवाल की राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी पहली बार चुनाव मैदान में उतरी थी. उसे 3 सीटों पर जीत मिली थी तथा 2.4 प्रतिशत मत मिले थे. अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी (आप) ने भी राजस्थान की अधिकांश सीटों पर चुनाव लड़ा था. मगर उसके किसी भी प्रत्याशी को एक हजार वोट भी नहीं मिल पाने के कारण एक प्रतिशत से भी कम वोट हासिल कर पाई थी. माकपा ने 2 सीटों पर, राष्ट्रीय लोक दल ने एक सीट पर व ने भारतीय ट्राईबल पार्टी ने 2 सीटों पर जीत हासिल की थी. मगर इन में से किसी भी पार्टी को 1 प्रतिशत से अधिक वोट नहीं मिल पाए थे.
Bu hikaye Gambhir Samachar dergisinin January 01, 2023 sayısından alınmıştır.
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