बोबो भालू अपनी सहेली बानी भालू के साथ हिमालय के जंगल में भटक रहा था. वे अपनी गुफा में इकट्ठा करने के लिए घास के एक बड़े में गट्ठर और एक बोरे में फल, गिरियां और बेरिज ढो रहे थे.
यह साल का वह समय था जब दिन छोटे और रातें लंबी होती हैं. हवा में बहुत ठंडक व्याप्त थी और सर्दियों की नरम चुप्पी की फुसफुसाहट पसरी हुई थी.
वूडलैंड यानी जंगल के सुडौल दर्रे, इन दर्रों से हो कर बहती नदियां और पूरे हिमालय का जंगल एक विशाल स्नोफ्लैक यानी बर्फ के टुकड़े के रूप में जमते दिखाई देता था. सब से बड़ी बात, आगामी महीनों के लिए जंगल के सभी जानवर न सिर्फ भोजन इकट्ठा करने बल्कि शीतनिद्रा की तैयारी में भी व्यस्त थे. शरद ऋतु की शुरुआत से ही बोबो और बानी दोनों ने अपने शरीर के चारों ओर लगभग 50 किलोग्राम चर्बीदार मांस प्राप्त कर लिया था, जो सर्दी के समय में ऊर्जा भंडार के रूप में कार्य करेगा.
जब वे एकौर्न यानी बलूत पेड़ों की एक पंक्ति को पार कर रहे थे तो वे शैली गिलहरी के पास से गुजरे और उस से भेंट की. शैली नट्स यानी गिरियां जमा कर रही थी, उन्हें वह अपनी पूंछ से उठाती और गुप्त स्थान यानी मांद में छिपा लेती.
"हैलो, नमस्कार शैली."
"हैलो, बोबो और बानी, नमस्कार. आप दोनों कैसे हो?" उस ने पूछा.
"हम अच्छे हैं, लेकिन तुम थकी हुई दिखती हो. क्या बात है?" बानी ने पूछा.
"शीतनिद्रा की तैयारी के लिए मैं खाना इकट्ठा करने में लगी हूं, लेकिन अपने छोटे आकार के कारण एक बार में कुछ ही नट्स इकट्ठा कर पा रही हूं. मैं अब बहुत ज्यादा थकान महसूस कर रही हूं," उस ने उन्हें बताया.
एक पेड़ की छाया में बोबो और बानी ने अपने सामान को रखा और मिश्रित नट्स यानी गिरियों के बहुत बड़े ढेर जंगल की जमीन से इकट्ठा किए और इस तरह शैली को तेजी से अपने काम को पूरा करने में मदद मिली. उस की मांद में एक छोटे से ट्रंक में अब उस ने बलूत, अखरोट, हिकोरीनट्स, अनाज की जड़ें, कद्दू के बीज, हेजलनट्स, मूंगफली और न जाने क्याक्या सर्दियों के लिए जमा कर लिए थे.
अपना आभार व्यक्त करने के बाद शैली ने उन से एक छोटा सा उपहार स्वीकार करने का आग्रह किया.
Bu hikaye Champak - Hindi dergisinin December Second 2022 sayısından alınmıştır.
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