आनुवंशिकी नहीं, एफसीओ हैं बढ़ते कुपोषण का मुख्य कारण
Modern Kheti - Hindi|15th March 2024
हाल ही में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के वैज्ञानिकों द्वारा प्रकाशित शोध में धान और गेहूं में आयरन और जिंक जैसे सूक्ष्म खनिज पोषक तत्वों में कमी और विषाक्त तत्वों की वृद्धि सुर्खियों में रही। शोध के अनुसार, देश के प्रमुख खाद्य अनाजों में खनिज पोषक तत्वों की लोडिंग बढ़ाने से संबंधित आनुवंशिक लक्षणों की उपेक्षा के कारण आवश्यक खनिजों में भारी गिरावट दर्ज की गई है।
आनुवंशिकी नहीं, एफसीओ हैं बढ़ते कुपोषण का मुख्य कारण

इससे हरित क्रांति के दौरान फसल प्रजनन अनुसंधान से विकसित अर्ध बौनी और उच्च पैदावार वाली फसलों पर सवालिया निशान खड़े हो गए हैं। शोध ने खाद्य अनाजों में विषाक्त तत्वों जैसे कि आर्सेनिक और एलुमिनियम के बढ़ते अवशेषों पर भी ध्यान आकर्षित किया है। देश में बढ़ते कुपोषण एवं सेहत समन्धित बीमारियों पर चिंता जाहिर करते हुए इस शोध ने 2040 तक भारतीय आबादी में आयरन और अन्य पोषक तत्वों की कमी से होने वाले एनीमिया, सांस, हृदय और मस्कुलोस्केलेटल जैसे नॉन कम्युनिकेबल रोगों के बढ़ने के संकेत दिए हैं।

इसमें कोई शक नहीं है पिछले पांच दशकों में भारतीय कृषि ने बढ़ती आबादी के भरण पोषण के लिए उत्पादकता और उत्पादन में जोरदार बढ़ोतरी दर्ज की है। भरपूर पैदावार हेतु वैज्ञानिक अनुसंधान, अधिक उपज वाली अर्द्ध बौनी धान और गेहूँ की फसलों का विकास और आधुनिक प्रजनन जैसी तकनीक का भरपूर उपयोग किया गया। वर्ष 2022-23 में देश ने क्रमशः 329.6 मिलियन टन और 351.9 मिलियन टन खाद्यान्न और बागवानी फसलों के उत्पादन का रिकॉर्ड दर्ज किया।

इस शोध का प्रकाशन तब हुआ है, जब देश में अपार खाद्य उत्पादन और अनाज से भरे भंडारों के बावजूद कुपोषण की समस्या दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। देश के ज्यादातर लोग कुपोषण और खराब स्वास्थ्य से जूझ रहे हैं। भारत, दुनिया के सबसे ज्यादा कुपोषित देशों की श्रेणी में प्रथम स्थान पर है। संयुक्त राष्ट्र के कृषि एवं खाद्य संगठन (एफएओ) के मुताबिक दुनिया के सर्वाधिक 29.2 करोड़ कुपोषित लोग भारत में हैं, जो वैश्विक स्तर पर 76.8 करोड़ कुपोषित जनसंख्या का लगभग 30 प्रतिशत है।

एफएओ ने हाल ही जारी खाद्य सुरक्षा और पोषण का क्षेत्रीय अवलोकन 2023 रिपोर्ट में कहा है कि 2021 में तकरीबन 74.1 प्रतिशत भारतीय कम आमदनी की वजह से स्वस्थ आहार लेने में असमर्थ रहे। यही नहीं, हमारे देश में आज भी तकरीबन 80 करोड़ लोगों को भोजन का वितरण खाद्य सुरक्षा नियम के तहत किया जा रहा है। यह आंकड़े चौंकाने वाले ही नहीं बल्कि देश की कृषि नीतियों, कृषि अनुसंधान और फसल प्रजनन में बेहद कम निवेश, उर्वरकों के गलत उपयोग, खराब होती मृदा और दूषित जल का खाद्य पदार्थों और मानव स्वस्थ पर पड़ने वाले सीधे प्रभाव को उजागर करते हैं।

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मिट्टी के पीएच में सुधार और फसल पैदावार बढ़ाने के लिए वैज्ञानिकों ने विकसित किए नए उत्पाद
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मिट्टी के पीएच में सुधार और फसल पैदावार बढ़ाने के लिए वैज्ञानिकों ने विकसित किए नए उत्पाद

भारत में लगभग 67.3 लाख हैक्टेयर भूमि लवणीयता से प्रभावित है। लवणीय मिट्टी कृषि उत्पादकता पर प्रतिकूल प्रभाव डालती है, जिससे अक्सर फसल उत्पादन गतिविधियां आर्थिक रूप से फायदेमंद नहीं हो पाती हैं।

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15th April 2024
पूर्वीजर हरियाणा में धान की सीधी बिजाई एक प्रयत्न तो बनता है
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पूर्वीजर हरियाणा में धान की सीधी बिजाई एक प्रयत्न तो बनता है

हरियाणा प्रदेश के उत्तर पूर्वी भाग (अंबाला, कुरुक्षेत्र, यमुनानगर, करनाल, पानीपत और सोनीपत आदि जिले) में धान की फसल का अपना ही एक महत्व है। यहां के धान की उच्च गुणवत्ता और विक्रय के लिए बाजार के स्थायी तंत्र की उपस्थिति के कारण धान का स्थान ग्रहण करने के लिए वर्तमान में कोई दूसरी फसल विद्यमान नहीं है। किन्तु जिस परम्परागत विधि से धान की खेती यहां पर की जा रही है वह बहुत ही दीर्घकालिक नहीं प्रतीत हो रही है।

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15th April 2024
स्वैः मंडीकरण में पैकिंग एवं लेबलिंग का महत्व
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स्वैः मंडीकरण में पैकिंग एवं लेबलिंग का महत्व

\"मंडीकरण कृषि व्यापार का एक अहम पहलु है। उचित मंडीकरण द्वारा मंडी में उपभोक्ताओं की जरुरतों का पता लगाकर आवश्यक वस्तु/सेवा उपलब्ध करवाई जा सकती है। मंडीकरण गतिविधियों के कारण कृषि उद्यमी वस्तु की बेच संभावना में इजाफा कर सकते हैं और वस्तुओं के अच्छे मूल्य भी प्राप्त कर सकते हैं। मंडीकरण गतिविधियों में वस्तु की गुणवत्ता, पेशकारी, कीमत, बेच स्थान एवं प्रचार को शामिल किया जाता है।\"

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15th April 2024
सी. एस. टी. एल. से बीज सैंपल पुन: परिक्षण
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सी. एस. टी. एल. से बीज सैंपल पुन: परिक्षण

बीज खेती किसानों की जरूरत है, बीज उत्तम ही नहीं, सर्वोत्तम होना चाहिए। बीज की पावनता, पवित्रता, शुद्धता बनी रहे। इसके लिए भारत सरकार ने बीज अधिनियम-1966, बीज नियम-1968 तथा बीज नियंत्रण आदेश-1983 लागू किए हैं।

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15th April 2024
मधुमक्खी पालन पर मौसम का असर और उसका निवारण
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मधुमक्खी पालन पर मौसम का असर और उसका निवारण

मधुमक्खी पालकों को बदलते हुए मौसम में मधुमक्खियों का पालन करने में काफी कठिनाईयों का सामना करना पड़ता है। बदलते मौसम के कारण मधुमक्खियों की आबादी और उत्पादन शक्ति पर गहरा असर पड़ता है जिसके परिणामस्वरूप मधुमक्खी पालकों को आर्थिक रुप से भी नुकसान होता है।

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15th April 2024
फास्फोरस का अधिक उपयोग नुकसानदायक...
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फास्फोरस का अधिक उपयोग नुकसानदायक...

फास्फोरस के अधिक कुशल उपयोग से इस महत्वपूर्ण उर्वरक का सीमित भंडार 500 से अधिक वर्षों तक चल सकता है। बढ़ती आबादी की भोजन की मांग को पूरा करने के लिए दुनिया भर में फॉस्फोरस समेत कई उर्वरकों की मदद से फसलों के उत्पादन को बढ़ाया जा सकता है।

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15th April 2024
भारतीय वैज्ञानिकों ने खोजी केंचुओं की दो नई प्रजातियां
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भारतीय वैज्ञानिकों ने खोजी केंचुओं की दो नई प्रजातियां

ओडिशा केंद्रीय विश्वविद्यालय (सीयूओ) और केरल के महात्मा गांधी विश्वविद्यालय से जुड़े शोधकर्ताओं ने भारत में केंचुओं की दो नई प्रजातियों की पहचान की है। केंचुओं की यह नई प्रजातियां ओडिशा के कोरापुट में खोजी गई हैं।

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15th April 2024
ड्रैगन फ्रूट का जुम तैयार करने के लिए विकसित की नई तकनीक
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ड्रैगन फ्रूट का जुम तैयार करने के लिए विकसित की नई तकनीक

बढ़ती मांग को पूरा करने और टिकाऊ बागवानी प्रथाओं को बढ़ावा देने के उद्देश्य से आईसीएआर-भारतीय बागवानी अनुसंधान संस्थान (आईआईएचआर) के शोधकर्ताओं ने रेडी-टू-सर्व ड्रैगन फ्रूट जूस तैयार करने के लिए अभिनव तकनीक विकसित की है।

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15th April 2024
15.3 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुंचने का अनुमान है मधुमक्खी पालन बाजार
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15.3 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुंचने का अनुमान है मधुमक्खी पालन बाजार

मधुमक्खियां फसलों को परागित करके कृषि और खाद्य आपूर्ति श्रृंखला में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं, फिर भी दुनिया के कई हिस्सों में मधुमक्खियों की आबादी घट रही है। इससे मधुमक्खी पालन-मधुमक्खी पालन और शहद उत्पादन में गहरी रुचि पैदा हो रही है। वास्तव में, वैश्विक मधुमक्खी पालन बाजार का आकार 2022 में 10.3 बिलियन डॉलर से बढ़कर 2032 तक 15.3 बिलियन डॉलर तक पहुंचने का अनुमान है, जो इस अवधि के दौरान 4% की चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर से बढ़ रहा है।

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1st March 2024
वायु प्रदूषण से घटती है परागण क्रिया
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वायु प्रदूषण से घटती है परागण क्रिया

परागण की प्रक्रिया से आशय परागकणों का नर से मादा के अंगों में पहुंचना है। यह पौधों के लिए प्रजनन का एक जरूरी हिस्सा है। इस प्रक्रिया में पौधों को कीट-पतंगों के माध्यम से भोजन मिलता है, जिसे कीट परागण के रूप में जाना जाता है। लेकिन अब एक अध्ययन में सामने आया है कि कीट परागण की प्रक्रिया बाधित हो रही है और इसके लिए वायु प्रदूषण भी जिम्मेवार है।

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1st March 2024