गन्ने की फसल के मुख्य रोग व रोकथाम
Modern Kheti - Hindi|December 01, 2023
नकदी फसलों में गन्ने का महत्वपूर्ण स्थान है। हरियाणा में यह फसल मुख्य रुप से राज्य के यमुनानगर, अम्बाला, करनाल, कुरुक्षेत्र, कैथल, रोहतक, पलवल, फरीदाबाद, जींद आदि जिलों में उगाई जाती है।
आर० एस० चौहान, नरेश यादव, प्रशांत चौहान एवं नरेन्द्र सिंह
गन्ने की फसल के मुख्य रोग व रोकथाम

हरियाणा में गन्ने की औसत पैदावार लगभग 250 क्विंटल प्रति एकड़ है जो कि अपेक्षित पैदावार से काफी कम है। फसल उत्पादन में इस अन्तर के कई कारण हैं जैसे कि प्रति यूनिट पौधों की संख्या में कमी, खरपतवारों का सही नियन्त्रण न होना, पोषक तत्वों का सही प्रबन्धन न होना व कीड़ों व बीमारियों का प्रकोप इत्यादि । गन्ने की फसल में बीमारियों द्वारा होने वाले नुकसान को कम करने के लिये, गन्ने में लगने वाली बीमारियों के लक्षणों व प्रबन्धन के बारे में किसानों को जागरुक करना अति आवश्यक है। इस लेख में किसानों की जानकारी के लिये गन्ने में लगने वाली मुख्य बीमारियों व उनकी रोकथाम के बारे में बताया गया है।

1. उरवेड़ा व सोका रोग : यह रोग एक फफूंद द्वारा फैलता है। शुरू में पत्ते पीले पड़ जाते हैं और बाद में गन्ना सूख जाता हैं। गन्ना हल्का व अन्दर से खोखला हो जाता हैं। इस रोग में भी यदि गन्ने को चीर कर देखें तो गुलाबी रंग दिखाई देता है परन्तु इसमें सफेद पट्टियां नहीं बनती।

रोकथाम :

1. स्वस्थ एवं रोगरहित बीज का प्रयोग करें। 

2. रोगी फसल की मोढ़ी न लें।

Bu hikaye Modern Kheti - Hindi dergisinin December 01, 2023 sayısından alınmıştır.

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कैसे खरीदें उत्तम बीज
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कैसे खरीदें उत्तम बीज

किसी भी फसल से अच्छा उत्पादन प्राप्त करने के लिए गुणवत्ता भरपूर बीज एक आरंभिक जरुरत है। अच्छे बुरे बीजों का अहसास किसानों को 45-46 वर्ष पहले उस समय हुआ जब मैक्सीकन गेहूं की मधरे कद्द वाली किस्में नरमा रोहो एवं सोनारा-64 की उन्होंने पहली बार काश्त करके 1965-66 में की थी।

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15th May 2024
क्षारीय-लवणीय पानी की मार से बचाती है हरी खाद
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क्षारीय-लवणीय पानी की मार से बचाती है हरी खाद

पंजाब में घनी खेती, अधिक उत्पादन देने वाली किस्मों की काश्त एवं लंबे समय से अपनाई जा रही धान-गेहूँ फसली चक्र के कारण भूमि की उपजाऊ शक्ति लगातार घट रही है।

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15th May 2024
स्वैः रोजगार का मार्ग सर्टीफाईड सीड उत्पादन
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स्वैः रोजगार का मार्ग सर्टीफाईड सीड उत्पादन

कृषि उत्पादकता में बीज की गुणवत्ता विशेष भूमिका अदा करती है। कृषि उत्पादन में वृद्धि करने के लिए अन्य कारकों के मुकाबले बीज का महत्व कहीं अधिक होता है। दीर्घकाल से कृषि में बढ़ोतरी एवं विकास के लिए बेहतर टैक्नॉलोजी एवं प्रसार अत्यंत आवश्यक है। आमतौर पर यह टैक्नॉलोजी बीज द्वारा खेतों तक पहुंचाई जाती है। 1960 के दशक में हरित क्रांति की लहर का बड़ा कारण नये बीजों की खोज एवं प्रसार को माना जाता है।

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15th May 2024
पशुओं को लम्पी बीमारी से बचाने के लिए उपाय
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पशुओं को लम्पी बीमारी से बचाने के लिए उपाय

लम्पी स्किन बीमारी गाय व भैंसों में फैलने वाला वायरस जनित रोग है। इस बीमारी में पशु को तेज बुखार, भूख न लगना, दूध में गिरावट, नाक व मूँह से पानी गिरना इत्यादि लक्षण दिखाई देते हैं।

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15th May 2024
ड्रिप सिंचाई प्रणाली का निर्माण एवं रखरखाव
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ड्रिप सिंचाई प्रणाली का निर्माण एवं रखरखाव

फसल का उत्पादन बढ़ाने में ड्रिप सिंचाई की अहम भूमिका है। ड्रिप सिंचाई प्रणाली से काम लेने के लिए यह आवश्यक है कि इसका रखरखाव अच्छे तरीके से किया जाये। बागवानी फसलों में पौधे से पौधे की दूरी अधिक होने के कारण ऑनलाइन लेटरल पाईपें और ड्रिपर का प्रयोग किया जाता है। यदि क्षेत्र आवारा पशुओं से सुरक्षित है और फसल में पौधे से पौधे की दूरी निश्चित है तो इन लाईन लेटरल का प्रयोग किया जाता है। यदि क्षेत्र की भौगोलिक स्थिति ऊँची नीची है तो ऑनलाइन या इनलाइन लेटरल में प्रेशर कम्पनसैटिंग ड्रिपर का प्रयोग किया जाता है।

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15th May 2024
क्षारीय भूमि का सुधार एवं प्रबंधन
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क्षारीय भूमि का सुधार एवं प्रबंधन

देश की बढ़ती हुई जनसंख्या की पोषण समस्या भारतीय कृषि के लिए एक बुहत बड़ी चुनौती बनती जा रही है। इस बढ़ती हुई जनसंख्या के भरण पोषण के लिए यह अति आवश्यक है कि जो भूमि खेती के उपयोग में नहीं है, उसको ठीक करके खेती योग्य बनाया जाए। इसी के अंतरगत क्षारीय भूमि को ठीक कर कृषि योग्य बनाना अति आवश्यक है क्योंकि भूमि की उत्पादन क्षमता सीमित है और इस प्रकार की भूमि को सुधार कर फसलों के उपयुक्त बनाना ही एकमात्र विकल्प है।

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पीएयू ने बासमती धान में फुट रोट प्रबंधन के लिए पहला जैव नियंत्रण एजेंट पंजीकृत किया
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पीएयू ने बासमती धान में फुट रोट प्रबंधन के लिए पहला जैव नियंत्रण एजेंट पंजीकृत किया

पंजाब कृषि विश्वविद्यालय (पीएयू) केंद्रीय कीटनाशक बोर्ड और पंजीकरण समिति (सीआईबीआरसी) के साथ बायोकंट्रोल एजेंट ट्राइकोडर्मा एस्पेरेलम 2 प्रतिशत डब्ल्यूपी को पंजीकृत करके एक महत्वपूर्ण मील के पत्थर पर पहुंच गया है। इस पंजीकरण का उद्देश्य बासमती चावल में फुट रोट या बकाने रोग का प्रबंधन करना है, जो इस क्षेत्र में लगातार समस्या रही है, जिससे किसानों को काफी नुकसान होता है और राज्य की निर्यात संभावनाओं को खतरा होता है।

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भारतीय वैज्ञानिकों द्वारा पहला जांस्करी घोड़े नस्ल सुधार का प्रयास
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भारतीय वैज्ञानिकों द्वारा पहला जांस्करी घोड़े नस्ल सुधार का प्रयास

देश में अच्छी नस्ल के घोड़ों की कमी एक गंभीर समस्या है। ऐसे में वैज्ञानिकों द्वारा किए गए इस प्रयोग से अच्छी नस्ल के घोड़ों की संख्या बढ़ाई जा सकती है। ऐसी ही नस्ल लेह-लद्दाख में पाई जाने वाली देसी टट्टू नस्ल जांस्कारी भी है।

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ड्रोन का कृषि व्यवसाय में बढ़ रहा प्रयोग
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ड्रोन का कृषि व्यवसाय में बढ़ रहा प्रयोग

फसल मानचित्रण, विश्लेषण और पोषक तत्वों और कीटनाशकों के अनुप्रयोग जैसी कृषि गतिविधियों के लिए ड्रोन को बढ़ावा देने पर सरकार के जोर के साथ, निर्माताओं को अगले कुछ वर्षों में इन मानव रहित हवाई वाहनों (यूएवी) की मांग में तेजी से वृद्धि देखने को मिल रही है।

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15th May 2024
कृषि आंकड़ों को बेहतर करेगी डिजिटल फसल सर्वेक्षण
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कृषि आंकड़ों को बेहतर करेगी डिजिटल फसल सर्वेक्षण

वरिष्ठ अधिकारियों ने कहा कि भारत सटीक रकबे का आकलन करने के लिए पूरे देश में उन्नत विश्लेषण और कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) द्वारा समर्थित नियमित डिजिटल फसल सर्वेक्षण करके अपनी कृषि सांख्यिकी प्रणाली को मजबूत करने की योजना बना रहा है।

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15th May 2024