आज की कविता यद्यपि बेहद छोटे-से दायरे की चीज रह गई है, पर उसके वैश्विक, राजनैतिक चिंताओं वाले साठोत्तरी तेवर अभी भी बदस्तूर हैं. जैसे कभी फिलिस्तीन हुआ करता था, उसी तरह अब हिंदूवादी सांप्रदायिकता इसका अहम मुद्दा है. इसमें इतनी तरक्की हुई है कि पॉलिटिकल एजेंडा अब राजनैतिक पार्टियों का नाम लेने तक प्रत्यक्ष हो चुका है. इसलिए असद जैदी अपनी एक कविता में कभी अनिवेदित रहे प्रेम की याद में अब उम्रदराज हो चुकी आभासी प्रेमिकाओं से बीजेपी के विरोध की एक लाचार उम्मीद करते हैं कि अगर वोट डालने निकल ही पड़ी हो/ तो कहीं भूलकर भी न लगा देना/ उस फूल पर निशान. व्योमेश इसे 'प्रेम निवेदन की भाषा में 'सबसे बड़े खतरे का दमन कर डालने की चुनौती' कहते हैं. ये है हिंदी कविता की बौद्धिक भावुकता और ये है उसका आलोचनात्मक रेटॉरिक. कविता जैसी विधा से अमूमन यह उम्मीद नहीं की जाती कि वह यह विश्लेषण करे कि कोई भी सांप्रदायिकता क्यों पैदा हो जाती है, पर कवि इसका अंदाजा तो लगा ही सकता है. इसलिए एक अन्य कविता में असद जैदी कहते हैं, प्रतिक्रियावाद की इस बाढ़ का राज/ कुछ इस जमीन में है। कुछ बुजुर्गों के कारनामों में, व्योमेश का अंदाजा है ये बुजुर्ग जरूर विभाजन पर मुहर लगाने वाले कांग्रेसी और मुस्लिम लीगी हैं. इस तरह व्योमेश एक ज्वलंत राजनैतिक मुबाहसे की थाह लेने की कोशिश करते हैं.
व्योमेश इन टिप्पणियों में बात को आसान की तुलना में सटीक ढंग से कहने की कोशिश करते हैं. उनके पास अच्छी प्रेक्षकीय निगाह है
Bu hikaye India Today Hindi dergisinin November 11, 2020 sayısından alınmıştır.
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