उस परम सत्ता की शक्ति को निरंतर विश्वास और अखंड प्रार्थना से जगाया जा सकता है। आपको उचित आहार लेना चाहिए और शरीर की उचित देखभाल के लिए जो भी करना आवश्यक है वह अवश्य करना चाहिए। परंतु इससे भी अधिक भगवान से निरंतर प्रार्थना करनी चाहिए : ‘प्रभु ! आप ही मुझे ठीक कर सकते हैं क्योंकि प्राणशक्ति के अणुओं को और शरीर की सूक्ष्म अवस्थाओं को, जिन तक कोई डॉक्टर कभी अपनी औषधियों के साथ पहुँच ही नहीं सकता, उन्हें आप ही नियंत्रित करते हैं।'
This story is from the March 2023 edition of Rishi Prasad Hindi.
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पुण्य-संचय व भगवत्प्रीति के लिए सर्वोत्तम मास
वैशाख मास: २३ अप्रैल से २३ मई
गर्मी या पित्त संबंधी समस्याओं का बेजोड़ उपाय : सफेद पैठा
सफेद पेठा (भूरा कुम्हड़ा) आयुर्वेद के अनुसार अत्यंत लाभदायी फल, सब्जी तथा अनेकों रोगों में उपयोगी औषधि है। इसका पका फल सर्व दोषों को हरनेवाला है।
... और मुगल साम्राज्य का अंत हो गया
जो दूसरों को परेशान करके राज्य करते हैं अथवा जो दूसरों को परेशान करके मजा लेते हैं उनके लिए कुदरत की क्या-क्या व्यवस्था है ! मुगल शासन था। दो राजकुमार दिल्ली से बाहर जंगल में आखेट (शिकार) करने गये।
कैसे नष्ट हो गया था वल्लभीपुर?
मैंने सुनी है एक कथा कि भावनगर के नजदीक वल्लभीपुर नाम का एक नगर था । एक संत कहीं से घूमते-घामते वहाँ पहुँचे। वहाँ एकांत में उन्होंने अपने ध्यान-भजन की जगह चुनी। उनका शिष्य भिक्षा लेकर आता था।
जब हनुमानजी पर छलक पड़े श्रीरामजी
२३ अप्रैल (चैत्र मास की पूर्णिमा) को श्री हनुमानजी का प्राकट्य दिवस है। हनुमानजी अद्भुत शक्ति, निष्ठा और भक्ति के प्रतीक हैं। यह दिवस न केवल भक्ति की महिमा को चिह्नित करता है बल्कि आध्यात्मिक जागृति और आत्मसाक्षात्कार के महत्त्वपूर्ण पहलुओं को भी सामने लाता है।
मोक्षप्राप्ति का साक्षात् साधन
जिस काल में, जिस देश में और जिस रूप में 'अहं - अहं' का स्फुरण हो रहा है यदि उसी काल, उसी देश और उसी रूप में वही 'अहं' तत्त्वतः परमात्मा न हो तो परमात्मा नाम की किसी वस्तु की सिद्धि, स्थिति या उपलब्धि नहीं हो सकती क्योंकि वह नश्वर, अपूर्ण तथा अप्राप्त होगी।
वास्तविक जीवन
रविदासजी को उनके पिता ने ७ जोड़ी जूते बनाकर दिये। २ रुपये जोड़ी बेचने थे। उन्होंने पिता को १४ रुपये के बदले १२ रुपये दिये।
अपने जन्म-कर्म को दिव्य कैसे बनायें?
२९ अप्रैल को पूज्य संत श्री आशारामजी बापू का अवतरण दिवस है । आप सभीको इस दिन की खूब - खूब बधाई ! इस पावन पर्व पर जानते हैं जन्म-कर्म को दिव्य बनाने का रहस्य पूज्य बापूजी के सत्संग-वचनामृत से:
संत अपमान से उजड़ा गाँव, जान-माल की हुई भारी तबाही
(पूज्य बापूजी के सत्संग से)
वे ही वास्तव में महान हो जाते हैं!
'मैं कुछ बनूँ...' या 'हम कुछ बनें' यह ईश्वर से अलग अपना अस्तित्व बनाने की, ईश्वर से अलग होकर अपनी कोई विशेषता प्रकट करने की जो कोशिश है यही व्यक्ति का व्यक्तिगत दोष है और समाज का सामाजिक दोष है | बहुत सूक्ष्म बात है।