फाल्गुन (अमावस्यांत माघ) मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को आनेवाली यह महाशिवरात्रि, कल्याणकारी रात्रि तपस्या का पर्व है। महाशिवरात्रि को जितना हो सके एकांत में रहना, जैसे भगवान साम्बसदाशिव समाधि में रहते हैं। विज्ञान की दृष्टि से भी भजन, ध्यान के लिए यह महारात्रि बड़ी उपयोगी है।
इस महारात्रि का महत्त्व बताते हुए भीष्म पितामह कहते हैं : "युधिष्ठिर ! भगवान की साम्बसदाशिव महिमा ध्यान से सुनो। चित्रभानु सुख-वैभव से सम्पन्न राजा था महाशिवरात्रि के दिन उसके पास अष्टावक्र मुनि आये। राजा ने व्रत रखा था।
अष्टावक्रजी ने पूछा विचारवान हो और तुम्हारे पास इतनी सुख: "तुम इतने सम्पदा है फिर महाशिवरात्रि का व्रत क्यों रख रहे हो?"
चित्रभानु ने कहा : "मुनीश्वर ! ईश्वर की कृपा से मुझे पिछले जन्म की स्मृति है। मैं पिछले जन्म में शिकारी था । पशुओं को मारता और उन्हें बेचकर गुजारा करता था। महाशिवरात्रि का दिन था। मैं जंगल में शिकार करने गया तो लौटतेलौटते रात हो गयी, जिसके कारण मैं रास्ता भटक गया। घर जाने में असमर्थ था तो आश्रय के लिए मैं एक बिल्ववृक्ष पर चढ़ गया। दैवयोग से उस पेड़ के नीचे शिवलिंग था। अनजाने में मेरा रात्रिजागरण हो गया और भटक गया था इसलिए भूखा भी रहा तो उपवास हो गया। वहाँ बैठे-बैठे ऐसे ही बिल्वपत्र तोड़ता था, वे बिल्वपत्र बिल्ववृक्ष के नीचे स्थित शिवलिंग पर गिरते जाते थे तो अनजाने में मेरे द्वारा शिवजी की पूजा हो गयी। उस रात के बाद मेरे चित्त में पाप की रुचि कम होने लगी और भगवान की आराधना का कुछ भाव जगा।
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पुण्य-संचय व भगवत्प्रीति के लिए सर्वोत्तम मास
वैशाख मास: २३ अप्रैल से २३ मई
गर्मी या पित्त संबंधी समस्याओं का बेजोड़ उपाय : सफेद पैठा
सफेद पेठा (भूरा कुम्हड़ा) आयुर्वेद के अनुसार अत्यंत लाभदायी फल, सब्जी तथा अनेकों रोगों में उपयोगी औषधि है। इसका पका फल सर्व दोषों को हरनेवाला है।
... और मुगल साम्राज्य का अंत हो गया
जो दूसरों को परेशान करके राज्य करते हैं अथवा जो दूसरों को परेशान करके मजा लेते हैं उनके लिए कुदरत की क्या-क्या व्यवस्था है ! मुगल शासन था। दो राजकुमार दिल्ली से बाहर जंगल में आखेट (शिकार) करने गये।
कैसे नष्ट हो गया था वल्लभीपुर?
मैंने सुनी है एक कथा कि भावनगर के नजदीक वल्लभीपुर नाम का एक नगर था । एक संत कहीं से घूमते-घामते वहाँ पहुँचे। वहाँ एकांत में उन्होंने अपने ध्यान-भजन की जगह चुनी। उनका शिष्य भिक्षा लेकर आता था।
जब हनुमानजी पर छलक पड़े श्रीरामजी
२३ अप्रैल (चैत्र मास की पूर्णिमा) को श्री हनुमानजी का प्राकट्य दिवस है। हनुमानजी अद्भुत शक्ति, निष्ठा और भक्ति के प्रतीक हैं। यह दिवस न केवल भक्ति की महिमा को चिह्नित करता है बल्कि आध्यात्मिक जागृति और आत्मसाक्षात्कार के महत्त्वपूर्ण पहलुओं को भी सामने लाता है।
मोक्षप्राप्ति का साक्षात् साधन
जिस काल में, जिस देश में और जिस रूप में 'अहं - अहं' का स्फुरण हो रहा है यदि उसी काल, उसी देश और उसी रूप में वही 'अहं' तत्त्वतः परमात्मा न हो तो परमात्मा नाम की किसी वस्तु की सिद्धि, स्थिति या उपलब्धि नहीं हो सकती क्योंकि वह नश्वर, अपूर्ण तथा अप्राप्त होगी।
वास्तविक जीवन
रविदासजी को उनके पिता ने ७ जोड़ी जूते बनाकर दिये। २ रुपये जोड़ी बेचने थे। उन्होंने पिता को १४ रुपये के बदले १२ रुपये दिये।
अपने जन्म-कर्म को दिव्य कैसे बनायें?
२९ अप्रैल को पूज्य संत श्री आशारामजी बापू का अवतरण दिवस है । आप सभीको इस दिन की खूब - खूब बधाई ! इस पावन पर्व पर जानते हैं जन्म-कर्म को दिव्य बनाने का रहस्य पूज्य बापूजी के सत्संग-वचनामृत से:
संत अपमान से उजड़ा गाँव, जान-माल की हुई भारी तबाही
(पूज्य बापूजी के सत्संग से)
वे ही वास्तव में महान हो जाते हैं!
'मैं कुछ बनूँ...' या 'हम कुछ बनें' यह ईश्वर से अलग अपना अस्तित्व बनाने की, ईश्वर से अलग होकर अपनी कोई विशेषता प्रकट करने की जो कोशिश है यही व्यक्ति का व्यक्तिगत दोष है और समाज का सामाजिक दोष है | बहुत सूक्ष्म बात है।