स्वातंत्र्यवीर को नमन
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स्वामी विवेकानन्द कहते थे, "मुझे चाहिए लोहे की मांसपेशियाँ और फौलाद के स्नायु। ऐसे युवा जो समुद्र को लांघने एवं मृत्यु को भी गले लगाने की क्षमता रखते हों, ऐसे मुझे सौ भी मिल जाएं तो मैं भारत ही नहीं, सम्पूर्ण विश्व का कर कायापलट दूंगा।"
स्वातंत्र्यवीर को नमन

स्वामीजी के इस विचार ने असंख्य युवाओं को समुद्र लांघने मृत्यु औ खेलने की प्रेरणा दी। इन्हीं युवाओं में से दो युवाओं का नाम भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में प्रमुखता से लिया जाता है - एक हैं वीर सावरकर और दूसरे हैं नेताजी सुभाषचन्द्र बोस। दोनों युवाओं ने भारत की स्वतंत्रता के लिए अपार कष्ट उठाए, अनगिनत अत्याचार सहे और भारत के युवाओं के अन्तःकरण में राष्ट्र के लिए बलिदान देने की प्रेरणा अपने विचारों और साहसिक कार्यों से दिया । युवाशक्ति के प्रेरणास्रोत स्वामी विवेकानन्द ने २५ दिसम्बर, १८६२ को हिन्द महासागर में छलांग लगाई। इसके बाद वीर सावरकर ने ८ जुलाई, १६१० को और नेताजी सुभाषचन्द्र बोस ने८ मार्च, १६४३ को समुद्र में छलांग लगाई। तीनों ही नायकों का जीवन सागर की भांति है जिनके विचारों की लहरें आज भी भारतीय जनमानस को प्लावित करती हैं। २८ मई को वीर सावरकर की जयन्ती है। इस समय समूचे भारत में विनायक दामोदर सावरकर का भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में क्या अवदान रहा है, इसपर व्यापक लोक जागरण का कार्य शुरू है। अबतक शालेय पुस्तकों में क्रान्तिकारियों के सन्दर्भ में बहुत ही कम जानकारियाँ दी गईं। इस कारण देश के क्रान्तिकारियों के जीवन से जुड़ी अनेक बातों से लोग अवगत नहीं है। फिर भी वर्तमान पीढ़ी के मन में क्रान्तिकारियों के प्रति अगाध श्रद्धा है, क्योंकि क्रान्तिकारियों का त्याग और बलिदान में बहुत शक्ति है। उनके त्याग और समर्पण का प्रकाश इतना प्रखर है कि इसे बहुत दिनों तक छिपाया नहीं जा सकता।

संत कबीर कहते हैं :

तारों की सभा में बैठ के, चाँद बड़ाई खाय। 
उदय भया जब सूर्य का सब तारा छिप जाय।

वीर सावरकर स्वतंत्रता संग्राम का ऐसा सूर्य है जिनका तेज लन्दन, फ्रांस, जर्मनी, इटली और जापान में रह रहे भारतीय युवाओं के हृदय तक जा पहुँचा था। भारत की स्वतंत्रता के लिए उन्होंने अनेक साहसिक कार्य किए इसलिए उन्हें "स्वातंत्र्यवीर" कहकर सामान्य जनता उनके प्रति अपनी श्रद्धा दर्शाती है। किन्तु राजनीतिक दलों का एक तबका वीर सावरकर के योगदान की अनदेखी कर उनके प्रति अपमानस्पद टिप्पणी करने में लगा है। इसलिए सावरकर के विचारों, उनके साहसिक कार्यों और निर्णयों से समग्र भारत को अवगत चाहिए।

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