विवाह के पश्चात् ज्यादातर दम्पतियों की इच्छा होती है कि उनके आँगन में एक नन्हा- मुन्ना बालक खेले। आज के आधुनिक युग में विवाह देरी से हो रहे हैं। इसी के चलते सन्तान प्राप्ति भी देर से ही हो रही है। आपको सन्तान का सुख समय पर मिल पाएगा अथवा नहीं? यह जानने में जन्मपत्रिका एक सरल और सहज साधन है।
यह एक ऐसा साधन है, जिसके माध्यम से यह जाना जा सकता है कि सन्तान प्राप्ति कब होगी और विवाह के कितने वर्ष पश्चात् होगी? इस प्रकार के सभी प्रश्नों के जवाब आसानी से जाने जा सकते हैं। आइए, जन्मपत्रिका से जानें कि सन्तान के विषय में आपकी कुण्डली क्या कहती है?
लग्न का स्वामी जन्मपत्रिका में बलवान् हो, शुभ स्थान पर हो तथा शुभ ग्रहों से युक्त तो निश्चित रूप से सप्तमांश लग्न भी एवं द्रष्ट सन्तान सुख की अनुभूति होती है। प्रसिद्ध फलित ग्रन्थों में वर्णित कुछ प्रमुख योग निम्नलिखित प्रकार से हैं, जिनके जन्मपत्रिका में होने से सन्तान सुख की प्राप्ति अवश्य होती है। जन्मपत्रिका में लग्नेश और पंचमेश का अथवा पंचमेश और नवमेश का युति, दृष्टि या राशि सम्बन्ध शुभ भावों में हो।
● लग्नेश पंचम भाव में मित्र, उच्च राशि नवांश का हो।
● पंचमेश पंचम भाव में ही स्थित हो। पंचम भाव पर बलवान् शुभ ग्रहों की पूर्ण दृष्टि हो।
● जन्मपत्रिका में गुरु स्व, मित्र, उच्च राशि नवांश का लग्न से शुभ भाव में स्थित हो।
● एकादश भाव में शुभ ग्रह बलवान् होकर स्थित हो। गुरु से पंचम भाव में शुभ ग्रह स्थित हो।
● गुरु के अष्टकवर्ग में पंचम स्थान में बलवान् ग्रहों द्वारा प्रदत्त पाँच अथवा अधिक शुभ रेखाएँ हों।
● सप्तमांश लग्न का स्वामी बलवान् होकर जन्मपत्रिका में शुभ भाव में स्थित हो।
दशा अथवा अन्तर्दशा
● पंचम भाव स्थित ग्रह की दशा अथवा अन्तर्दशा।
● पंचम भाव को देखने वाले ग्रह की दशा अथवा अन्तर्दशा।
● पंचम भाव स्थित ग्रह अथवा पंचम भाव को देखने वाले ग्रह से पंचम में स्थित ग्रह की दशा अथवा अन्तर्दशा।
● उपर्युक्त ग्रहों के राशि स्वामी अथवा सप्तमांश स्वामी की दशा या अन्तर्दशा।
● सन्तान कारक गुरु की दशा।
● गुरु अथवा चन्द्रमा से पंचम भाव का स्वामी, चन्द्रमा अथवा गुरु से पंचम भाव स्थित ग्रह की दशा।
This story is from the August 2022 edition of Jyotish Sagar.
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शिव-शक्ति के महामिलन का दिवस है महाशिवरात्रि
शिव का अर्थ है 'कल्याणकारी'। सृष्टि के कल्याण के लिए ही समुद्र मन्थन से उत्पन्न विष को अपने कण्ठ में उतारा और 'नीलकण्ठ' बन गए। शिव का जो कल्याण करने का भाव है, वही 'शिवत्व' कहलाता है। 'शिवोहम्' का उद्घोष वही व्यक्ति कर सकता है, जो स्वयं के भीतर इस शिवत्व को धारण कर लेता है। उसे अपने आचारव्यवहार में उतार लेता है। महाशिवरात्रि पर शिव की उपासना तभी सार्थक होती है, जब हम दूसरों के कल्याण के लिए विष पीने को भी उद्यत हो जाएँ। इसी तरह हम शिवत्व प्राप्त कर सकते हैं।
सफलता के लिए तिथि के अनुसार करें अपने कार्य
सेना सम्बन्धी कार्य, मुकदमेबाजी जैसे अदालती कार्य निबटाना, वाहन खरीदना, कलात्मक कार्यों जैसे विद्या, गायन-वादन, नृत्य आदि के लिए विशेष शुभ होती हैं।
स्वामी दयानन्द का बोधोत्सव दिवस है शिवरात्रि
आज समस्त आर्य जगत् महाशिवरात्रि को ‘महर्षि दयानन्द बोधोत्सव' के रूप में मनाता आ रहा है।
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जन्मपत्रिका से जानें मकान प्राप्ति के योग
रोटी, कपड़ा और मकान इन तीन चीजों को जीवन-यापन की मूलभूत आवश्यकता माना जाता है। हम अपनी कमाई से रोटी की व्यवस्था करते हैं, कपड़ों की भी व्यवस्था करते हैं, लेकिन एक अपना मकान बनाना अधिक समय और लागत माँगता है।
शिवोपासना की महिमा
सृष्टि के प्रारम्भ में फाल्गुन त्रयोदशी (कृष्ण पक्ष की) तिथि को मध्यरात्रि में भगवान् शिव का ब्रह्मा से रूद्र के रूप में अवतरण हुआ था। शिवरात्रि के दिन व्रत एवं उपवास रखकर शिवलिंग पर बिल्वपत्र अर्पित करने चाहिए।
शिवरात्रि का वास्तविक मर्म
महाशिवरात्रि पर विशेष
रात्रिजागरण एवं चार प्रहर पजा
08 मार्च, 2024 (शुक्रवार)
होलिका दहन का शास्त्रीय विधान
गीता में भगवान् श्रीकृष्ण ने कहा है अर्जुन! जो कुछ करते हो, जो कुछ खाते हो, अग्नि के अर्पण करते हो, दान देते हो, तपस्या करते हो, उसे मेरे अर्पण करते हुए करो।