
म्यांमार 2021 से भीषण गृहयुद्ध की चपेट में है, जब सैन्य सरकार ने आंग सान सू की को सत्ता से हटा दिया और चुनावों में धांधली का आरोप लगाया था। इसके बाद से देश लगातार संघर्ष का गवाह बना हुआ है, जिसमें सेना, अपदस्थ नागरिक सरकार और विभिन्न जातीय सशस्त्र समूह शामिल हैं। सत्ता को मजबूत करने के सैन्य प्रयासों का कड़ा विरोध हुआ, जिसके परिणामस्वरूप युद्धक्षेत्र में भारी नुकसान और गंभीर मानवाधिकार उल्लंघन के आरोप लगे हैं। अब, सत्ता पर अपनी पकड़ बनाए रखने के अंतिम प्रयास में जुटा इस वर्ष जुलाई के बाद किसी समय चुनाव कराने की योजना बना रही है। लेकिन मूल प्रश्न यह है: क्या ये चुनाव म्यांमार में शांति ला पाएंगे?
शांति की संभावना कम : अंतरराष्ट्रीय दबाव के बावजूद, म्यांमार अब भी गृहयुद्ध में फंसा हुआ है। सत्ता पर कब्जा करने के चार साल बाद भी जुटा सेना और प्रमुख विपक्षी समूहों के बीच बातचीत की कोई संभावना नहीं दिख रही है। सेना को पीपुल्स डिफेंस फोर्स (पीडीएफ) और जातीय सशस्त्र संगठनों से जबर्दस्त प्रतिरोध का सामना करना पड़ रहा है, जो देश के बड़े हिस्सों पर नियंत्रण रखते हैं। इसके जवाब में, जुंटा ने हवाई हमलों, तोपखाने से बमबारी, जबरन भर्ती और सामूहिक गिरफ्तारियों जैसी दमनकारी रणनीतियों को अपनाया है, जिससे मानवीय संकट और गहरा गया है। संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी) की रिपोर्ट के मुताबिक, अब लगभग आधी आबादी गरीबी में जी रही है और देश की अर्थव्यवस्था चरमरा गई है।
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