लेकिन शादी के बाद एक लड़की का इन संबंधियों से एक नया रिश्ता बनता है. रिश्ता तो लड़के का भी लड़की के संबंधियों से बनता है पर वह मात्र औपचारिक होता है. शादी होने पर लड़की का जो रिश्ता लड़के के संबंधियों से बनता है, वह कुछ और माने रखता है.
सास और ससुर से संबंध इस मामले में सब से बड़ा और महत्त्वपूर्ण होता है. लड़के का संबंध अपने मांबाप से नैसर्गिक, नैचुरल होता है, 20-30 साल पुराना होता है, लेकिन उस की पत्नी को उन (सासससुर) से संबंध एक दिन में बनाना होता है जिस की न कोई तैयारी होती है न ट्रेनिंग. लड़की चाहे सास खुद पसंद कर के लाए या सास का लाड़ला अपनी मां की सहमति या असहमति से लाए, संबंध को निभाने की जिम्मेदारी अकेली उसी यानी नई पत्नी की होती है.
यह एक बड़े पेड़ के प्रत्यारोपण (ट्रांसप्लांट) की तरह होता है. अब तक मनुष्य पेड़ों को इधर से उधर जड़ समेत नहीं ले जाता था, नए लगाना वह आसान समझता था क्योंकि हाल तक यह माना जाता था कि जिस पेड़ की जड़ें जमीन में गहरे तक गई हुई हैं, उसे दूसरी जगह ले जाना और फिर उस का फलनाफूलना असंभव सा है. लेकिन हाल में तकनीक विकसित हुई है कि पेड़ को जड़ समेत एक जगह से दूसरी जगह ले जाया जा सकता है, हालांकि, इस प्रक्रिया में बहुत से पेड़ मुरझा जाते हैं.
तकरीबन हर लड़की के जीवन में उस के रिश्तों को अपने मांबाप से एक झटके से तोड़ कर उसे दूसरे संबंधों से जोड़ दिया जाता है और उम्मीद की जाती है कि वह पत्नी बन कर अपनी पुरानी जड़ें भूल नई पक्की जमीन में अपनी जड़ें दिनों, सप्ताहों में बना लेगी. केवल पति के सहारे एक पत्नी के लिए यह काम मुश्किल होता है खासतौर पर जब वह अपनी पहले ही जमीन पर पत्नी को जगह देने को तैयार न हो.
नई पत्नी को नए घर में रमाने न देने के लिए पंडों ने बहुत से उपाय तैयार कर रखे हैं. वे अपनी इस सेवा को लिए जाने को कंप्लसरी बनाने के लिए इस नई सदस्या को अनावश्यक बनाने का माहौल बनाना शुरू कर देते हैं.
This story is from the November Second 2023 edition of Sarita.
Start your 7-day Magzter GOLD free trial to access thousands of curated premium stories, and 8,500+ magazines and newspapers.
Already a subscriber ? Sign In
This story is from the November Second 2023 edition of Sarita.
Start your 7-day Magzter GOLD free trial to access thousands of curated premium stories, and 8,500+ magazines and newspapers.
Already a subscriber? Sign In
फिल्मों में कैंसर लोगों को बीमारी के बारे में बताया या सिर्फ इसे भुनाया
लाइलाज बीमारी कैंसर का हिंदी फिल्मों से ताल्लुक कोई 60 साल पुराना है. 1963 में सी वी श्रीधर निर्देशित राजकुमार, मीना कुमारी और राजेंद्र कुमार अभिनीत फिल्म 'दिल एक मंदिर' में सब से पहले कैंसर की भयावहता दिखाई गई थी लेकिन 'आनंद' के बाद कैंसर पर कई फिल्में बनीं जिन में से कुछ चलीं, कुछ नहीं भी चलीं जिन की अपनी वजहें भी थीं, मसलन निर्देशकों ने कैंसर को भुनाने की कोशिश ज्यादा की.
मोबाइल नंबर की अनिवार्यता
आज मोबाइल हमारे जीवन का जरूरी अंग बना दिया गया है. हम चाह कर भी इस के बिना नहीं रह सकते. सभी चीजें औनलाइन कर दी गई हैं. कुछ काम तो सिर्फ औनलाइन तक ही सीमित रह गए हैं. ऐसे में एक गरीब को भी मोबाइल खरीदना जरूरी हो गया है.
घर में बनाएं जिम
जिम में जा कर ऐक्सरसाइज करने से अधिक सुविधाजनक यह है कि घर में ही अपना जिम बनाएं घर के जिम में आवश्यक ऐक्सरसाइज इक्विपमैंट ही रखें, जिस से कम बजट में इस को तैयार किया जा सके.
अधेड़ उम्र में शादी पर सवाल कैसा
आयु का इच्छाओं से कोई संबंध नहीं है. अगर आप अपने बलबूते पर, खुद के भरोसे 60 वर्ष की आयु में भी शरीर बनाना चाहते हैं, दुनिया की सैर करना चाहते हैं, किसी हसीना के साथ डेट पर जाना चाहते हैं या शादी करना चाहते हैं तो भई, इस पर सवाल कैसा?
गरमी में भी सब्जियों और फलों को ऐसे रखें ताजा
गरमी में सब्जियां, खासकर हरी सब्जियां, जल्दी खराब होती हैं. ऐसे में वे आसान तरीके जानिए जिन से सब्जियों को जल्दी खराब होने से बचाया जा सकता है.
वौयस क्लोनिंग का खतरा
आजकल वौयस क्लोनिंग के जरिए महिलाओं को बेवकूफ बनाया जा रहा है. एआई की मदद से प्रेमी, भाई या किसी अन्य परिजन की आवाज में कौल कर पैसे ऐंठे जा रहे हैं जो डिजिटलीकरण की कमियां दिखा रहा है.
जीने की आजादी है महिलाओं का बाइक चलाना
पुरुषों के लिए बाइक चलाना सामान्य बात मानी जाती है मगर कोई महिला बाइक चलाए तो उसे हैरान नजरों से देखा जाता है.
हीनता और वितृष्णा का प्रतीक पादुका पूजन
भारत में गुरु तो गुरु, उन की पादुकाएं तक पैसा कमाती हैं. इसे चमत्कार कहें या बेवकूफी, यह अपने देश में ही होना संभव है. धर्मगुरुओं ने प्रवचनों के जरिए लोगों में आज कूटकूट कर इतनी हीनता भर दी है कि वे मानसिक तौर पर अपाहिज हो कर रह गए हैं.
फ्रांस में गर्भपात पर फैसला मेरा शरीर मेरा हक
फ्रांस में गर्भपात कानून में बदलाव के बाद पूरी दुनिया में इस पर बहस छिड़ गई है कि इस का नतीजा क्या होगा?
बाल्टीमोर ब्रिज हादसा पुल के साथ ढहा भारतीय आत्मसम्मान
अमेरिका और अमेरिकी बहुत ज्यादा उदार नहीं हैं. विदेशियों, खासतौर से अश्वेतों के प्रति उन के पूर्वाग्रह, कुंठा, जलन और हिंसा सहित तमाम तरह के भेदभाव दैनिक सामाजिक जीवन का हिस्सा हैं जिन की तुलना हमारे देश में दलितों से किए जाने वाले व्यवहार से की जा सकती है. बाल्टीमोर पुल हादसे के बाद यह बात एक बार फिर साबित हुई है कि हमारी सरकार ने इस से कोई सरोकार नहीं रखा.