कभी जादूगर का खेल देखा है ? हर बार जब वह हमारी आंखों के सामने, हमारी ही असावधानी की आड़ में हमें छल जाता है, तो यह जानते हुए भी कि यह जो धोखा है, हम सामने हुआ वह हकीकत नहीं, बारीक स्तंभित हुए जाते हैं। जादूगर का हर नया जादू हमसे कहता है कि ज्यादा सावधान होकर बैठो और पकड़ सको तो मेरी चाल पकड़ो! राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत जादूगर के बेटे हैं लेकिन जादू दिखा कोई दूसरा रहा है।
पांच राज्यों में हुआ चुनाव ऐसी ही जादूगरी का नमूना है। अब जब चुनावी धूल बैठ चुकी है, घायल अपने घावों की साज-संभाल में लगे हैं, विजेता अपनी जीती कुर्सियां झाड़-पोंछ रहे हैं, हम जादू के पीछे का हाल देखने-समझने की कोशिश करें।
मोदी-शाह ने जिस नई चुनावी-शैली की नींव 2014 से डाली है, उसकी विशेषता यह है कि न उसका आदि है, न अंत! यह सतत चलती है। चुनाव की तारीख घोषित हुई तब चुनावी मुद्रा में आना, चुनाव की तारीख तक चुनाव लड़ना और फिर जीत-हार के मुताबिक अपना-अपना काम करना ऐसी आरामवाली राजनीति का अभ्यस्त रहा है यह देश, इसके राजनीतिक दल ! मोदी-शाह मार्का राजनीति इसके ठीक विपरीत चलती है। वह तारीखें देखकर नहीं चलती, नई तारीखें गढ़ती है। चुनावी सफलता की तराजू पर तौल कर वह अपना हर काम करती है। उनके लिए चुनाव वसंत नहीं है कि जिसका एक मौसम आता है, यह बारहमासी झड़ी है। उनके लिए विदेश नीति भी चुनाव है, यूक्रेन-फलस्तीन-गाजा-इजरायल भी और पाकिस्तान भी चुनाव हैं, जी-20 भी चुनाव है; खेल व खिलाड़ी भी चुनाव हैं; चंद्रयान भी चुनाव है। उनके लिए जनता भी एक नहीं है, कई है जिनका अलग-अलग चुनावी इस्तेमाल है।
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