दक्षिण-पश्चिम इजरायल में इजरायली समुदायों पर हमास के हमले ने एक ही झटके में पश्चिम एशिया की रणनीतिक तस्वीर बदल दी। बीते 7 अक्टूबर, 2023 तक यह क्षेत्र एक असहज स्थिरता की ओर बढ़ता हुआ दिखाई दे रहा था। 2010-19 के दौर का उथल-पुथल कम होने लगा था, जिसे शुरू में 'अरब स्प्रिंग' कहा गया। उसका मुख्य नतीजा यह दिखा कि कई अरब देशों में शासन का विखंडन और आंशिक पतन हुआ। यमन, इराक और सीरिया उनमें सबसे खास थे। एक नतीजा यह भी हुआ लगता है कि इस्लामिक स्टेट और दूसरी खतरनाक राज्येतर ताकतों का उभार काफी हद तक कम हो गया।
इस क्षेत्र में जाने-पहचाने दो व्यापक ताकतवर गुट मौजूद थे। इसमें सबसे पहले इस्लामी गणतंत्र ईरान के नेतृत्व वाले क्षेत्रीय गुट थे। पश्चिम-विरोधी और स्थिरता-विरोधी ताकतों के इस समूह में ईरान, लेबनान में उसका समर्थक हिजबुल्ला संगठन, सीरिया में बशर असद शासन, यमन में हौथिस या अंसार अल्लाह आंदोलन, इराक के शिया मिलिशिया (जो मौजूदा इराकी सरकार के खिलाफ हैं), और फलस्तीन में इस्लामिक जिहादी और हमास हैं।
मोटे तौर पर एकजुट इस गुट का सामना करने के लिए पश्चिम समर्थक गुट के साथ पहचाने जाने वाले देशों का एक ढीलाढाला सा समूह था। इस समूह में इजरायल, संयुक्त अरब अमीरात, मिस्र, सऊदी अरब, मोरक्को और बहरीन मुख्य घटक के रूप में शामिल हैं। इसके अलावा इराक और सीरिया में कुर्द स्वायत्त क्षेत्र जैसी कई राज्येतर ताकतें भी शामिल हैं। ईरान समर्थक समूह के अधिकांश हिस्से में एक निश्चित वैचारिक आग्रह (राजनीतिक इस्लाम) और राजकाज (अधिनायकवाद) के मामले में एक साझा नजरिया है, जबकि पश्चिम समर्थक समूह की साझा चिंताएं ईरानी समूह के इरादों और राजनीतिक इस्लाम को लेकर हैं।
कई विश्लेषक हाल के महीनों में इस निष्कर्ष पर पहुंचे थे कि इन गुटों के घटकों (सबसे अहम इजरायल और ईरान के बीच) के बीच तीखे मतभेदों के बावजूद यह क्षेत्र एक निश्चित संतुलन की ओर बढ़ रहा है। चीन ने ईरान और सऊदी अरब के बीच मेल-मिलाप कराया था जिससे दोनों देशों के बीच पूर्ण राजनयिक संबंधों की बहाली तय हुई थी। एक दशक के तनाव के बाद, इजरायल ने तुर्की के साथ पूर्ण राजनयिक संबंध फिर से शुरू किए थे। धीमी कूटनीतिक प्रगति के इस दायरे से इजरायल-ईरान तनाव बाहर था।
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