छत्तीसगढ़ में मतदान ऐसे समय में होने जा रहा है जब खरीफ के धान की कटाई हो रही होगी। पहली नवंबर से धान खरीद का सीजन लग रहा है। करीब सत्तर प्रतिशत धान उपजाने वाले किसानों के इस सूबे में इसी वजह से चुनाव हर बार की तरह इस बार भी धान केंद्रित हो गया है। आलम यह है कि दोनों प्रमुख राजनीतिक दलों, सत्ताधारी कांग्रेस और विपक्षी भारतीय जनता पार्टी ने अपना-अपना घोषणापत्र धान के चलते रोका हुआ है। ‘धान का कटोरा’ कहे जाने वाले इस राज्य में दो चरण में 7 और 17 नवंबर को मतदान होना है। पहले मतदान से महज दस दिन पहले एक ओर मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की सरकार ने किसानों के कर्ज माफ करने का वादा कर डाला है, तो दूसरी ओर परवर्तन निदेशालय (ईडी) ने 20 और 21 अक्टूबर को चावल की कस्टम मिलिंग में कथित घोटाले के सिलसिले में चार जिलों में छापेमारी की है। कांग्रेस का आरोप है कि हर बार की तरह इस बार भी केंद्र सरकार के साथ मिलकर छत्तीसगढ़ भाजपा धान खरीदी को बाधित करने का षड्यंत्र रच रही है। दूसरी ओर राज्य में धान खरीदी से किसानों को सीधा फायदा पहुंचने के कांग्रेस के दावों पर भाजपा अलग से सवाल उठा रही है।
फिलहाल, स्थिति यह है कि छत्तीसगढ़ सरकार धान किसानों को केंद्र द्वारा तय किए गए न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) से करीब चार सौ रुपये ज्यादा (कुल 2500 रुपये क्विंटल) भुगतान करती है। इस अंतर को राज्य सरकार राजीव गांधी न्याय योजना के नाम से सीधे वितरित करती है। अब 1 नवंबर से शुरू हो रहे खरीद सीजन के लिए राज्य सरकार ने खरीद रकम और खरीद की मात्रा (15 क्विंटल से 20 क्विंटल प्रति एकड़) को बढ़ाने की घोषणा की है। कांग्रेस की दिक्कत यह है कि बगल के राज्य मध्य प्रदेश में उसने 2500 रुपये क्विंटल पर धान खरीद की घोषणा की हुई है, ऐसे में एक ही पार्टी द्वारा दो राज्यों में दो अलग पैमाने उसके गले की फांस बन सकते हैं।
This story is from the November 13, 2023 edition of Outlook Hindi.
Start your 7-day Magzter GOLD free trial to access thousands of curated premium stories, and 8,500+ magazines and newspapers.
Already a subscriber ? Sign In
This story is from the November 13, 2023 edition of Outlook Hindi.
Start your 7-day Magzter GOLD free trial to access thousands of curated premium stories, and 8,500+ magazines and newspapers.
Already a subscriber? Sign In
आंबेडकर और गांधी
भारत निर्माण के दोनों युग-प्रवर्तकों में मतभेदों के बावजूद लक्ष्य के प्रति काफी स्पष्टता थी
सियासी सफर पर क्वीन
फिल्मी दुनिया के अनगिनत विवादों के बीच राजनीति में क्या गुल खिलाएंगी, देखना बाकी
सब कुछ नयाँ है
आइपीएल में इस बार बहुत सी बातें पहली बार हैं, पहली-पहली बार के ये अनुभव दर्शकों को रोमांचित भी कर रहे हैं और आनंद भी दे रहे
स्त्री स्वर, लय, थाप और थिरकन
ओडिशी नृत्यांगना निताशा नंदा ने नृत्य, गायन, वादन और पारंपरिक तथा पाश्चात्य ध्वनियों के संगम से स्त्री सशक्तीकरण का अनोखा रंग पेश किया
संवेदना विस्तार की कथा
एक धारणा है, जो इस समुदाय के प्रति होती है, एक आवरण जो इस समुदाय को घेरे रहता है। इस आवरण की वजह से कयास हैं। जहां भी कयास होते हैं, वहां परिणाम गलत होते हैं।
स्त्री नहीं समाज का संघर्ष
वरिष्ठ कवि अरुण कमल की ये पंक्तियां पुस्तक के मूल को बहुत अच्छे से परिभाषित करती है। साहित्य-समालोचक और दिल्ली विश्वविद्यालय में सहायक प्राध्यापक डॉ. राजीव रंजन गिरि द्वारा संपादित यह पुस्तक स्त्रीवाद पर एक सारगर्भित संकलन है।
राजधानी में विस्थापन
पलायन और विस्थापन इस दौर के सबसे ज्यादा भयावह शब्द है। वैश्विक स्तर पर कभी वर्चस्व की लड़ाई, कभी जमीन के टुकड़े पर हक, कभी सौंदर्यीकरण के नाम पर उजाड़ दिया जाना बहुत ‘साधारण’ होता जा रहा है।
राजनीतिक किस्से
राजनीति में शान्ता कुमार उच्च मूल्यों के पक्षधर नेताओं में से एक रहे हैं। 2019 में चुनावी राजनीति से संन्यास लेने के बाद उन्होंने अपने छह दशक के राजनीतिक अनुभव को पाठको के साथ साझा करने का निर्णय लिया। अब आत्मकथा के रूप में यह पुस्तक सामने है।
खोई जमीन पाने की लड़ाई
1990 और 2000 के दशक में उत्तर प्रदेश में दलित वोटों पर एकाधिकार रखने वाली और राजनीतिक चर्चा के केंद्र में रहने वाली मायावती की अगुआई वाली बहुजन समाज पार्टी के लिए ये चुनाव प्रासंगिक बने रहने की चुनौती
टूटेगा 9-2-11 फॉर्मूला
चुनावी फिजा में फिर कांग्रेस के पीछे लगा महादेव ऐप घोटाले का जिन्न