ओयिलट्टम
ओयिलट्टम दक्षिणी तमिलनाडु का पारंपरिक लोक नृत्य है। तमिल भाषा में है "ओयिल" का अर्थ "सौंदर्य" होता है। इसी कारण ओयिलट्टम को "सौंदर्य का नृत्य" भी कहा जाता है। ओयिलट्टम एक ऐसी नृत्य विधा है, जिसके माध्यम से पौराणिक कथाओं को जनसामान्य तक पहुंचाया जाता है।
परंपरागत रूप से इस नृत्य को पुरुष अपनी उंगलियों में रंग बिरंगे रुमाल बांधकर प्रस्तुत करते हैं। समय के साथ यह बदलाव आया है कि अब इस नृत्य को महिलाएं भी प्रस्तुत करने लगी हैं। नर्तक पांव में घुंघरू बांधकर पारंपरिक वाद्य यंत्र थाविल की ध्वनि पर लयबद्ध तरीके से नृत्य करते हैं।
पोइक्कल कुथराई
तमिलनाडु में पोइक्कल कुथिराई नृत्य धार्मिक महोत्सवों में पूरी ऊर्जा के साथ प्रस्तुत किया जाता है। नृत्य को प्रस्तुत करते हुए नर्तक प्रतीक स्वरूप घोड़े को कमर पर धारण करते हैं। पोइक्कल कुथिराई का शाब्दिक अर्थ होता है "झूठे पैरों वाले घोड़े का नृत्य"। नृत्य के दौरान नर्तक आम की लकड़ी से बने हुए पैरों पर संतुलन बनाते हैं। इन्हीं से घोड़े के पैरों की टाप सुनाई देती है। संतुलन बनाते हुए नर्तक पारंपरिक वाद्य यंत्र कुंडलम, नैयंडी मेलम, थाविल की धुन पर मनमोहक नृत्य प्रस्तुत करते हैं। यह नृत्य भगवान अय्यनार की उपासना से जुड़ा हुआ है। इसमें नर्तक राजा और रानी की वेशभूषा में जोड़ा बनाकर प्रस्तुति देते हैं।
थेरुकुथु
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जौनपुर
इतिहास की गोद में ऊंघता-सा एक शहर है, उत्तर प्रदेश का जौनपुर। पुराने शहरों के साथ अक्सर ऐसा होता है कि वे किसी मील के पत्थर से यू टर्न लें और सभ्यता की सामान्य दिशा से उल्टी दिशा में चल पड़ें।
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इस संग्रह का महत्वपूर्ण पक्ष यह है कि कवि यहां अस्तित्ववाद के प्रश्नों से रूबरू होते हैं। निजी और वृहत्तर तौर पर जीवन को इस विमर्श के घेरे में लाकर कवि अस्तित्व से संबंधित प्रश्नों का उत्तर पाने का प्रयास करता है।
प्रकृति का सान्निध्य
वरिष्ठ कवयित्री सविता सिंह का नया संग्रह ‘वासना एक नदी का नाम है’ स्त्री-विमर्श को नई ऊंचाई पर ले जाता है।
आजाद तवायफ तराना
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