लोकसभा चुनाव से पहले छेड़ी गई 'एक देश एक चुनाव' की मुहिम को कैसे देखते हैं?
ये नई बात नहीं है। दस साल से यह बहस चल रही थी, अब बस इसकी पिच बढ़ा दी गई है। कमेटी बनी है (पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अगुआई में आठ सदस्यीय कमेटी का ऐलान हुआ मगर लोकसभा में कांग्रेस के नेता अधीररंजन चौधरी ने शामिल होने से इनकार कर दिया), उसका मैनडेट बड़ा है, इसलिए कमेटी भी साल छह महीने लेगी रिपोर्ट बनाने में। उसके बाद परीक्षण होगा। इसलिए मैं नहीं जानता कि इस कमेटी से जल्दबाजी में क्या हासिल होगा। अंदाजा लगाना मुश्किल है, लेकिन इतनी सशक्त कमेटी है, अप्रत्याशित रूप से उच्चाधिकार प्राप्त, तो देखते हैं, कौन-सा फॉर्मूला निकल कर आता है।
जल्दबाजी इतनी कि कानून मंत्रालय के सचिव फौरन कोविंद साहब को ब्रीफ कर आए?
वे ब्रीफ भले ही कर आए हों, लेकिन सारे पहलू देखने होंगे। तीन कमेटियां पहले बैठ चुकी हैं। अब तक के क्या सुझाव हैं, क्या लाभ-हानि है, उन्हें देखना होगा। हो सकता है सेक्रेटरी साहब ने उन बैठकों के मिनट्स और रिजॉल्यूशन का कोई ड्राफ्ट बनाकर रखा हो। ब्रीफ तो उन्हें करना ही था। कमेटी जब बैठेगी तो बातचीत में कुछ वक्त लगेगा ही, बटन दबाकर तो रिपोर्ट आ नहीं जाएगी।
दो विधि आयोगों की रिपोर्ट हैं। जितनी कानूनी पेचीदगियां हैं वे पहले ही बताई जा चुकी हैं। फिर हरीश साल्वे और सुभाष कश्यप से क्या सलाह चाहती होगी सरकार?
This story is from the October 02, 2023 edition of Outlook Hindi.
Start your 7-day Magzter GOLD free trial to access thousands of curated premium stories, and 8,500+ magazines and newspapers.
Already a subscriber ? Sign In
This story is from the October 02, 2023 edition of Outlook Hindi.
Start your 7-day Magzter GOLD free trial to access thousands of curated premium stories, and 8,500+ magazines and newspapers.
Already a subscriber? Sign In
आंबेडकर और गांधी
भारत निर्माण के दोनों युग-प्रवर्तकों में मतभेदों के बावजूद लक्ष्य के प्रति काफी स्पष्टता थी
सियासी सफर पर क्वीन
फिल्मी दुनिया के अनगिनत विवादों के बीच राजनीति में क्या गुल खिलाएंगी, देखना बाकी
सब कुछ नयाँ है
आइपीएल में इस बार बहुत सी बातें पहली बार हैं, पहली-पहली बार के ये अनुभव दर्शकों को रोमांचित भी कर रहे हैं और आनंद भी दे रहे
स्त्री स्वर, लय, थाप और थिरकन
ओडिशी नृत्यांगना निताशा नंदा ने नृत्य, गायन, वादन और पारंपरिक तथा पाश्चात्य ध्वनियों के संगम से स्त्री सशक्तीकरण का अनोखा रंग पेश किया
संवेदना विस्तार की कथा
एक धारणा है, जो इस समुदाय के प्रति होती है, एक आवरण जो इस समुदाय को घेरे रहता है। इस आवरण की वजह से कयास हैं। जहां भी कयास होते हैं, वहां परिणाम गलत होते हैं।
स्त्री नहीं समाज का संघर्ष
वरिष्ठ कवि अरुण कमल की ये पंक्तियां पुस्तक के मूल को बहुत अच्छे से परिभाषित करती है। साहित्य-समालोचक और दिल्ली विश्वविद्यालय में सहायक प्राध्यापक डॉ. राजीव रंजन गिरि द्वारा संपादित यह पुस्तक स्त्रीवाद पर एक सारगर्भित संकलन है।
राजधानी में विस्थापन
पलायन और विस्थापन इस दौर के सबसे ज्यादा भयावह शब्द है। वैश्विक स्तर पर कभी वर्चस्व की लड़ाई, कभी जमीन के टुकड़े पर हक, कभी सौंदर्यीकरण के नाम पर उजाड़ दिया जाना बहुत ‘साधारण’ होता जा रहा है।
राजनीतिक किस्से
राजनीति में शान्ता कुमार उच्च मूल्यों के पक्षधर नेताओं में से एक रहे हैं। 2019 में चुनावी राजनीति से संन्यास लेने के बाद उन्होंने अपने छह दशक के राजनीतिक अनुभव को पाठको के साथ साझा करने का निर्णय लिया। अब आत्मकथा के रूप में यह पुस्तक सामने है।
खोई जमीन पाने की लड़ाई
1990 और 2000 के दशक में उत्तर प्रदेश में दलित वोटों पर एकाधिकार रखने वाली और राजनीतिक चर्चा के केंद्र में रहने वाली मायावती की अगुआई वाली बहुजन समाज पार्टी के लिए ये चुनाव प्रासंगिक बने रहने की चुनौती
टूटेगा 9-2-11 फॉर्मूला
चुनावी फिजा में फिर कांग्रेस के पीछे लगा महादेव ऐप घोटाले का जिन्न