राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) के प्रमुख शरद पवार क्या इन दिनों अपना उत्तराधिकारी घोषित करने की दिशा में हौले-हौले कदम बढ़ा रहे हैं? जानकारों का मानना है कि वे अपनी पार्टी का भविष्य तय करने में जुटे हैं। लिहाजा वे अपने फैसलों से सियासी तस्वीर में थोड़ी स्पष्टता लाने की कवायद कर रहे हैं। दरअसल, मई की शुरुआत में उन्होंने कहा था कि वे में पार्टी अध्यक्ष के पद से इस्तीफा देने वाले हैं। जून के दूसरे हफ्ते में उन्होंने ऐलान कर दिया कि उनकी बेटी सुप्रिया सुले और प्रफुल्ल पटेल राकांपा के कार्यकारी अध्यक्ष होंगे। पवार की इन घोषणाओं से पार्टी के उत्तराधिकार को लेकर भले ही धुंधलका छंटता दिख रहा हो लेकिन इससे उनके भतीजे अजित पवार के भविष्य को जोड़कर देखा जा रहा है, हालांकि कई विशेषज्ञ इसके दूसरे अर्थ भी निकाल रहे हैं।
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जौनपुर
इतिहास की गोद में ऊंघता-सा एक शहर है, उत्तर प्रदेश का जौनपुर। पुराने शहरों के साथ अक्सर ऐसा होता है कि वे किसी मील के पत्थर से यू टर्न लें और सभ्यता की सामान्य दिशा से उल्टी दिशा में चल पड़ें।
समय की गति की परख
इस संग्रह का महत्वपूर्ण पक्ष यह है कि कवि यहां अस्तित्ववाद के प्रश्नों से रूबरू होते हैं। निजी और वृहत्तर तौर पर जीवन को इस विमर्श के घेरे में लाकर कवि अस्तित्व से संबंधित प्रश्नों का उत्तर पाने का प्रयास करता है।
प्रकृति का सान्निध्य
वरिष्ठ कवयित्री सविता सिंह का नया संग्रह ‘वासना एक नदी का नाम है’ स्त्री-विमर्श को नई ऊंचाई पर ले जाता है।
आजाद तवायफ तराना
तवायफों पर आई नई वेबसीरीज हीरामंडी ने फिर कोठेवालियों और देवदासियों के साथ हिंदुस्तानी सिनेमा के रिश्तों की याद दिलाई
अगला द्रोण कौन
टीम इंडिया में अर्जुन तो बहुत, उन्हीं को संवारने के लिए एक ऐसे कोच की तलाश, जो टीम को तकनीकी-मानसिक मजबूती दे सके
ममता दीदी की दुखती रग
इस चुनाव में अपनी पार्टी के नेताओं का भ्रष्टाचार ही ममता की सबसे बड़ी चुनौती
हवा का रुख दोतरफा
ईडी की कार्रवाइयों और जनता के मुद्दों पर टिका है चुनाव
तीसरी बारी क्यों
विपक्ष प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर भ्रष्टाचार और संविधान बदलने तथा आरक्षण खत्म करने का आरोप लगाकर देश की जनता को गुमराह नहीं कर सकता
क्या बदलाव होने वाला है?
इस बार उत्तर प्रदेश के लोकसभा चुनाव में सवर्णों को अपने धर्म और वर्चस्व की चिंता दिख रही है, तो अवर्ण समाज के दिल को संविधान और लोकतंत्र का मुद्दा छू रहा
किस ओर बैठेगा जनादेश
बड़े राज्यों में कांटे के मुकाबले के मद्देनजर 4 जून को नतीजों के दिन ईवीएम से निकलने वाला जनादेश लगातार तीसरी बार एनडीए को गद्दी सौंपेगा या विपक्षी गठजोड़ 'इंडिया' के पक्ष में बदलाव की बानगी लिखेगा, यह लाख टके का सवाल देश की सियासत की अगली धारा तय करेगा