इसी माह संपन्न इन चुनावों में 12 सीटों के साथ नेशनल कॉन्फ्रेंस सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी और 10 सीटों के साथ कांग्रेस दूसरे नंबर पर रही. इस 30 सदस्यीय परिषद में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और निर्दलीयों के खाते में केवल दो-दो सीटें आईं. (महिलाओं और अल्पसंख्यकों के लिए आरक्षित र नामांकन के जरिए भरी जाती हैं.)
वैसे तो यह विशुद्ध स्थानीय स्तर का चुनाव था लेकिन इस बार लद्दाख की सीमाओं से परे भी सबकी नजर बड़ी उत्सुकता के साथ नतीजों पर टिकी थी. इसकी एक बड़ी वजह यह है कि अगस्त 2019 में लद्दाख को पूर्ववर्ती जम्मू-कश्मीर राज्य से अलग किए जाने और बिना विधानसभा वाला केंद्र शासित राज्य बनाए जाने के बाद यह करगिल जिले में पहली चुनावी कवायद थी. गठबंधन सहयोगियों ने प्रचार के दौरान अनुच्छेद 370 के साथ पहचान, बेरोजगारी, भूमि अधिकार और निशक्तीकरण जैसे मुद्दों को पूरे जोरदार से उछाला जिससे सड़क, बिजली, पानी जैसे स्थानीय मुद्दे कहीं गौण हो गए. जम्मू-कश्मीर के पूर्व सीएम और नेशनल कॉन्फ्रेंस के उपाध्यक्ष उमर अब्दुल्ला ने तो लोगों से वोट का इस्तेमाल नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार के एकतरफा कदम पर 'जनता के फैसले' के तौर पर करने का आह्वान किया था.
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