फरवरी में जब प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने झारखंड ग्रामीण विकास विभाग के मुख्य अभियंता (चीफ इंजीनियर) वीरेंद्र राम को कथित मनी-लॉन्ड्रिंग के आरोप में गिरफ्तार किया, तो वह ऐसे मामलों में होने वाली एक आम गिरफ्तारी ही लग रही थी. ऐसा इसलिए क्योंकि चीफ इंजीनियर का पद नौकरशाही के पदानुक्रम में बहुत ऊपर नहीं होता. लेकिन तहकीकात के बाद तो 56 वर्षीय राम (अब निलंबित) का यह मामला एक उदाहरण बन गया है कि भ्रष्ट सरकारी अधिकारी किस तरह से प्रवर्तन एजेंसियों के रडार से नीचे रहकर अपनी काली कमाई को सफेद कर रहे हैं.
ईडी ने 18 अप्रैल को राम की 39.28 करोड़ रुपए की अचल संपत्ति को कुर्क करने का आदेश जारी किया जिसमें दिल्ली में दो फ्लैट और एक प्लॉट शामिल हैं. इससे पहले फरवरी में उसने राम के रांची स्थित घर से 19.45 लाख रुपए नकद, 1.51 करोड़ रुपए के आभूषण और कुछ महंगी कारें बरामद की थीं. एजेंसी ने पीएमएलए (धन शोधन निवारण अधिनियम) अदालत के विशेष न्यायाधीश को सूचित किया कि पिछले साल राम ने दिल्ली स्थित एक चार्टर्ड एकाउंटेंट (सीए) से संपर्क किया था ताकि वह कई करोड़ रुपए की अपनी उस काली कमाई को सफेद कर सके जो उसने मूल रूप से कंपनियों को दिए गए ठेके के एवज में कमिशन के रूप में में वसूली थी. सीए, जो कथित तौर पर 2.5 फीसद की फीस पर काम करने के लिए सहमत हुआ, उसे कमिशन की रकम राम के पिता गेंदा राम और परिवार के अन्य सदस्यों के बैंक खातों में डालनी होती थी.
इस प्रसंग में, राम ने ईडी के सामने दर्ज कराए अपने कबूलनामे में स्वीकार किया है कि उसने अपने विभाग में काम को पूरा करने के लिए चुनी गई कंपनियों से कमिशन के रूप में टेंडर राशि का 0.3-1 फीसद लिया. हालांकि, विभिन्न सरकारी योजनाओं के माध्यम से राम ने कितनी रकम की उगाही की होगी, इसका सही-सही आकलन करना मुश्किल है. झारखंड आर्थिक सर्वेक्षण 22-23 का रिकॉर्ड बताता है कि राज्य में 27,663 किलोमीटर ग्रामीण सड़कों के निर्माण के लिए पिछले वित्त वर्ष में लगभग 10,966 करोड़ रुपए खर्च किए गए थे. लेकिन पूरे ग्रामीण विकास कार्य के मात्र एक छोटे हिस्से का काम राम की देखरेख में हुआ होगा.
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