श्रीकृष्ण मेमोरियल अस्पताल, मुजफ्फरपुर के आइसीयू में अपने बेड पर बैठी सुनीता देवी यह पूछते ही चिहुंक उठती हैं कि उन्हें क्या हुआ है. अपने पेट दर्द का इलाज कराने वे पड़ोस के गांव बरियारपुर के निजी अस्पताल में गई थीं. उन्हें यह नहीं मालूम था कि वह अस्पताल गैरकानूनी है और डॉक्टर दसवीं फेल. डॉक्टर ने सर्जरी के जरिए उनके गर्भाशय को निकालने की कोशिश की. इस चक्कर में गलती से साथ में उनकी दोनों किडनियां भी निकल गईं. अब पिछले चार महीने से वे बिना किडनी के जिंदा हैं. हफ्ते में तीन रोज उनका डायलिसिस होता है. वे रोते-रोते बताती हैं, "मेरी हालत बहुत खराब है. भूख नहीं लगती, उल्टी होती है. चार महीने से पेशाब नहीं हुआ, किडनी नहीं है तो पेशाब कैसे होगा. डॉक्टर ने ज्यादा पानी पीने से मना किया है. गला सूखता है. डॉक्टर कहते हैं, हमको किसी और की किडनी लगेगी, तभी हम बच पाएंगे. इसलिए हम चाहते हैं कि सरकार हमारे लिए किडनी की व्यवस्था करवा दे. न हो तो उसी डॉक्टर या उसकी पत्नी की किडनी हमें दिला दे, जिसके कारण मेरी जिंदगी खराब हो गई. मेरे छोटे बच्चे हैं, हमको उनके जीने का आधार चाहिए. हमारे साथ जो अनहोनी हुई उसका मुआवजा चाहिए."
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